क्या सनातन वैदिक धर्म अमर है और इसके सभी अनुयायी सुरक्षित हैं?

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-मनमोहन कुमार आर्य

               संसार का सबसे पुराना धर्म और संस्कृति वेद और वैदिक धर्म है। वैदिक मान्यताओं के अनुकूल व अनुरूप ही जीवन शैली से सम्बन्धित सभी विचार, मान्यतायें एवं परम्परायें वैदिक संस्कृति का निर्माण करती हैं व कहलाती हैं। जो मान्यता व कर्म वेदानुकूल हों, वही मनुष्यों के लिये करने योग्य होता है और जो वेदानुकूल न हो, वेद के विपरीत हो, वह करणीय नहीं होता। सृष्टि की उत्पत्ति वर्तमान समय से 1.96 अरब वर्ष पूर्व हुई थी। सृष्टि की उत्पत्ति परमात्मा ने की थी। इसका प्रयोजन था कि अनादि व अमर सत्ता अल्पज्ञ जीवों को सुख व कल्याण की प्राप्ति करा कर उसे दुःखों से छुड़ाना था। इसी प्रयोजन की पूर्ति के लिये परमात्मा ने वेदज्ञान दिया था। इसी वेद ज्ञान के आधार पर सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल तक सभी व्यवस्थायें चली हैं। वैदिक काल की विशेषता थी कि तब सबसे अधिक सम्मान ऋषियों व वेद के विद्वानों का होता था। राम और कृष्ण भी ऋषियों सहित धर्मज्ञ विद्वानों का सम्मान करते थे। उनकी रक्षा का दायित्व भी वह अपने ऊपर लेते थे। महाभारत काल और देश की आजादी के बाद जो लोग सत्ता में आये उन्होंने सत्य एवं प्राणिमात्र की हितकारी मान्यताओं के पोषक वैदिक धर्म का पोषण नहीं किया और न ही वेद के विद्वानों और प्राचीन ऋषियों के ज्ञान वैदिक साहित्य सहित उपनिषदों एवं दर्शन आदि ग्रन्थों का सम्मान ही किया।

               वेद, ऋषियों व धर्माचार करने वाले सज्जन पुरुषों का सत्कार व सम्मान न करना व्यवस्थाओं से जुड़े लोगों को अज्ञानी व पक्षपाती सिद्ध करता है। ऐसा लगता है कि इसके पीछे वैदिक धर्म व संस्कृति को समाप्त करने का कहीं कोई षडयन्त्र था। इसी कारण वह वेद विरोधी मान्यताओं व सिद्धान्तों पर आधारित राजनीतिक एवं धार्मिक संगठनों को महत्व देते आये हैं। उन्होंने मत-मतान्तरों के लिये अपनी मान्यताओं को सत्य की कसौटी पर कसने का विधान नहीं किया। ऋषि दयानन्द पहले व्यक्ति थे जिन्होंने वैदिक धर्म की प्रत्येक मान्यता व सिद्धान्त को सत्य की कसौटी पर कसा था और सत्य को स्वीकार भी किया था। उन्होंने अन्य मत-मतान्तरों को भी अपने मत को इसी प्रकार से परीक्षा कर सुधार करने की प्रेरणा की थी। आजादी के बाद की सरकारों की नीतियों का ही परिणाम है कि आज की केन्द्र की सरकार यदि देश हित में कोई अच्छा निर्णय करती है तो विपक्षी व समाज के कुछ लोग अनावश्यक रूप से अच्छे कामों का विरोध ही नहीं करते अपितु हिंसा व आगजनी भी करते हैं। केन्द्र सरकार ने पिछले दिनों सीएए, एनआरसी, धारा 370 व 35-ए को निरस्त करने के अच्छे निर्णय लिये हैं, संसद के दोनों सदनों में वह बहुमत से पारित भी हुए हैं तो भी देश के कुछ मत, सम्प्रदाय, धर्म और राजनीतिक दल उनका विरोध कर रहे हैं। इसके पीछे अनेक प्रकार के स्वार्थ प्रतीत होते हैं। इस समय देश में जो परिस्थितियां हैं वह किसी भी दृष्टि से देश हित में नहीं हैं। वर्तमान परिस्थितियां एवं घटनाक्रम देश, समाज और वैदिक धर्म के अस्तित्व के लिये खतरे का स्पष्ट संकेत है। हमें लगता है कि इन देश व समाज विरोधी आन्दोलनों व विचारों को सरकार को पूरी शक्ति से कुचलना होगा अन्यथा आने वाले समय में देश व समाज के हितैषियों व भक्तों को बड़े खराब दुर्दिन देखने पड़ सकते हैं। हमारे देश की आर्य हिन्दू जनता इन खतरों से पूरी तरह सावधान व सजग नहीं है। हमारे सभी धार्मिक नेताओं, मन्दिरों के पुजारी व आचार्यों का कर्तव्य हैं कि वह जनता को धर्म रक्षा के उपाय बतायें और उन्हें खतरों से सावधान कर आपस में संगठित होने तथा किसी एक पर आपत्ति व विपदा आने पर सब मिलकर पीड़ित व्यक्ति व व्यक्तियों की रक्षा करने का जाति के सभी लोगों को पाठ पढ़ायें व शिक्षा दें।

