इसरो, नासा और अंंतरिक्ष वैज्ञानिक

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    : डॉ. बी. मयंक चतुर्वेदी

नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) भारत के चंद्रयान2 मिशन की जिस तरह से प्रशंसा कर रहा है, उसके मायने आज हर भारतीय को समझने की जरूरत है। वस्‍तुत: ज्ञान के धरातल पर यह जानना इसलिए भी आवश्‍यक हो जाता है कि आखिर हमने पिछले 50 सालों में अंतरिक्ष विज्ञान में क्‍या हासिल किया है? जिसका कि डंका दुनियाभर में बज रहा है। आज भले ही सॉफ्ट लैंडिंग के अपने लक्ष्य को चंद्रयान2 हासिल नहीं कर पाया, लेकिन इसने अपने पहले दिन से लेकर अब तक के प्रयोगों में 95 फीसद सफलता प्राप्‍त कर यह बता दिया है कि भारतीय वैज्ञानिक असंभव को भी संभव कर देने का सामर्थ्‍य रखते हैं।

सही पूछिए तो जिस तरह से ‘इसरो’ के वैज्ञानिकों ने इस जटिल मिशन को सीमित संसाधनों में पूरा किया है, उसे देखकर स्पेस में अग्रणी अमेरिकी स्पेस एजेंसी ‘‘ नासा’’  भी हैरान है। उसे यही लग रहा है कि जिसे हम संभव नहीं कर सके उसे भारत के वैज्ञानिकों ने संभव कर दिखाया । वह तो चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का चांद पर लैंडिंग से महज 69 सेकंड पहले पृथ्वी से संपर्क टूटा और भारत अपनी पूर्ण सफलता से महज कुछ दूर रह गया, लेकिन नासा इसके बाद भी इसमें भारत के वैज्ञानिकों की अंतरिक्ष में ही हुई सफलता को जान रही है । चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग को छोड़ दिया जाए तो विक्रम लैंडर  02  सितंबर को सफलतापूर्वक चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से अलग होकर अभी भी अपना काम कर रहा है।

यही कारण है कि ‘नासा’  आज यह कह रहा है कि अंतरिक्ष से जुड़े मिशन कठिन होते हैं, लेकिन हम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में चंद्रयान 2 अभियान के आपके प्रयासों की सराहना करते हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आपने हमें प्रेरित किया है और भविष्‍य में हम साथ मिलकर सौर मंडल का पता लगाने के अवसरों की तलाश करेंगे। यहां नासा और इसरो की कुल आयु को भी समझ लेना भी हम सभी के लिए जरूरी है ।

नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) जोकि संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकारी अंतरिक्ष संस्‍था है, जसका कि गठन नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस अधिनियम के अंतर्गत 19 जुलाई 1948 में किया गया था । इस संस्था ने 1 अक्टूबर 1948 से कार्य करना शुरू किया। तब से अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण के सभी कार्यक्रम नासा द्वारा संचालित किए गए हैं जिनमे सफलतम अपोलो चन्द्रमा अभियान, स्कायलैब अंतरिक्ष स्टेशन और बाद में अंतरिक्ष शटल शामिल किए जा सकते हैं।  इस तरह यदि देखें तो नासा की वर्तमान उम्र 71 साल से कुछ अधिक हो चुकी है। जबकि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की जन्‍म की कहानी कुछ इस तरह की है।

सन् 1962 में भारत में भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्‍कोस्‍पार) का गठन हुआ। कर्णधार, दूरदृष्‍टा डॉ. विक्रम साराभाई के साथ इन्‍कोस्‍पार ने ऊपरी वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए तिरुवनंतपुरम में थुंबा भूमध्‍यरेखीय राकेट प्रमोचन केंद्र (टर्ल्‍स) की स्‍थापना की। किंतु अंतरिक्ष विज्ञान के लिए जो कार्य किया जाना था वह नहीं हो सका और इसीलिए 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन इन्‍कोस्‍पार का अधिग्रहीण कर किया गया । डॉ. विक्रम साराभाई ने राष्‍ट्र के विकास में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका तथा महत्‍व को पहचानते हुए अपने मिशन तैयार किए और उन्‍हें स्‍वदेशी तौर पर प्राप्‍त करने के लिए प्रैद्योगिकी विकसित की जाने लगी।

