कभी भद्र जनों के खेलों के नाम से विख्यात क्रिकेट आज अभद्रता के सारे कीर्तिमानों को ध्वस्त करता नजर आ रहा है । इसकी बानगी हमें हाल में समाप्त हुए इंडियन प्रीमीयर लीग में साफतौर पर दिखाई दी है । सट्टेबाजी के तमाम आरोप और इस रैकेट से जुड़े मानिंद लोगों के दामन पर पड़े छिंटे ये साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि अब क्रिकेट मैदान के अंदर नहीं मैदान के बाहर खेले जाने वाला खेल बन गया है । बहरहाल इस तमाम विवाद के बावजूद भी भारतीय क्रिकेट में किसी बड़ी उलटफेर के संकेत तो नहीं के बराबर हैं । सट्टेबाजी के आरोप में अपने दामाद की गिरफ्तारी के बावजूद भी बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनीवासन ने अपने पद से इस्तिफा देने से इनकार कर दिया है । इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत की अन्य संस्थाएं भी आज भारतीय राजनीति का अनुकरण करने पर आमादा हैं । स्मरण रहे रेल से जुड़े ऐसे ही एक मामले पूर्व रेलमंत्री पवन बंसल के भांजे की संलिप्तता एवं रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने के बावजूद भी पवन जी खुद को निर्दोष बता रहे थे । यकायक बढ़ रही इन घटनाओं से इतना तो स्पष्ट हो गया है कि वरीष्ठ राजनीतिज्ञों समेत उच्च पदस्थ अधिकारियों तक सभी के शब्दकोष से नैतिकता शब्द का लोप हो गया है ।
इस पूरे वाकये में सारी नैतिकता को ताक पर रखकर दिये जा रहे एन श्रीनीवासन के सारे तर्क हास्यास्पद ही हैं । अपने एक बयान में अपनी कुंठा मीडिया पर उतारते हुए उन्होने कहा कि, सिर्फ मीडिया को ही चाहिए मेरा इस्तिफा । गौरतलब है सट्टेबाजी में अपने दामाद और चेन्नई सुपर किंग्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गुरूनाथ मैयप्पन की गिरफ्तारी के बाद क्या इन तर्कों की कोई जगह बचती है ? नैतिकता के आधार पर क्या वे दोबारा इस कुर्सी पर बैठने के योग्य हैं ? ऐसे में मीडिया पर गुस्सा उतारने वजह क्या है ? इन सब सवालों के जवाब हमें रविवार को कोलकाता में हुए आईपीएल के फाइनल मैच के बाद हुए पुरस्कार वितरण समारोह में ही मिल जाएंगे । गौरतलब है कि ईडेन गार्डेन में मौजूद दर्शकों ने इस समारोह में उनकी मौजूदगी का पुरजोर विरोध किया था । क्या इसके लिए भी मीडिया ही जिम्मेदार है ? या मीडिया ने गुरूनाथ से सट्टेबाजी करने को कहा था ? स्पष्ट है श्रीनीवासन अपनी बेशर्म दलीलों से अपने दामाद के काले कारनामों पर पर्दा डालने की कोशिश कर हैं । जिसमें कहीं न कहीं उनकी सहभागिता अवश्य है ।
अपने दामाद के बचाव में जुटे श्रीनीवासन जी ने एक पत्रकार सम्मेलन में कहा कि चेन्नई सुपर किंग्स के संचालन में उनके दामाद की कोई भूमिका नहीं है । जबकि आईपीएल आयुक्त राजीव शुक्ल के ईमेल से ये बात स्पष्ट हो चुकी है कि गुरूनाथ चेन्नई टीम के मालीकों में से एक है । स्पष्ट है कि वे इस पूरे मामले में अपने दामाद का बचाव कर रहे हैं । ऐसे में इस मामले की जांच कमेटी की घोषणा मजाक नहीं तो और क्या है । ध्यातव्य हो कि इस कमेटी के अधिकांश मनोनीत सदस्य उनके करीबी हैं । विचार करीये जिस बोर्ड के सदस्य इतने संगीन मामले में संलीप्तता पाये जाने के बावजूद भी श्रीनीवासन को अध्यक्ष पद से विदा कर पाने की कुव्वत नहीं रखते उस बोर्ड के सदस्य क्या ईमानदारी से जांच कर पाएंगे ? सबसे मजेदार बात तो ये है कि चेन्नई सुपर किंग्स से जुड़े गुरूनाथ जो कि अपने संदिग्ध आचरण के कारण हिरासत में हैं । बीसीसीआई अध्यक्ष माननीय श्रीनीवासन जी उसी चेन्नई सुपर किंग्स के प्रबंध निदेशक हैं । ऐसे में इस जांच कमेटी से किसी बड़े निष्कर्ष तक पहुंचने की उम्मीद करना तो बेमानी ही है । इन विषम परिस्थितियों में ताजा मामले को देखते हुए सरकार से अपेक्षा अवश्य की जा सकती है कि वो इस पूरे मामले में पारदर्शी हस्तक्षेप के साथ आरोपियों के लिए कड़े से कड़े दंड को सुनिश्चित करावे ताकि इस खेल की गरिमा बच सके । जहां तक श्रीनीवासन जी के मीडिया के प्रति गुस्से का प्रश्न तो वह चोरी और सीनाजोरी से ज्यादा कुछ नहीं है ।