इस्पात के हौंसले वाली हैं अरुणिमा सिन्हा

अंटार्कटिका के माउंट विल्सन पर्वत पर पहुंचने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग हैं भारत की अरुणिमा

विवेक कुमार पाठक

कृत्रिम पैर के सहारे जब उप्र की दिव्यांग बेटी अरुणिमा सिन्हा गला देने वाली ठंड में एवरेस्ट पर चड़ रहीं थीं उस वक्त का यह संवाद जीवटता की अदभुत मिसाल बन चुका है। जान जोखिम वाली एवरेस्ट यात्रा के मार्ग पर जब बर्फबारी और गलन में आगे एक कदम भी मुश्किल था तब परिणाम का आंकलन कर अरुणिमा सिन्हा से उनके साथियों ने कहा कि बस अब आगे और नहीं। आप यहां तक एक पैर के बाबजूद आ चुकी हो ये बहुत बड़ी विजय है। इस सांत्वना पर अरुणिमा का कहे हुए शब्द रोयां रोयां खड़ा कर देते हैं। अरुणिमा ने तब कहा कि किस्मत भले ही दुनिया को दो पैर देती हो मगर वो मेरी तरह खुशनसीब नहीं है। मेरा एक पैर दुनिया वालों से बहुत मजबूत लोहे का है। मैं हर हाल में एवरेस्ट फतह करके रहूंगी। 
अपने लोहे के कृत्रिम पैर और इस्पाती हौंसलों से अरुणिमा सिन्हा ने अपना कहा पूरा करके दिखाया। 21 मई 2013 में हिन्दुस्तान की इस वीरांगना बेटी ने दुनिया की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराकर भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अपने हौंसलों को रोशन करके दिखा दिया। कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट को जीतने वाली वे दुनिया की इकलौती महिला हैं। अरुणिमा अब तक किलीमंजारो अफ्रीका, एल्ब्रूस, रूस, कास्टेन पिरामिड इंडोनेशिया, किजाश्को ऑस्ट्रेलिया और माउंट अंककागुआ दक्षिण अमेरिका जैसी दुर्गम और दुनिया की उंची पर्वत चोटियों पर हिन्दुस्तान के हौंसले का तिरंगा झंडा गाड़ चुकी हैं।
अरुणिमा के जीवन में जीतने की ललक, जूझने का जूनून एक होनहार खिलाड़ी होने के कारण बचपन से है। वे स्कूल और कॉलेज के समय से बॉलीबॉल की नेशनल प्लेयर रहीं हैं मगर कुछ धनपशुओं के कारण वीरांगना अरुणिमा सिन्हा ने वर्ष 20111 में अपना एक पैर गंवा दिया था। उस दर्दनाक हादसे के बादएवरेस्ट फतह करने वाली इस बेटी ने फिर एक नया कीर्तिमान गढ़ा है। वे एक बार फिर देश दुनिया में देखी सुनी जा रही हैं। दरअसल माइनस 45 डिग्री तापमान, तेज बर्फीले तूफान के बीच भारत की इस बेटी ने अंटार्कटिका के सबसे ऊंचे शिखर माउंट विन्सन पर तिरंगा लहरा दिया है। 
गुरुवार को जब घड़ी की सुइयों ने 12 बजकर 27 मिनट का समय दुनिया को दिखाया तो ये घड़ियां भी उस जीजिविषा की गवाह बन गयीं। अरुणिमा अब दुनिया की पहली महिला दिव्यांग पर्वतारोही हैं जो इंसानी कमियों को बौना साबित करते हुए अंटार्कटिका के सबसे ऊंचे शिखर माउंट विंसन पर कदम रखने में कामयाब हुई हैं।
एवरेस्ट फतह के बाद उनकी उपलब्धि इतनी बड़ी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस पर फक्र महसूस करते हुए कहा ’अरुणिमा सिन्हा को सफलता का नया शिखर छूने के लिए बधाई। वह भारत की गौरव हैं, जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम और दृढ़ता की बदौलत यह मुकाम हासिल किया है।
अरुणिमा को इस उपलब्धि पर देश दुनिया से बधाई मिल रही हैं। वे दुनिया की सात उंची चोटियों को जीतकर पर्वतारोहण में भारतीय जज्बे का पर्याय बन चुकी हैं। इस उपलब्धि के बीच उस काली रात को अरुणिमा के प्रशंसक भूलकर भी नहीं भूल पाएंगे जब मथुरा से लखनउ जाते वक्त चलती ट्रेन से उनके साथ लूट की घटना हुई थी और निर्दयी बदमाशों ने प्रतिरोध करने पर उन्हें चलती ट्रेन से पटरियों पर फेंक दिया था। 11 अप्रैल 2011 की उस काली रात को पटरियों पर अरुणिमा का दूसरी ओर से आती ट्रेन से पैर कट गया था और लहुलुहान हालत में वे घंटों जिंदगी से जूझती रहीं मगर उन्हें तन मन कंपा देने वाली पीड़ा के सिवाय अदद मदद का लंबा इंतजार करना पड़ा। उनके खून से लथपथ कटे पैर को पटरी पर चूहे कुरेद रहे थे मगर हिलने तक को मजबूर अरुणिमा बेबस बस जैसे तैसे सांसों को बचाए रहीं। 
पटरियों पर मौत से उस दर्दनाक साक्षात्कार के बाद अरुणिमा के जीवन को बचाने उस कटे पैर को होश में रहते हुए पूरा अलग करना पड़ा।
इतना खौफनाक दर्दनाक मंजर देखने वाली उत्तरप्रदेश की यह बेटी लेकिन अपने हौंसले से फिर उठी उसने हादसे को अपनी प्रेरणा बनाया और एक जन्मजात और एक कृत्रिम पैर के साथ जिंदगी से लड़ना और उससे जीतना फिर शुरु कर दिया। वो दुनिया को बताना चाहतीं थीं कि वाकई पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से उड़ान होती है। पहले एवरेस्ट फतह और अब अंटार्कटिका के दुर्गम पर्वत को बर्फीले तूफान और गलाने वाले मायनस तापमान में अरुणिमा को जीतकर दिखा दिया है। वे वाकई हिन्दुस्तान के जज्बे, गौरव के साथ जीवट महिला शक्ति की प्रतीक बन गयी हैं।

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