गुम होता भारत

उ.प्र. में भूमि अधिग्रहण का ताज उदारण हमारे लिया एक दम नया ज़रूर है अगर हमको इससे सीख नही मिली तो फिर आने वाला वक़्त और भी भयानक हो सकता है जिस प्रकार से उ.प्र. राज्य सरकार किसानों की ज़मीन को कम दामो में खरीदकर नोएडा यमुना एक्सप्रेस हाई -वे बनाकर नोएडा से आगरा १६५ किलोमीटर की दूरी कों मात्र ९० मिनट में तय करवाना चाहती है

किसानों दुवारा भूमि अधिग्रहण का आन्दोलन अलीगढ से शुरू होकर पूरे पश्चिमी उ.प्र. में जंगल में आग की तरह फैल चुका है .यह आन्दोलन रूपी आग अब तक न जाने कितने लोगों को स्वाहा कर चुकी है . राज्य सरकार किसानों की जमीन को हड़पने की तेयारी में नोएडा यमुना-एक्सप्रेस का निर्माण जे.पी. समूह के साथ मिलकर कर रही है . इस हाई वे के आस पास चार जिलो ( हाथरस , आगरा ,मथुरा ,अलीगढ ) की भूमि पर जो अधिग्रहण किया जा रहा है. गुस्से से बेकाबू हुए किसान अब ज़मीन की बचाने की लिए मरने – मारने को तैयार है. किसानो का यह भी कहना है कि राज्य सरकार हमारे साथ नाइंसाफी कर रही है. नोएडा के आस पास के किसानो कों ज़मीन का मूल्य ऊंचे दामों पर अदा किया जा रहा है .जबकि आगरा , मथुरा के किसानो कों वही भूमि सस्ते दामो पर खरीदी जा रही है . नाजायज तरीके से भूमि अधिग्रहण के इस भेदभाव से अलीगढ के किसानो ने आन्दोलन का रास्ता पकड़ लिया ही।

चौदह अगस्त कों किसान नेता राम बाबू कठेरिया की गिरफ्तारी से गुस्साए किसानो पर पुलिस दोबारा की गयी फायरिंग से मारे गए युवकों के कारण, किसानों ने स्वतंत्रता दिवस के मोके पर लाठी चार्ज की , जब देश आज़ादी का ६३ वां स्थापना दिवस मना रहा था. ठीक उसी समय यमुना- एक्सप्रेस हाई वे निर्माण पर आन्दोलन करने वालो ने चालीस वाहनों कों आग की हवाले कर दिया . हर किसान के लिए उसकी ज़मीन का हर एक टुकड़ा उसके जिगर के टुकडे से कही बढ़ कर होता है . पहले तो किसान भी पैसे की चाह में अंधे हो बैठे थे . अब अपनी ज़मीन बिल्डरों कों बेचकर पछता रहे है . उस ज़मीन से मिला पैसा अब जब खत्म होने की कगार पर है . तब उनको अपनी ज़मीन याद आ रही है.जो किसान समझदार निकले उन्होंने पानी ज़मीन बचाए रखी . कल तक जिस ज़मीन में हमको फसल हरी भरी दिखती थी . आज उसी ज़मीन में ईट पथरो, और कंक्रीट से बने बड़े -२ चमचमाते शोपिंग माल दिखाई देते है . जो खुद हमारी ही जेब ढीली करवा रहे है .

उसी ज़मीन में लगे बड़े-२ ऊद्योग धंदे और धुवा रहित फेक्ट्रिया जो की पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बनी है, और हमरे ही लिए मोत का साया भी . सन उन्नीस सो पचास से लेकर अब तक किसानो कों ओधिगिकरण के लिए बड़ी तादाद में अपनी ज़मीन गवानी पड़ी. जिस देश की सत्तर फीसीदी आबादी कृषि पर निर्भर करती है जिसका मात्र सत्रह फीसीदी हिस्सा बचा है. वेश्वीकरण के इस दोर में भारत कृषि प्रधान देश होने के कारण कंक्रीट से बने शोपिंग माल और बड़ी -२ इमारतो के चक्करों में आकर अपनी धरोहर कों ही तबाह करने पर क्यों तुले है ?  राज्य सरकार प्रोपर्टी डीलर की भूमिका में आकर और कारपोरेट घरानों के चक्कर में पड़कर अपनी खेती की जमीन कों बर्बाद करवाने पर तुले है।

