पश्चिमी देशों में जमा काला धन की वापसी के ये पैरोकार

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निर्मल रानी

 

हमारा देश जहां महारानी लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप, टीपू सुल्तान, भगतसिंह तथा चंद्रशेखर आज़ाद व इन जैसे हज़ारों देश भक्त सूरमाओं का देश कहा जाता है वहीं जयचंद और मीर जाफर जैसे ग़द्दार भी हमारे देश की देन थे। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि समय के आगे बढऩे के साथ-साथ सच्चे देश भक्त जांबाज़ तो इतिहास के पन्नों तक में सिमट कर रह गए जबकि दूसरी ओर देश की राजनीति पर चारों ओर राष्ट्र विरोधियों लुटेरों, असमाजिक तत्वों तथा स्वार्थी व सत्ता लोलुप प्रवृति के लोगों का वर्चस्व हो गया। परिणामस्वरूप इन तथाकथित जिम्मेदार सत्ताधीशों ने देश को दोनों हाथों से लूटने के लिए भ्रष्टाचार का ऐसा खुला खेल खेलना शुरू कर दिया कि इन्हें अपने काले धन को छुपाने के लिए दूसरे पश्चिमी देशों के उन बैंकों का सहारा लेना पड़ा जो उच्च कोटि की गोपनीयता बरतने में विश्व विख्यात हैं। आज यह अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि हमारे देश के उन तथाकथित जिम्मेदार नेताओं,अधिकारियों तथा अन्य तमाम अति विशिष्ट समझे जाने वाले हज़ारों लोगों की अकूत धन संपत्ति उन विदेशी बैंकों में सुरक्षित है।

 

पिछले दिनों अमेरिका में आई भारी मंदी तथा आर्थिक संकट के बाद अमेरिका ने भी इस बात की ज़रूरत महसूस की कि उच्च स्तरीय गोपनीयता बरतने वाले ऐसे कई देशों के बैंकों से उन अमेरिकी खातेदारों का भी हिसाब-किताब मांगा जाए जो अपना काला धन इन बैंकों में जमा करते हैं। उसी समय से भारत में भी ऐसी ही आवाज़ ज़ोर पकड़ती गई। अब उसी काले धन की वापसी के लिए भारत में इतने अधिक लोग अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं गोया सबके सब ईमानदार हों तथा यह जानते ही न हों कि काला धन किसे कहते हैं और प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को साफ-सुथरा तथा हक व हलाल की कमाई करने वाला भारतीय प्रदर्शित करना चाह रहा है। इस शोर शराबे में मज़े की बात तो यह नज़र आ रही है कि सत्तारूढ़ यूपीए सरकार विशेष कर कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं को काला धन वापसी के इन हिमायतियों द्वारा इस प्रकार कठघरे में खड़ा किया जा रहा है गोया कांगेस या यूपीए ही काला धन विदेशों में जमा करने की सबसे बड़ी दोषी हैं। और तो और काला धन का यह मुद्दा बाबा राम देव जैसे योग सिखाने वाले योग गुरूओं के लिए भी राजनीति में प्रवेश करने का एक मुख्य द्वार सा बन गया है। स्वाभिमान ट्रस्ट के नाम से बनाए गए अपने संगठन के बैनर तले रामदेव पहले तो आम लोगों को बीमारी से मुक्ति दिलाने हेतु योगाभ्यास कराने की बात कहकर सुबह सवेरे चार या पांच बजे अपने निर्धारित शिविर में आमंत्रित करते हैं। उसके पश्चात योग सिखाने के दौरान या उसके बाद वे जनता से राजनैतिक मुद्दों को लेकर रूबरू हो जाते हैं। जनता व उनके मध्य संवाद का इस समय सबसे बड़ा मुद्दा विदेशों से काला धन मंगाना तथा राजनीति में भ्रष्टाचार ही खासतौर पर होता है।

 

धार्मिक चोला पहन कर या स्वयं को धर्मगुरू बताने के बाद राजनीति में प्रवेश करने का हमारे देश में कोई अच्छा परिणाम पहले नहीं देखा गया है। जय गुरूदेव तथा करपात्री जी भी हमारे देश में ऐसे धर्मगुरूओं के नाम हैं जिन्होंने राजनीति में क़दम रखकर कमाया तो कुछ नहीं हां गंवाया बहुत कुछ ज़रूर है। ऐसे में बाबा रामदेव उक्त धर्म गुरूओं से सबक लेना चाहेंगे या उनमें इनसे कहीं अधिक आत्म विश्वास भर चुका है यह तो उन्हीं को पता होगा। बहरहाल राजनीति में उनके पदार्पण की घोषणा के साथ ही उनकी फज़ीहत व आलोचना का दौर भी शुरू हो गया है। पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश में एक शिविर के दौरान उन्हें एक कांग्रेस सांसद ने ब्लडी इंडियन कह दिया। यह रामदेव का सार्वजनिक आरोप था । जबकि सांसद ने इस आरोप से इंकार किया है। सोनिया गांधी को भी यूरोप व इटली निवासी बताकर रामदेव उन पर विदेशी होने जैसा खुला हमला बोल रहे हैं। जगह-जगह योग शिविर में पहुंचने वाले लाभार्थियों की भारी संख्या देखकर बाबा जी कभी तो इतना गद गद हो जाते हैं कि उनके समझ में शायद यह भी नहीं आता कि वे जो कुछ भी बोल रहे हैं वह शिष्टाचार की परिधि में आता भी है या नहीं। जैसे गत् दिनों बिहार के बेतिया जि़ले के एक शिविर में बाबा रामदेव ने बड़े अहंकारपूर्ण ढंग से यह कहा कि राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री तो मेरे चरणों में आकर बैठते हैं तो आखिर मैं क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहूंगा। देश के लोगों ने तो कभी भी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को बाबा रामदेव के चरणों में बैठे नहीं देखा। परंतु बाबा जी ने अपनी शान स्वयं बढ़ाने के लिए ऐसा कहने में ज़रूर कोई हिचक महसूस नहीं की।

