तनवीर जाफ़री
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर,पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं प्रसिद्ध उद्योगपति सलमान तासीर को गत् 4 जनवरी को उन्हीं के एक अंगरक्षक ने बेरहमी से गोलियों से भून डाला। मुमताज़ क़ादरी नामक इस हत्यारे ने हत्या के पश्चात अपना अपराध कुबूल करते हुए सलमान तासीर की मौत पर खुशी ज़ाहिर की तथा यह कहा कि वे चूंकि पाकिस्तान में लागू ईश निंदा क़ानून के विरोधी थे इसलिए वह अल्लाह,कुरान व इस्लाम के भी दुश्मन थे। हत्यारे क़ादरी को मौक-ए-वारदात पर फौरन गिरफतार कर लिया गया। उस समय उसके चेहरे पर किसी तरह की चिंता,िफक्र या अफसोस की नहीं बल्कि चैन और ़ाुशी की लकीरें खिंची साफ नज़र आ रही थीं। सलमान तासीर की हत्या के बाद एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि आिखर किस का इस्लाम सच्चा है और कौन वास्तविक इस्लाम की शिक्षाओं का अनुसरण कर रहा है। सलमान तासीर जैसे उदारवादी एवं प्रगतिशील विचारधारा रखने वाले सहिष्णुशील मुस्लिम समाज के लोग या फिर मुमताज़ कादरी जैसे तालिबानी, कट्टरपंथी, अतिवादी तथा कठ्मुल्लाओं द्वारा बताए जाने वाले इस्लाम के रास्ते पर चलने वाले मुसलमान?
पाकिस्तान में कट्टरपंथी एवं अतिवादी इस्लाम का परचम जनरल जि़या-उल-हक के समय में बुलंद हुआ था। कहा जा सकता है कि हत्या जैसे एक आरोप को बहाना बना कर जनरल जि़या ने उदारवादी इस्लाम एवं मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले ज़ुल्िफकार अली भुट्टो को फांसी के त ़ते पर चढ़ा दिया। उसी दौर से पाकिस्तान में कट्टरपंथी,अहिष्णुशील एवं आतंकी प्रवृति के तथाकथित इस्लाम की बेल परवान चढऩी शुरु हो गई। और आज के समय में उसी पाकिस्तान को जि़या-उल-हक द्वारा हमवार की गई इस्लामी राह पर चलते हुए अपनी प्रतिष्ठा को लेकर क्या कीमत चुकानी पड़ रही है यह पूरी दुनिया देख रही है। आज पाकिस्तान का उदारवादी मुसलमान मजबूर, असहाय, लाचार, सहमा हुआ तथा पाकिस्तान की पूरी दुनिया में हो रही बदनामी को देखने के लिए बेबस व मजबूर है।
अब सलमान तासीर की हत्या को ही इन आतंकवादी प्रवृति के बदनामशुदा तथाकथित मुसलमानों के इस्लामी मापदंडों से ही तोलने की कोशिश की जाए और देखा जाए कि तथाकथित इस्लामपरस्तों द्वारा की गई
तनवीर जाफरी लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं संपर्क tjafri1@gmail.कॉम tanveerjafriamb@gmail.
हत्या क्या इस्लामी नज़रिए से की जाने वाली हत्या कही जा सकती है? पहला सवाल तो यह है कि जिस नज़रिए को लेकर हत्यारे ने सलमान की हत्या की क्या इस्लामी तारीख में हज़रत मोह मद, हज़रत अली या उनके परिवार के किसी जि़ मेदार सदस्य द्वारा इन परिस्थितियों में किसी की हत्या की गई या करवाई गई? ईश निंदा करने वाले को सज़ा-ए-मौत दिए जाने का फरमान क्या पैगंबर हज़रत मोह मद या उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा बनाया गया है? और इन सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या यही इस्लामी शिक्षाओं का तक़ाज़ा है कि जिस व्यक्ति की जान की सुरक्षा के लिए आपको तैनात किया गया है आप उसी की हत्या कर डालें और वह भी धर्म के नाम पर? हकीकत में इससे