               हम सुरक्षित हैं या नहीं यह प्रत्येक विवेकवान पुरुष जानता है। इस प्रश्न को समझने के लिये हमें आठवीं शताब्दी में सिन्ध के हिन्दू आर्य राजा दाहर द्वारा एक मुस्लिम को शरण देने और बाद में उन पर विधर्मियों का आक्रमण और शरण प्राप्त विधर्मी द्वारा राजा दाहर की हत्या व देश को लूटने व गुलाम बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई थी। हमें विधर्मियों ने समय-समय पर धोखा दिया। हमारे सज्जन वीर पूर्वज महापुरुषों को मारा काटा गाया, हमारी बहू बेटियों को अपमानित किया गया तथा हमारे पूर्वजों के साथ असत्य, झूठ व धोखे का व्यवहार किया गया। यह मानसिकता कुछ में हम देश की आजादी के बाद भी देख रहे हैं। अब पुनः देश के यशस्वी एवं विश्व में लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी के विरोध के लिये उन लोगों के देश व समाज विरोधी क्रिया-कलापों को देख रहे हैं। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हमारा वेद, वैदिक मान्यताओं सिद्धान्तों से दूर होना तथा असंगठित होना है। सनातन वैदिक आर्य हिन्दू धर्म में आर्य-हिन्दुओं में ही अनेक गुरुडमों के नाम से शाखाये-प्रशाखायें बन गई हैं। यह सब अपने पृथक-पृथक संगठन बनाये हुए हैं। राम व कृष्ण को मानने वाले यह लोग कभी किसी जातीय संकट में एक नहीं होते। दूसरे मुट्ठी भर लोग इन पर आक्रमण करते हैं और इन्हें अपना गुलाम बना लेते हैं। पहले हम अपनी एकता के अभाव व असंगठन के कारण मुसलिम लुटरों व आक्रमणकारियों से लुटे व पीटे, हमने शास्त्र में वर्जित दया व अहिंसा का परिचय दिया। राम व कृष्ण के गुणों की उपेक्षा की व मौन रहे। यहां तक की हिंसक लोगों की आलोचना से भी हम बचते रहे। हमारे आधुनिक राजाओं को यही नहीं पता था कि दुष्टों, लुटेरे व शत्रुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? राम व कृष्ण के मानने वाले सच्चे लोग देश में होते तो दुष्ट विरोधी कभी सफल न होते। उन विधर्मियों के व्यवहारों ने जाहिर किया कि उनमें नैतिकता, मानवता तथा स्त्री व बच्चों के प्रति भी दया का भाव नहीं है। यही कारण था कि पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं को लाखों की संख्या में मारा-काटा गया। आज वहां हिन्दुओं की जनसंख्या 15-20 प्रतिशत से घटकर 1 प्रतिशत पर आ गई है। यह लाखों हिन्दू लोग, स्त्री, पुरुष व बच्चे, कहां चले गये, इस पर सेकुलरवादी लोग न तो विचार करते हैं, न उनके पास कोई उत्तर है। वह इनसे उचित सबक भी नहीं लेते। इन घटनाओं के अर्थ स्पष्ट हैं जो इतिहास का अध्ययन करने वाले, देश विदेश के समाचारों का विश्लेषण करने वाले तथा विवेकवान लोगों को समझ में आते हैं। इनका निष्कर्ष है कि यदि इतिहास में हिन्दू जाति को जीवित बचना है, अपनी माताओं, बहिनों व बेटियों का अपमान न हो यदि इसकी चिन्ता है तो हिन्दू विरोधी विचारों वाले मतों पर विश्वास न कर अपने सभी बन्धुओं को संगठित कर विधर्मियों से अधिक शक्तिशाली बनना पड़ेगा। अपनी जनसंख्या का अनुपात उनकी वृद्धि दर से अधिक नहीं तो बराबर रखना पड़ेगा नहीं तो हमारे साथ वह होगा जो पाकिस्तान, बंगलादेश तथा अफगानिस्तान में हिन्दुओं के साथ हुआ व होता है।