इसरो की वैश्‍विक सफलता इससे भी समझी जा सकती है कि वह विश्‍व की छठी बृहत्‍तम अंतरिक्ष एजेंसी है। इसरो के पास संचार उपग्रह (इन्‍सैट) तथा सुदूर संवेदन (आई.आर.एस.) उपग्रहों का बृहत्‍तम समूह है, जो द्रुत तथा विश्‍वसनीय संचार एवं भू प्रेक्षण की बढ़ती मांग को पूरा करता है। इसरो ने आज प्रसारण, संचार, मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन उपकरण, भौगोलिक सूचना प्रणाली, मानचित्रकला, नौवहन, दूर-चिकित्‍सा, समर्पित दूरस्‍थ शिक्षा संबंधी उपग्रहों की विस्‍तृत श्रंखला तैयार की है ।

इन उपकरणों में संपूर्ण आत्‍म निर्भता के साथ लागत देखना भी आवश्‍यक था जो ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (पी.एस.एल.वी.) के रूप में सामने आया । कम लागत के कारण इसरो का यह रॉकेट विभिन्‍न देशों का सबसे प्रिय वाहक बना । कम लागत में अंतरिक्ष में हम अपने उपग्रह कैसे भेज सकते हैं, यह उन तमाम देशों के लिए भारत ने संभव कर दिखाया जिनका कि अंतरिक्ष बजट कम है।  यह भारतीय वैज्ञानिकों की एक असाधारण उपलब्धि है । कम खर्चे का पीएसएलवी आज विश्‍वभर में सबसे विश्‍वसनीय रॉकेट है। इसी तरह से भारत ने 2001 में स्वदेशी तकनीक से बने नए जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी रॉकेट से जीसैट-1 उपग्रह लॉन्च किया था। 2008 में भारत ने पीएसएलवी से देश के पहले मून मिशन चंद्रयान-1 को गति देकर सफलता हासिल की थी। इसके बाद अंतरिक्ष में भारत की धाक नवंबर 2013 को अपना पहला मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान) लॉन्च करते ही औरहो गई,‍ जिस विषय पर हालही में मिशन मंगल फिल्‍म भी बन चुकी है। विश्‍व में अकेला भारत ही वह देश है जिसने कि अपने पहले प्रयास में ही मंगल पर पहुंचने में सफलता हासिल की है।

इसके बाद फिर एक बार भारतीय वैज्ञानिकों ने 2017 में पूरे विश्‍व को आश्‍चर्य में डाल दिया था जब 15 फरवरी 2017 को पीएसएलवी-सी 37 से भारत सहित अनेक देशों के 104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में सफलता पूर्वक भेजकर उन्‍हें उनकी निर्धारित कक्षा में स्‍थापित किया था। एक साथ इतने अधिक सैटेलाइट लॉन्च करने का रिकार्ड अभी तक अन्‍य कोई देश नहीं तोड़ सका है । प्रौद्योगिक क्षमता के अतिरिक्‍त, इसरो न केवल भारत में बल्‍कि कई देशों के लिए विज्ञान एवं विज्ञान की शिक्षा में भी योगदान दे रहा है। कहने को अपनी 50 साल की कुल उम्र का इसरो अमेरिकी संस्‍थान नासा से अपने प्रारंभकाल से 21 वर्ष पीछे है, लेकिन दुनिया जानती है कि भारतीय इसरो के विश्‍व के लिए क्‍या मायने हैं। यही कारण है कि न केवल अमेरिका बल्‍कि शक्‍त‍िशाली देश रूस, इजरायल सहित अन्‍य देश आज इसरो के इस प्रयास की प्रशंसा कर रहे हैं।

सच यही है कि इसरो का चंद्रयान 2 मिशन एक अत्यधिक जटिल मिशन था, जिसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का पता लगाने के लिए बेहतर काम किया है। अमरीका, रूस और चीन के वैज्ञानिक भी मानते हैं कि दक्षिण ध्रुव पर जाना बहुत जटिल है। हां, इस मिशन से इतना अवश्‍य हुआ है कि भारत एक नया इतिहास रचने से दो क़दम दूर रह गया। यदि सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया का पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के क़रीब उतरता। किंतु इसके बावजूद भी कहना होगा कि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में घूम रहा है और अगले 10 सालों तक यह खगोलीय ग्रह के बारे में अहम जानकारियां धरती पर भेजता रहेगा। जिससे कि चंद्रमा के कई अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाने में मदद मिलेगी।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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