बड़ा अधार्मिक,अमानवीय और गैर इस्लामी काम तो कुछ हो ही नहीं सकता कि आप किसी की पीठ में छुरा घोंपे। जिस व्यक्ति की रक्षा में आपको तैनात किया गया है उसी की नौकरी तथा उसी आय से आप अपने परिवार व बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। ऐसे में नमक हरामी की इससे बड़ी मिसाल और दूसरी क्या हो सकती है कि आप अपने उसी मालिक को कत्ल कर दें जिसकी रक्षा के लिए आपको तैनात किया गया है। इतना ही नहीं बल्कि अपनी सेवा के दौरान उसकी हिफाज़त करने की आपने कसम भी खाई हुई है।
सलमान तासीर का गुनाह आखिर था क्या? यही कि वह एक ईसाई महिला आसिया बीबी नामक अबला नारी को ईश निंदा कानून के तहत दी गई आजीवन कारावास की सज़ा का विरोध कर रहे थे। जबकि कट्टरपंथी ताकतें उस महिला को फांसी पर लटकाने की पक्षधर हैं। यहां यह बात काबिलेगौर है कि जिस महिला पर ईश निंदा किए जाने का आरोप है वही महिला स्वयं अपने ऊपर लगे आरोपों को नकार रही है तथा इन आरोपों को अपने विरुद्ध एक सुनियोजित साजि़श बता रही है। ऐसे में ईश निंदा करने के आरोपों के खंडन के बावजूद भी उसे आजीवन कारावास की सज़ा सुनाया जाना न्यायसंगत हरगिज़ नहीं प्रतीत होता। हां इसे तालिबानी फरमान या राक्षसी कृत्य ज़रूर माना जा सकता है। मेरे विचार से उस महिला के पक्ष में खड़ा होना, उसकी पैरवी करना तथा उसके प्रति हमदर्दी दिखाना ज़रूर इस्लामी शिक्षाओं से मिलने वाली उस प्रेरणा का हिस्सा कहा जा सकता है जो हमें सहिष्णुता,सद्भाव प्रेम,शंति जैसी सीख देती हैं। इस्लामी इतिहास में औरत को बेपर्दा करना,उसकी गिरफ्तारी करना तथा दरबदर घुमाने व अपमानित करने जैसा काम तो केवल करबला के मैदान में यज़ीद जैसे तथाकथित मुस्लिम दुराचारी शासक द्वारा ही किया गया था। और यदि आज भी उसी सोच की पुनरावृति या अनुसरण होता है तो नि:संदेह यह भी यज़ीदी ताकतों का ही खेल कहा जाएगा न कि इस्लामी शिक्षाओं का परिणाम।
सलमान तासीर के कत्ल के बाद एक बार फिर यह पहलू भी उजागर हुआ है कि इस्लाम में वैचारिक टकराव का कारण यही है कि इस्लाम धर्म को सत्ता, शासन, राजाओं, बादशाहों व शासकों के नज़रिए से देखा जाने लगा है। जबकि वास्तविक इस्लाम व इस्लामी शिक्षाएं दुनिया को सांप्रदायिकता, कट्टरपंथ तथा सीमित सोच का संदेश नहीं बल्कि समाजिक सद्भाव व समानता का संदेश देती हैं। पैग़ंबर मोहम्मद साहब तथा उनके परिजनों द्वारा दिखाई गई राह दुनिया के मुसलमानों को त्याग, कुर्बानी, परमार्थ तथा सहयोग की सीख देती है। हज़रत मोहम्मद साहब का इस्लाम तो यह सिखाता है कि खुद भूखे रह कर दूसरों को खाना कैसे खिलाया जाता है। खुद को दु:ख व संकट में डालकर दूसरों को आराम, सुकून व संतोष पहुंचाना ही इस्लामी शिक्षाओं का प्रमुख भाग है। वफादारी, जिम्मेदारी, नमक हलाली जैसी बातें इस्लाम का आभूषण हैं। ऐसे में इस बात की कहां कोई गुंजाईश नजऱ नहीं आती कि किसी अबला नारी को धर्म के नाम पर आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी जाए तथा इस प्रकार का काला कानून बताने का साहस करने वालों को उन लोगों द्वारा मौत के घाट उतार दिया जाए जोकि स्वयं मरने वाले का अंगरक्षक हो और अपने चेहरे पर खुदा का नूर बताने वाली दाढ़ी रखी हुई हो?
