अलीगढ़ में आरक्षण का मुद्दा – यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मास्टर स्ट्रोक है

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Dr. Manish Kumar

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जबरदस्त राजनीतिक चाल चली है. ये एक मास्टर स्ट्रोक है. क्यों उन्होंने राजनीति का एक ऐसा सवाल उठाया है जिससे कांग्रेस और वामपंथियों के न सिर्फ फर्जी सेकुलरिज्म का पर्दाफाश हो रहा है साथ ही इनके नकली दलित प्रेम की भी कलई खुल गई है. योगी आदित्यनाथ ने पूछा है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वाविद्यालय और दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में दलितों के लिए आरक्षण क्यों नहीं मिलती? जो लोग दलितों के लिए चिंतित हैं. जो नेता कल तक दलितों के हमदर्द बने फिर रहे थे उन्हें अब जवाब देना चाहिए जब देश के दूसरे विश्वविद्यालयों में दलितों के लिए आरक्षण है तो अलीगढ़ और जामिया में आरक्षण क्यों नहीं है? दलितों को ये अधिकार कौन दिलाएगा? लेकिन मुख्यमंत्री यहां एक चूक भी हुई है उन्हें ये पूछना चाहिए था कि दलितों के साथ ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है.

जब से मोदी सरकार बनी है तब से विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस और वामपंथियों ने एक स्ट्रेटेजी पर पूरा काम किया है. इसके लिए झूठ बोले. अफवाहें फैलाई. देश के कई विश्वविद्यालय में आग भड़काई. दरअसल, कांग्रेस और वामपंथी देश भर में मुस्लिम-दलित का गठबंधन बनाना चाहती है. यही वजह है कि रोहित वेमुला की दुःखद आत्महत्या पर राजनीति की. एक पिछड़ी जाति के छात्र को दलित बता कर देश भर में प्रोपेगंडा किया. लुटियन मीडिया छाती पीट पीट कर एक आत्महत्या को हत्या बताती रही. दलितों के मन में देश के प्रति असंतोष की भावना पैदा करने का कुकर्म किया. इतना ही नहीं, जब जेएनयू में नक्सलियों और जिहादियों के गठजोड़ ने भारत के टुकड़े टुकड़े करने का नारा दिया. कश्मीर को भारत अलग करने की बात कही. राहुल गांधी वहां पहुंच कर इन नक्सलियों और जिहादियों को अपना समर्थन दे दिया. कुछ लोग कहते हैं कि राहुल गांधी की मति मारी गई थी इसलिए वो वहां पहुंच गए. नहीं. ये एक रणनीति का हिस्सा था. रणनीति यही कि मुसलमानों और दलितों को मोदी सरकार के खिलाफ इतना भड़काओं की अराजकता फैल जाए.

इस रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस और वामपंथियों ने तो जिहादी एलिमेंट्स से भी हाथ मिला ली. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के बयान को गलत ठंग से पेश करके ये साबित करने की कोशिश की देश मोदी सरकार दलितों के अधिकारों को छीन रही है. जबरदस्त प्रोपेडंगा हुआ. वो तो कांग्रेसी-वामपंथी की झूठ-मशीन असरदार नहीं रही इसलिए उनकी चोरी पकड़ी गई वर्ना लुटियन गिरोह, टुकड़े डुकड़े गैंग के साथ मिल कर ये साबित कर चुके होते कि दलितों का अधिकार छिन गया है. लेकिन समय के साथ साथ कांग्रेस और वामपंथियों का झूठ सामने आ गया. विपक्ष की ये रणनीति विफल हो गई. लेकिन अब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक काउंटर अटैक किया है. ऐसा सवाल दागा है कि सेकुलरिज्म के कारोबारी नेता मुंह छिपाए घूम रहे हैं. वामपंथी और कांग्रेसियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है. क्योंकि अलीगढ और जामिया में दलितों और पिछड़ों के साथ अन्याय करने का पूरा क्रेडिट कांग्रेस की यूपीए सरकार को जाता है. ये समझना जरूरी है कि क्यों कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां इस मामले में चुप है.

नोट करने वाली बात ये है कि दलितों और पिछड़ों को अलीगढ़ औऱ जामिया युनिवर्सिटी में आरक्षण क्यों नहीं मिलती. कानून के हिसाब से ये बिल्कुल है गैरकानूनी है. क्योंकि देश का कानून यही कहता है कि कोई भी संस्थान जो पूर्ण और आंशिक रुप से सरकार के पैसे पर चलती हो वहां दलितों औऱ पिछड़ों को आरक्षण देना अनिवार्य है. लेकिन ये अनिवार्यता अलीगढ़ और जामिया पर लागू नहीं होती है. मतलब ये कि देश के सारे विश्वविद्यालयों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था लागू है, लेकिन अलीगढ़ और जामिया में ये संवैधानिक व्यवस्था लागू इसलिए नहीं है क्योंकि यूपीए की सरकार ने इन दोनों युनिवर्सिटी को माइनोरिटी स्टेटस देने का पाप किया है. पाप इसलिए क्योंकि इससे तो दलितों और पिछड़ों के साथ अन्याय हुआ ही साथ ही इन दोनों विश्वविद्यालयों की साख पर भी बट्टा लग गया. फिलहाल ये मामला कोर्ट में चल रहा है. इसका फैसला आते ही राजनीति की नई बिसात बिछाई जाएगी.