… लेकिन याद रहे वह दिन भी दूर नहीं जब हमारे देश में हर इंसान एक- एक दाने के लिए तरसेगा। इसी प्रकार कारपोरेट जगत इंडिया बनाने की होड़ में अपने इस लाडले से भारत को गुम करने में लगा है…….

-ललित कुमार (मेरठ),

प्रसारण पत्रकारिता, (भोपाल)

3 COMMENTS

  1. bhaarat kee kendr sarkaar to wideshee saamraajywaadiyon kee ajaint ke ruup mein kaam kar hee rahee thee, ab prant sarkaaren bhee unhee ke raaste pr chal padee hain. inkaa sashakt wirodh n kiyaa to saaraa d3sh hee wikaas ke naam par wideshee kampaniyon ko saunp diye jaane kee kaagres sarkaar kee puree taiyaaree hai.

  2. लेखक की चिन्ता जायज है, हालांकि स‹डकों का निर्माण भी जरूरी है। सरकारों की मनमानी एवं प्रशासनिक भ्रष्टाचार असली समस्या है। यदि सही मुआवजा और सही समाधान ढूँढे जायें तो कोई विरोध नहीं करेगा। राजस्थान की पूर्व मुख्यमन्त्री द्वारा किये गये जमीनों के दोहन के बाद, अब तो अनेक राज्यों में सरकार ऐसी योजनाओं पर ही काम करना चाहती है, जिनमें जमीन बेचना शामिल हो! क्योंकि सबसे अधिक कमाई इसी में है। भ्रष्ट एवं तानाशाही असली समस्या है, जिसकी ओर कोई ध्यान नहीं देना चाहता।

    श्री ललित कुमार जी आपको एवं आपके आलेख को प्रकाशित करने के लिये प्रवक्ता डॉट कॉम को साधुवाद।

    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) एवं सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र), मो. ०९८२९५-०२६६६

  3. गुम होता भारत -by- ललित कुमार (मेरठ), प्रसारण पत्रकारिता, (भोपाल)

    ललित कुमार जी क्या आप लाडले भारत को विकास के पथ पर अग्रसर नहीं कराना चाहते ?

    प्रगति कैसे करनी है ? ग्रामीण समाज का मार्ग दर्शन करें कि आगे कैसे बढ़ना है – दुनिया बढी रफ़्तार से आगे निकल रही है.

    हमें सबसे आगे रहना है. रोते-पीटते जीवन नहीं बिताना है.

    दिल्ली से मुंबई रेल यात्रा ३५० किलीमीटर प्रति घंटा रफ्त्तार से बुलेट ट्रेन से साढ़े तीन घंटे में जाना है.

    चीन ऐसी गति से यात्रा के लिए लगभग तयार है. चीन एसा कर गुम नहीं हो रहा, सशक्त होकर ललकार रहा है.

    अब प्रश्न है कि ग्रामीण भारत का विकास कैसे हो ? भारत के किसान की रोज़ी-रोटी की सुरक्षा का समुचित प्रबन्द हो.

    इसके लिए अनेक फोर्मुले हैं. भूमी के बदले मुआवजे के साथ साथ नये संस्थान में हिस्सेदारी, पेंशन, रोज़गार, आदि, आदि.

    दूसरा विकल्प है, जहाँ-जहाँ संभव हो सहकारिता संस्थान के द्वारा भूमी के बदले किसान को काम मिले.

    यह सब लिखित में सुनिश्चित करना है.

    इस सभी के लिए ग्रामीण समाज को संगठित होना है. राजनीति के लोगों के भ्रष्टाचार के चुंगुल से बचना है.

    जय किसान.

    – अनिल सहगल –

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