वास्तव में राजाओं व शहनशाहों के तथा पैगम्बरों, इमामों व फकीरों के अपने-अपने इस्लाम परिभाषित हो रहे हैं और इसे इस्लाम धर्म का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस्लाम धर्म में व्याप्त यह दो विपरीत विचारधाराएं आज से नहीं बल्कि इस्लाम धर्म के उदय के समय से ही जारी हैं। बहुत से ऐसे लोग जो इस्लामी विचारधाराओं की आलोचना करते हैं उनका यह मानना है कि दुनिया में इस्लाम धर्म के तेज़ी से फैलने की वजह ही यही थी कि इस धर्म को मुस्लिम शासकों, राजाओं, आक्रांताओं तथा लुटेरों द्वारा तलवार के ज़ोर पर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैलाने की कोशिश की गई। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। इस्लाम धर्म का सबसे तेज़ी से विकास तथा इसका प्रभाव हज़रत मोहम्मद साहब की प्रेम व सद्भावपूर्ण शिक्षाओं के परिणामस्वरूप हुआ। जिसका प्रमाण यह है कि हज़रत मोह मद की पैगम्बरी के मात्र 23 वर्ष के संक्षिप्त काल में ही इस्लाम पूरे अरब महाद्वीप में पूरी तरह फैल गया। जबकि 1400 वर्ष पूर्व संचार एवं समाचार के कोई आधुनिक साधन नहीं थे। अब ठीक इसके विपरीत यदि हम शहंशाहों, राजाओं व लुटेरों के इस्लाम की बात करें तो उदाहरण के तौर पर केवल भारत में ही लगभग 900 वर्षों तक मुस्लिम राजाओं ने देश के विभिन्न भागों पर शासन किया। परंतु इन मुस्लिम शासकों की तलवारें भारत जैसे देश में समाज में वैमनस्य फैलाने के काम तो ज़रूर आईं परंतु पूरे देश को मुसलमान धर्म अपनाए जाने पर बाध्य नहीं कर सकीं। इसका कारण केवल यही है कि यह वह इस्लाम नहीं था जो हज़रत मोहम्मद एक सामाजिक व्यवस्था एवं सामाजिक प्रबंधन के रूप में फैलाना चाहते थे बल्कि यह वही इस्लाम था जो करबला में भी नजऱ आया था। भारत में भी दिखाई दिया और आज पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी साफ दिखाई दे रहा है। यानी सत्ताधीशों का इस्लाम, तालिबानों, कट्टरपंथियों व कठ्मुल्लाओं का इस्लाम। ऐसे में इस निषकर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि सलमान तासीर की हत्या करने वाला शख्स वास्तव मे कौन से इस्लाम की विचारधारा से प्रभावित था? तथा शहीद होने वाले सलमान तासीर वास्तव में खुदापरस्त मुसलमान थे या हत्यारा कादरी?
बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख है सलमान तासीर की हत्या से न केवल पाकिस्तान के उदारवादी मुस्लिम बल्कि भारत के भी प्रगतिशील मुस्लिम और सहिष्णु हिन्दू हतप्रभ हैं ,हम आशा करते हैं की जनाब तासीर साहब को शहीदों का दर्जा प्रप्त होगा. भारत में भी ऐसी कट्टरता तब देखने में आईथी जब श्रीमती इंदिरा गाँधी के अंगरक्षकों ने कट्टरवादी साम्प्रदायिक प्रभाव में आकर उनकी हत्या कर दी थी .उसके उपरांत की प्रतिक्रियात्मक प्रतिध्वनी आज तक सुनाई दे रही है मानवता के लिए धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत एक बेहतरीन कालजयी विकल्प है .पाकिस्तान में किस ढंग से बच्चों को क्या पढाया जा रहा है ,वो तो कसाब के कबूल्नामें से उजागर हो चूका है .भारत के खिलाफ और हिन्दू धर्म के खिलाफ बचपन से ही जहर भरी झूंठी मनघडंत एतिहासिक किवदंतियां पढाई जाती है .
आपके आलेख के उतरार्ध में जो कहा गया ,उसका खंडन करता हूँ .मुस्लिम शाशकों की तलवारें ………….भारत में भी दिखाई दिया और आज पाकिस्तान ….यह अधुरा सच हो सकता है -वास्तविकता ये है की जहां -जहां इस्लाम के तत्कालीन आक्रान्ता गए वहां मैदान खली था
सो वहां पर इस्लाम को सहज स्वीकृति मिलते गई किन्तु भारत में शानदार अद्वतीय वैज्ञानिक कसौटी पर परखा जा चूका इंसानियत से सरावोर सनातन धर्म {हिन्दू धर्म जिसे फारसियों ने नाम दिया }था .उसमें वैर न कर काहु सन कोई ….परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा ….या सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामय …सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चित दुख्भाग्वेत ….
हिन्दुस्तान में बाहर से आने बाला कोई भी मजहब या दर्शन रंचमात्र सफल न होता यदि भारत में बदनाम जातिवादी बिशाणु न होते .स्वामी विवेकानंद ने इस पर सर्व श्रेष्ठ वक्तब्य शिकागो में १८९२ में दिया था ..आप रामकृष्ण मिशन से विवेकानंद साहित्य प्रप्त कर हिन्दू धरम के बारे में जाने ..r s s या स्वामी aseemanandon jaiseon को hidutuw का prateek न mane .inhone तो हिन्दू धर्म को dunia में बदनाम कर के rkha दिया है .