इसमें कोई शक नहीं है कि दलितों और पिछड़ों के लिए आरक्षण की नीति लागू नहीं कर अलीगढ़ और जामिया विश्वविद्यालय एक बड़ा अपराध कर रहा है. ये अपराध इशलिए हो रहा है क्योंकि यूपीए की सरकार ने इन्हें अल्पंसख्यक संस्थान का दर्जा दिया था. अब ये मामला कोर्ट में चल रहा है जिसमें मोदी सरकार ने अपना पक्ष साफ कर दिया है कि वो इसके पक्ष में नहीं है. मोदी सरकार का ये फैसला 100 फीसदी सही है क्योंकि यूपीए सरकार को छोड़ कर बाकी पूर्ववर्ती सरकारों का रुख और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का निश्कर्ष भी यही है कि इन्हें अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देना उचित नहीं है. मोदी सरकार ने वही फैसला लिया जो मौलाना अबुल कलाम आजाद एमसी छागला और सैयद नुरूल हसन का रुख था. मोदी सरकार का फैसला वही है जो 1968 में उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की एक पीठ ने दिया था. ऐसा ही फैसला संविधान सभा ने भी लिया था जिसमें डॉ. बाबा साहब अंबेडकर, मौलाना आजाद और कई मुस्लिम नेता शरीक थे. अब ये तो साफ ही है कि राहुल गांधी और यचूरी जैसे लोग इन महापुरुषों के पैरों की धूल के बराबर नहीं है. फिर भी इनलोगों ने पहले 2005 में इन विश्वविद्यालयों को माइनोरिटी स्टेटस देकर दलितों को उनके अधिकार से वंचित किया और अब जब सत्ता चली गई है तो घड़ियाली आसूं बहा रहे हैं.

समझने वाली बात ये है कि ये मामला सिर्फ छात्रों के प्रवेश का ही नहीं है. इन विश्वविद्यालयों में टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्फाफ की नियुक्ति में भी दलितों और पिछड़ों के लिए आरक्षण नहीं है. इसलिए ये मसला व्यापक पैमाने पर दलितों और पिछड़ों के हितों से जुड़ा है, लिहाजा यह मुद्दा उनका ध्यान आकर्षित करेगा. जिस तेवर से योगी आदित्यनाथ ने इस मसले को उठाया है उससे ये साफ हो जाता है कि 2019 चुनाव में ये मामला बीजेपी के एजेंडे में होगा. पहली बार इसे एक चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा. बीजेपी अगर ये मामला बड़े पैमाने पर उठाती है… एएमयू में छात्रों के नामांकन से लेकर टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्टाफ और कर्मचारियों की नियुक्ति में आरक्षण लागू हो इसके लिए बीजेपी पूरे राज्य में माहौल बनाती है तो दलितों और पिछड़ा वर्ग सार्थक संदेश जाएगा. ऐसे में इस मुद्दे पर मायावती को मैदान में उतरना ही पड़ेगा क्योकि ये मामला ऐसा है जिसमें मुस्लिम और दलित व पिछड़े आमने सामने होंगे. यूपीए के लिए ये मामला एक तरफ गड्ढा और दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति है. अगर कांग्रेस और उसके एलायंस पार्टनर्स आऱक्षण का विरोध करते है तो दलित नाराज हो जाएंगे और अगर आरक्षण का समर्थन करने पर मुसलमान नाराज हो जाएंगे. मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री योगी ने ऐसी चाल चल दी है कि विपक्ष की पूरी रणनीति जमीनदोह हो जाएगी.

राजनीति इशारों पर चलती है. राजनीतिक विश्लेषकों को इन इशारों को समझने की जरूरत है. योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ और जामिया के मामले को उठाकर एक इशारा दिया है. पहला इशारा ये है कि 2019 के चुनाव में पहली बार अलीगढ़ का मामला चुनावी मुद्दा बनेगा. ये मुद्दा ऐसा है जिस पर दलित और मुसलमान आमने सामने हैं. इसलिए योगी आदित्यनाथ के बयान से एक और इशारा मिल रहा है कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन बनने और टूटने का खेल अभी खत्म नहीं हुआ है. बीजेपी ने मायावती के लिए एनडीए में शामिल होने का रास्ता खोला है. राजनीति संभावनाओं का खेल है. मायावती बीजेपी के साथ पहले भी गठबंधन बना चुकी है. इसलिए 2019 में वो बीजेपी-बीएसपी के गठबंधन की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है. अगर ये संभावना हकीकत में बदल जाती है तो 2019 के चुनाव से पहले ही रिजल्ट सबको मालूम हो जाएगा. चुनाव सिर्फ औपचारिकता भर रह जाएगी. इसमें दोनों ही पार्टियों को फायदा होगा.

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