               आठवीं शताब्दी और मुगल काल में शासकों की जो मानसिकता थी, पाकिस्तान के समय कुछ लोगों की जो मानसिकता थी जिसके कारण भारत का विभाजन हुआ, पाकिस्तान बना, लाखों लोगों को साम्प्रदायिक उन्मादवश मारा गया, पाकिस्तान में हिन्दुओं का समूल उच्छेद हुआ, कश्मीर में हिन्दू पण्डितों के साथ जो अमानवीय और मानवता पर कलंक की घटनायें हुईं, इस प्रकार की मानसिकता जब तक है तब तक वैदिक धर्म और संस्कृति तथा इसके मानने वाले सुरक्षित नहीं हैं। इनका अपराध यही है कि यह सत्य सनातन वैदिक धर्म को जानने का प्रयास नहीं करते और अविद्यायुक्त पुराणों पर आधारित वेदविरुद्ध मान्यताओं व सिद्धान्तों से युक्त मत का पालन कर रहे हैं जिनका कोई तार्किक व युक्तिसंगत आधार नहीं है। इनका एक अपराध यह भी है कि यह दूसरे मतों के लोगों के समान संगठित नहीं हैं। इनके धार्मिक लोग इनका सही मार्गदर्शन करने में असमर्थ अथवा अयोग्य कहे जा सकते हैं। यदि हमारे बन्धु दूसरे मत के उन लोगों के समान जो हमारे भाई बहिनों का धर्मान्तरण वा मतान्तरण करते हैं, उनके समान संगठित होकर यह भी उनके जैसे यथायोग्य कार्य करने लगे तो समस्या का हल निकल सकता है। हम देख रहे हैं कि विगत 5000 वर्षों से आर्य जाति जिसका अर्वाचीन नाम हिन्दू पड़ गया है उसने आर्य शब्द का त्याग कर हिन्दू शब्द को अपना लिया है। हिन्दू शब्द न वेद में है, न रामायण और महाभारत में है, न उपनिषद, दर्शन और मनुस्मृति में है और न ही रामचरितमानस आदि ग्रन्थों में ही है तथापि आर्यों ने अज्ञानतावश व अपनी कुछ कमजोरियों के कारण इस हेय व अपमानजनक नाम को धारण किया हुआ है।

               संस्कृत का शब्द भण्डार संसार की सब भाषाओं से अधिक बड़ा है। हिन्दू शब्द संस्कृत का शब्द नहीं है अतः श्रेष्ठ शब्द आर्य को छोड़कर इस हिन्दू शब्द को ग्रहण व धारण करने का औचीत्य समझ में नहीं आता। ऋषि दयानन्द ने आर्य हिन्दुओं को इससे चेताया था परन्तु हमारे पण्डितों ने एक योग्य डाक्टर की कड़वी कारगर दवा का परित्याग कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चलाई है। हमें इस बात से अत्यन्त पीड़ा होती है कि हमारी हिन्दू जाति संगठित एवं एकरस नहीं है। इतिहास में हिन्दुओं के अपमान की घटनायें पढ़कर भी आत्मा को पीड़ा होती है। ऋषि दयानन्द ने आर्य हिन्दू जाति को अपने पुराने गौरव के अनुरूप संगठित करने सहित इसे धार्मिक दृष्टि से विद्वान बनाने की चुनौती को स्वीकार किया था। हिन्दू जाति ने उनकी इस हितकारी सलाह की उपेक्षा की। योगी अरविन्द जी तक आर्य शब्द की महत्ता को स्वीकार करते थे। सीता जी राम को आर्यपुत्र कहती थी। इसके उदाहरण रामायण में प्राप्त होते हैं। अतः इन सही कार्यों को न मानकर ही हमारा पतन निरन्तर जारी है। बहुत से विद्वान कहते हैं कि अब हिन्दुओं के पास अन्तिम समय है अन्यथा आने वाले कुछ वर्षों में देश का धार्मिक स्वरूप बदल सकता है व बदल जायेगा परन्तु फिर भी हिन्दू सावधान व सजग दिखाई नहीं दे रहा है। इससे अधिक कुछ कहना उचित नहीं है। हम यही कहेंगे कि हमारे जातीय भाईयों को एक यह काम तो करना ही चाहिये कि वह अपने परिवार के सभी सदस्यों को सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का पाठ करने की प्रेरणा करें व उन्हें पढ़ायें। यह काय्र बचपन में ही कर दें। सत्यार्थप्रकाश ही आर्य हिन्दुओं का यथार्थ में धर्म ग्रन्थ है जिसमें सत्य मान्यताओं का प्रकाश किया गया है। यदि सभी हिन्दू सत्यार्थप्रकाश को निष्पक्ष व स्वार्थों का त्याग कर पढ़ेंगे तो उन्हें व जाति को अवश्य लाभ होगा। ऐसे कुछ कार्यों को करके हिन्दू जाति अपनी रक्षा कर सकती है अन्यथा इसका भविष्य अन्धकारमय ही प्रतीत हो रहा है। हिन्दुओं पर यह पंक्तियां पूरी तरह से चरितार्थ होती हैं लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पायी ईश्वर सभी आर्यों व हिन्दुओं को सद्बुद्धि एवं सद्प्रेरणा करें जिससे विश्व की महानतम आर्य जाति अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा करने में सफल हो सके तथा इसका अस्तित्व सदैव बना रहे। ओ३म् शम्।

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