क्या ऐसे ही हैं राहुल..?

 सिद्धार्थ शंकर गौतम

ऐसा प्रतीत होता है मानो विदेशी मीडिया ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था से जुड़े कद्दावर नेताओं के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है| प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बाद अब विदेशी मीडिया ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को भी निशाने पर लेते हुए उनकी क्षमताओं पर करारा व्यंगात्मक हमला बोला है| ब्रिटेन की द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने राहुल की काबिलियत पर सवाल उठाते हुए उन्हें एक समस्या तक करार दे दिया है। द राहुल प्रॉब्लम शीर्षक से लिखे लेख में संसद में उनकी भागीदारी और बोलने से बचने का जिक्र करते हुए उन्हें भ्रमित व्यक्ति भी बताया गया है। पत्रिका लिखती है कि राहुल गांधी उस परिवार के वंशज हैं, जिसका भारत पर शासन करने वाली पार्टी पर जबरदस्त प्रभाव रहा है। उन्हें अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल उम्मीदवार बताते हुए इस बात का भी जिक्र किया गया है कि आने वाले सप्ताह में उन्हें पार्टी में नया पद मिल सकता है या मंत्री बनाया जा सकता है। पत्रिका ने अभी तक सरकार में कोई बड़ी जिम्मेदारी लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाने की राहुल की आदत को उनकी योग्यता से जोड़ दिया है। पत्रिका का दावा है कि एक नेता के तौर पर राहुल अपनी योग्यता साबित करने में नाकाम रहे हैं। वह शर्मीले हैं और पत्रकारों व राजनीतिक विरोधियों से बात करते हुए झिझकते हैं। संसद में आवाज बुलंद करने में भी राहुल पीछे हैं। कोई नहीं जानता कि राहुल गांधी के पास क्या क्षमता है? अपनी पढ़ाई, लंदन में किए गए काम को छिपाने और उस पर रक्षात्मक रहने के लिए भी कांग्रेस महासचिव पर सवाल खड़े किए गए हैं। लेख में राहुल को उत्तर प्रदेश की धार्मिक और जातीय सच्चाई समझ पाने में भी असफल बताया गया है। एक भारतीय पत्रकार की राहुल पर लिखी किताब का हवाला देते हुए कहा गया है कि कांग्रेस महासचिव ने अभी तक यूथ विंग और विधानसभा चुनावों में ही पार्टी का नेतृत्व किया है। यही नहीं, दोनों ही मोर्चो पर उन्हें खास सफलता भी नहीं मिली है।

 

प्रधानमंत्री को अंदरअचीवर, पालतू (पूडल), गैरजिम्मेदार कहने वाले विदेशी मीडिया का राहुल गाँधी पर हमलावर होना उनकी भावी प्रधानमंत्री की राह को तो कठिन बना ही देगा, पार्टी को भी राहुल की नाकामयाबियों पर उठ रहे सवालों का जवाब देना मुश्किल होगा| यह दीगर है कि बिहार और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार को राहुल की हार से जोड़कर देखा और प्रचारित किया गया किन्तु यह भी सच है कि राहुल इन दोनों राज्यों के सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक ताने-बाने को समझपाने में असफल हुए हैं| अपने इर्द-गिर्द ठाकुर लाबी को रखना और उनपर हद से ज्यादा आश्रित होना ही राहुल को राजनैतिक सच्चाई से विमुख करता रहा है| और राहुल को जब यह बात समझ आई तो उन्होंने समाजवादी बनने के चक्कर में पार्टी का नुकसान कर दिया| देखा जाए तो राहुल की नाकामयाबियों की फेरहिस्त में कांग्रेसियों के अनुचित बयानों से लेकर बुरे समय का योगदान अधिक रहा है लेकिन देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का वारिस होने के नाते उनसे इतनी तो उम्मीद थी ही कि वे राजनीतिक समझबूझ का परिचय देते हुए परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढाते| हाँ, पत्रिका का यह दावा कि राहुल जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते हैं, सच प्रतीत होता है| संसद में राहुल को देश ने बोलते हुए यदा-कदा ही सुना है| मुझे याद है कि बिहार और उसके बाद उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में राहुल का वादा होता था कि अब मैं आपका साथ हमेशा दूंगा किन्तु सभी जानते हैं कि चुनाव के बाद राहुल कितनी बार बिहार-उत्तरप्रदेश गए? जहां तक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने की बात है तो यहाँ एक तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा कि कांग्रेस पार्टी और सोनिया गाँधी खुद राहुल को बड़ी जिम्मेदारी देने में संशय की स्थिति में हैं| ऐसी खबरें हैं कि कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देख अपनी भद पिटवा चुके राहुल को पार्टी गुजरात चुनाव में मोदी के समक्ष लाने से भी डर रही है| ज़रा सोचिए, राहुल जिम्मेदार बने भी तो कैसे? राहुल के साथ सबसे बड़ी दिक्कत उनकी वह सोच है जो भारत की अधिसंख्य जनसंख्या की सोच से मेल नहीं खाती| खैर मनमोहन सिंह की आलोचना करने में विदेशी मीडिया के नैवैशिक हितों की बात सामने आ रही हो, राहुल की आलोचना के पीछे का मंतव्य अभी स्पष्ट नहीं है पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अब राहुल को भी फूंक-फूंक का राजनीतिक कदमताल करनी होगी वरना उनकी कमजोरियों व विफलताओं का मूल्यांकन तो शुरू हो ही गया है कहीं उन्हें चूका हुआ न साबित कर दिया जाए|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

1 COMMENT

  1. अभी इंतजार कीजिये ,सन ऑफ़ इंडिया जैसे ही प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे,तब ही उनकी प्रतिभा का मूल्यांकन करना उचित होगा.सच तो यह है कि पाश्चात्य मीडिया और उसके बहकावे में आ कर कुछ भारतीय नेताओं ने ऐसे फालतू के प्रशन करने शुरू कर दिए हैं जिन पर बहस करना बे मतलब है.राजीव ने जब सत्ता संभाली थी तब उन के बारे में क्या राय थी , लेकिन आज सब उन को याद करते हैं.थोडा धैर्य रखें.फिर विचे कर आकलन करें.

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