”बहुत कठिन है, डगर पनघट की

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 वीरेन्द्र सिंह परिहार

अभी 15 अक्टूबर को दिल्ली की एक अदालत ने जुलार्इ 2008 के ”वोट के बदले नोट मामले की जांच पुलिस को आगे करने को कहा, ताकि छिपे हुए सच को बाहर लाया जा सके। भाजपा संसद एवं आरोपी फग्गन सिंह कुलस्ते के इस अनुरोध पर की जांच कर यह पता लगाया जाएं कि मामले के वास्तविक लाभार्थी कौन है? विशेष न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह धन के स्त्रोत का पता लगाए तथा इस घोटाले के हर संभव पहलू पर जांच करें और छ: माह के भीतर अतिरिक्त आरोप-पत्र दाखिल करें। अदालत ने कहा कि रिकार्ड में सामने आए तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए मेरी यह सुविचारित धारणा है कि जांच एजेन्सी अधिकारी को निष्पक्ष एवं समुचित तरीके से मामले के हर पहलू से जांच करनी चाहिए, ताकि कोर्इ त्रुटि न रह जाये। जांच से सारे संदेह दूर होने चाहिए और लोगों के मन में विश्वास स्थापित होना चाहिए। न्यायाधीश ने आगे जांच अधिकारी को उस शपथ-पत्र के बारे में जो धन के स्त्रोत का पता लगाने के लिए 02.09.2011 को दिया गया था उस ओर ध्यान खींचा।

न्यायालय के उपरोक्त आदेश से स्पष्ट है कि पुलिस अपनी जांच में कर्इ छिपे तथ्यों को बाहर नहीं लार्इ है। अदालत ने कहीं-न-कहीं यह भी माना है कि ”वोट के लिए नोट प्रकरण में निष्पक्ष तरीके से जांच नही की गर्इ है। तभी तो वह हर पहलू से जांच करने और लोगों के मन से संदेह दूर होने की बात कह रही है। यह भी सच है कि सिर्फ उपरोक्त अदालत ने ही नहीं बलिक देश की शीर्ष अदालत भी पुलिस को तीन सांसदों को दिए गए रूपयों के स्त्रोत का पता लगाने को कह चुकी हैं। इसी तारतम्य में जांच अधिकारी ने संबंधित अदालत में 2 सितम्बर 2011 को गला छुड़ाने के लिए तत्संबंध में शपथ-पत्र भले दे दिया हो, पर साल भर बाद भी इस दिशा में रंचमात्र की प्रगति हुर्इ हो, ऐसा लगता है-नहीं। अब यह स्थापित तथ्य है कि जुलार्इ 2008 में यू.पी.ए. सरकार के विश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्ष के कर्इ सांसदों को खरीदा गया था।

इसी तारतम्य में तात्कालिन समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह के द्वारा भाजपा के तीन सांसदों फग्गन सिंह कुलस्ते, अशोक अर्गल एवं महावीर भगोरिया को एक करोड रू. पाला बदलने के लिए बतौर एडवांस भेजे गये थे। उक्त करोड़ नोट की गडिडयों को भाजपा के तीनों सांसदों ने 22 जुलार्इ 2008 को लहराकर पूरे देश को दिखाया था। इस मामले में एक सी.डी. भी बनी थी, जिससे सारी सच्चार्इ सामने आ जाती, पर न तो उस चैनल ने उक्त सी.डी. को समय पर दिखाया और न लोकसभा के स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने लोकसभा के विशेषाधिकार के नाम पर उक्त सी.डी. को बाहर आने दिया। इसकी जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति भी बनी, पर उसने लीपापोती का कार्य किया। हा चेहरा बचाने के लिए पुलिस में एक औपचारिक रिपोर्ट जरूर दर्ज करा दी गर्इ। पर चूकि मामला बहुत खास लोगों से जुडा था, इसलिए पुलिस भी उस रिपोर्ट पर कुण्डली मार कर बैठ गर्इ। जब पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त जी.एम. लिगदोह इस मामलों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय गए और सर्वोच्च न्यायालय का डण्डा पुलिस पर चला तो संजीव सक्सेना जो जिसके द्वारा अमर सिंह ने एक करोड़ भेजे थे, और सुहैल हिन्दुस्तानी को गिरफ्तार किया गया। आगे चलकर 6 सितम्बर 2011 को अमर सिंह को तो गिरफ्तार किया गया पर साथ में फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरिया को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि इनकी भूमिका भ्रष्टाचार का भण्डाफोड़ करने वालों की थी।बाद में विकीलिक्स के खुलासे के बाद कि जुलार्इ 2008 में कर्इ विपक्षी सांसदों को पाला बदलने के लिए दस-दस करोड़ रू.दिए गए थे। अमर सिंह ने कहा कि मै गर्व के साथ कहता हू कि मैने ”नोट फार वोट काण्ड को अंजाम दिया था और यह मैने अपने तब के मुखिया मुलायम सिंह के कहने पर किया था।

बाबजूद इसके न्यायालय के कहने और पुलिस के जांच अधिकारी के शपथ-पत्र के पुलिस द्वारा आगे कोर्इ जांच नही की गर्इ। जबकि रूपएं कहा से आए और अमर सिंह को रूपए किसने दिए, यह पता लगाने में कोर्इ बहुत कठिनार्इ नही थी। एक करोड़ रू. लहराने वाले सांसदों ने उस वक्त यह बताया था कि जब रवेतीरमण प्रताप सिंह के द्वारा अमर सिंह ने अपने आवास पर उन्हे बुलवाया तो फोन पर बात अहमद पटेल से करार्इ थी। मामले का एक आरोपी सुहैह हिन्दुस्तानी तो चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि इसमें अमर सिंह और अहमद पटेल का हाथ है। अमर सिंह यह भी कह चुके है कि मै सच्चार्इ बता सकता हू, पर मामला न्यायालय में हैं । पर यह तो एक बहाना है, पहली चीज तो यह कि अमर सिंह यदि सच्चार्इ बताते है,तो अपराध की संस्वीकृति होगी। दूसरी बात यह कि अमर सिंह स्वत: कांग्रेस में ठौर-ठिकाना तलाश रहे है। अब यदि इस प्रकरण में अहमद पटेल का हाथ है, तो यह सभी को पता होगा कि अहमद पटेल श्रीमती सोनिया गांधी के सबसे खास है, और उन्हे सोनिया एवं राहुल के बाद सत्ता-संस्थान का सबसे ताकतवार व्यकित कहा जा सकता है। एक बात यह भी तय है कि यदि इसमें अहमद पटेल की भूमिका है, तो इसमें खानदान की भी सहमति रही होगी।

ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह कि पुलिस आगे जांच करें तो कैसे? दिल्ली पुलिस वैसे भी केन्द्र सरकार के अन्तर्गत है, और वह अपने आकाओं के विरूद्ध कैसे जांच कर सकती है? अब भले न्यायालय रूपयों के स्त्रोतों का पता लगाने और सी.डी. में रहस्यमय व्यकित के बारे में जांच करने का आदेश दे। पर जैसा कि एक रूसी कहावत है -:” र्इश्वर तो दूर है, अधिकारी तो नजदीक है।” यानी न्यायालय जब देखेगी तब, सत्ता तो तुरंत ही निबटा देगी। तभी तो मामला खिंचता ही जा रहा है, और कभी अंजाम में पहुंचेगा-कहा नही जा सकता। कुल मिलाकर इस मामले में वहीं कहावत चरितार्थ होती हैै-”बहुत कठिन है डगर पनघट की।

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