खास अंदाज है विम्बलडन का

-मनीष कुमार जोशी

टेनिस यूं तो पूरे बरस खेला जाता है। चार ग्राण्ड स्लेम और ढेर सारी डबल्यू टीए व एटीपी टूर प्रतियोगिताऐं होती है। इस खेल को पसंद करने वाले इन्हे देखते भी है। परन्तु विम्बलडन का अंदाज ही निराला है। विम्बलडन को शाही टुर्नामेंट माना जाता है। कुछ बात तो है तभी अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, और हॉलीवुड सितारे जब फुर्सत में होते है तो यहां टेनिस देखना पसंद करते है। शाही यह इस मायने में नहीं है कि दूसरे क्षेत्र के सितारे यहां आते है या इस प्रतियोगिता में बरसो से ईग्लैण्ड के शाही परिवार की भागीदारी है बल्कि इसलिए शाही है कि इसकी हर बात में शाही अंदाज झलकता है। ड्रेस कोड, मैच परंपरा और यहां तक की मुकाबलो का भी शाही अंदाज होता है।

ये बात नहीं है टेनिस की दूसरी ग्राण्ड स्लेम प्रतियोगिताओ में मुकाबले रोचक नहीं होते है परन्तु विम्बलडन में इस मायने में मुकाबले रोचक होते है कि यहां मौजूदा चैम्पियन को हराना हमेषा आसान नहीं होता है। रोजर फेडरर को 2003 से लेकर 2007 तक कोई हरा नहीं पाया और इसी तरह मार्टिना नवरातलोवा ने वैसे कई खिताब यहां जीत परन्तु 1982 से 1097 तक वह अजेय रही । इस मामले में टॉड वुडब्रिज तो जैसे यहां के होकर ही रह गये। 1993 से 2004 तक वे युगल मुकाबलो मे लगातार जीतते रहे। यहां सिंहासन पर आसीन होने वाले को अपदस्थ करना कभी भी आसान नहीं रहा । दरअसल टेनिस की दूसरी ग्राण्ड स्लेम क्ले कोर्ट और हार्ड कोर्ट पर खेली जाती है जबकि विम्बल्डन ग्रास कोर्ट पर। क्ले कोर्ट और हार्ड कोर्ट पर गेंद तेजी से आती है जबकि ग्रास कोर्ट पर आप गेंद के साथ प्रयोग कर सकते हो। यहां आपके पास गेंद आने से पहले निर्णय लेने का पूरा समय होता है। यहां कलात्मक टेनिस का नजारा देखा जा सकता है। लम्बी रैलीज के बाद जब खिलाड़ी अपने क्रास हैण्ड शॉट के साथ अंक लेता है तो पूरे कोर्ट तालियों की करतल ध्वनि संगीत की स्वर लहरियों सा अहसास देती है। गेंद शास्त्रीय राग के साथ कदम ताल करती हुई महसूस होती है। लम्बे चलने वाले मैच यहां बिलकुल उबाऊ नहीं होते है। यहां की टेनिस दर्षको के दिल को सकून महसूस कराती है।

यह प्रतियोगिता हमेंषा से ही दो प्रतियोगी जंग की साक्षी रही है। हर दौर में दो प्रतियोगी खिताब के लिए जुझते नजर आये है। अस्सी के दशक में क्रिस एवर्ट लॉयड व नवरातिलोवा के बीच हमेंशा संघर्ष देखने को मिलता था। नब्बे के दशक में इवान लैण्डल हर बार विजेता के साथ दो चार हाथ करते नजर आये। यह अलग बात है कि वे अपने शो केस के लिए इस शाही खिताब को नहीं ला पाये। 6 बार के चैम्पियन पीट सैम्प्रास को ही सीमित चुन्नौत्ती का ही सामना करना पड़ा। स्टेफी ग्राफ और मोनिका सैलेस कई सालो तक इस प्रतियोगिता के फाईनल की शोभा बढ़ाते रहे। ग्राफ और हिंगीस का भी संघर्ष कुछ सालो तक चलता रहा। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है यहां नये चैम्पियन की संभावना बहुत कम होती है। पिछले दो दशक में परिणामों में उलटफेर नाम मात्र के नजर आये। यहां विजेता बनने वाला अधिकांशत: प्रथम दस वरीयता में ही होता है।

इस शाही प्रतियोगिता का शाही अंदाज आज भी जारी है। 6 बार के चैम्पियन रोजर फेडरर को बराबर राफेल नडाल से चुन्नौती मिल रही है। क्ले कोर्ट का बादशाह राफेल नडाल 2008 में यहां भी बादषाह बन बैठा परन्तु रोजर फेडरर ने अगले ही साल उससे यह ताज छिन लिया। 2010 में भी यह जंग जारी रहेगी। क्ले किंग नडाल फिर फेडरर को चुन्नौती पेश करेगा। जब टेनिस के ये दो सितारे टकराते है तो खेल अपने रोमांच के शिखर पर होता है। इसी रोमांच में डूबने के लिए दुनिया के खेल प्रेमी दूसरे खेलो की बड़ी प्रतियोगिताओ को छोड़कर इसे देखते है। महिलाओ में भी पिछले सात सालो से मुख्य जंग सेरेना और वीनस विलियम्स के बीच ही रही है। इस बार भी यह जंग जारी रहने की उम्मीद है। तेजी से उभर रही स्टोसुर इसमें बाधा बन सकती है। फिर भी सेरेना और वीनस की चमक फीकी करना हर एक के बस की बात नहीं है।

यहां खेल में एक अनुशासन दिखाई देता हैं। कोर्ट में खिलाड़ियों के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के यहां उदाहरण कम है। दर्षको और खिलाड़ियों का संयमित व्यवहार इस प्रतियोगिता को और आला दर्जे की बनाता है। रैकिट और गेंद के बीच उत्पन्न कलात्मकता सीधे दिल से टकराती है। यहां महज दर्शक फेडरर और नडाल के बीच मैच नहीं देखने आता है बल्कि टेनिस की उस कलाकृति को महसूस करने आता है जो ऐसे महान खिलाड़ियों के बीच खेले जाने वाले खेल से रची जाती है। ऐसा सिर्फ विम्बलडन के ग्रास कोर्ट पर ही संभव है।

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