 

बहरहाल अब रामदेव व कांग्रेस पार्टी के एक सेनापति दिग्विजय सिंह उनसे दो-दो हाथ करने के लिए आमने-सामने आ चुके हैं। काले धन पर शोरशराबा करने वाले बाबा जी पर आक्रमण बोलते हुए दिग्विजय सिंह ने उनसे यह पूछा है कि आप भी इस बात का हिसाब दें कि आपके पास बारह वर्ष पूर्व तो महज़ एक साईकल हुआ करती थी आज आप एक हवाई जहाज़ सहित हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक कैसे बन गए? इसके जवाब में बाबा जी ने वही कहा जो आमतौर पर सवालों के घेरे में आने के बाद दूसरे तमाम लोग कहा करते हैं। यानि यह पैसा मेरे अपने नाम पर नहीं बल्कि अमुक ट्रस्ट, संगठन, संस्था या संस्थान के नाम है। परंतु दिग्विजय सिंह की एक बात में ज़रूर पूरा दम नज़र आया कि बाबा जी को अपने भक्तों द्वारा दान में दी जाने वाली राशि को लेकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह रकम कहीं भ्रष्टाचार का पैसा या काला धन तो नहीं है। आमतौर पर देखा भी यही जाता है कि बाबा रामदेव जहां भी जाते हैं वहां का अधिकांशत: व्यापारी वर्ग ही उनके कार्यक्रम तथा स्वागत आदि का जि़ मा संभालता है। अब यहां यह कहने की ज़रूरत नहीं कि इन स्वागतकर्ता व्यवसायियों में कितने लोग ऐसे होते हैं जो दाल में नमक के बराबर मुनाफा कमा कर अपना व्यवसाय चलाते हैं तथा सभी सरकारी कर नियमित रूप से ठीक प्रकार से देते हैं। । बाबा रामदेव से ही जुड़ी दिव्य फार्मेसी नामक वह संस्था भी है जो बाबा जी का अपना आयुर्वेदिक उद्योग है। यहां भी जो दवाईयां मिलती हैं उनका मूल्य बाज़ार में आमतौर पर मिलने वाली दवाईयों से कहीं अधिक मंहगा होता है। इनके तो योग शिविर में प्रवेश करने तथा आगे-पीछे बैठने के भी अलग-अलग शुल्क निर्धारित किए जाते हैं। बताया जा रहा है कि इसी प्रकार रामदेव ने विदेशों में भी अपनी तमाम संपत्तियां बना ली हैं यहां तक कि कथित रूप से एक छोटा समुद्री द्वीप तक बाबा जी ने खरीद लिया है।

 

कांग्रेस बनाम बाबा रामदेव के मध्य काला धन मुद्दे को लेकर छिड़ी इस जंग में बंगारू लक्ष्मण, दिलीप सिंह जूदेव, येदूरप्पा जैसे नेताओं की पार्टी अर्थात् भारतीय जनता पार्टी रामदेव के पक्ष में उतर आई है। रामदेव अपने शिविर में 5-6 फीट के एक गद्दे पर बैठे एक-एक व्यक्ति की भीड़ को देखकर गदगद् हो उठते हैं तथा उन्हें शायद यह महसूस होने लगता है कि सभवत: सारा देश ही उनका अनुयायी बन चुका है। इसी तरह भाजपा भी इसी गलतफहमी की शिकार है कि वह रामदेव का साथ देकर उनके अनुयाईयों को समय आने पर अपने पक्ष में आसानी से हाईजैक कर लेगी। परंतु ज़मीनी हकीकत तो कुछ और ही है। भले ही स्वाब्जिमान ट्रस्ट,दिव्य फार्मेसी या पतंजलि योग पीठ जैसे संस्थानों के सक्रिय कार्यकर्ता व पदाधिकारीगण जगह-जगह उनके साथ क्यों न जुड़ रहे हों परंतु भीड़ के रूप में दिखाई देने वाले यह लोग दरअसल किसी योग शिविर में अपने इलाज व स्वास्थ्य लाभ के लिए ही जाते हैं न कि किसी प्रकार की राजनैतिक विचारधारा में बंधने की गरज़ से। वैसे भी जिस उम्र के लोग रामदेव के शिविर में आते हैं उस उम्र में आम लोगों की राजनैतिक सोच व दिशा पूरी तरह परिपक्व होती है तथा काला धन या भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से को लेकर उन्हें अपने वैचारिक मार्ग से डगमगाया नहीं जा सकता। इन सब के बावजूद भी यदि बाबा रामदेव राजनीति में प्रवेश करना चाह रहे हैं तथा उनका मकसद वास्तव में विदेशों में जमा काला धन की वापसी तथा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना है तो वास्तव में उनका स्वागत किया जाना चाहिए। परंतु इसके लिए रामदेव को अपने आसपास के लोगों, सलाहकारों, समर्थकों तथा पदाधिकारियों की भी स्पष्ट व निष्पक्ष स्कैनिंग करनी चाहिए कि कहीं उनके भक्तजनों में भी ऐसे लोग तो शामिल नहीं जो कि भ्रष्टाचार तथा काले धन के संग्रह को ही अपने जीवन की सबसे बड़ी सफलता मानते हों।

 

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  1. अगर बाबा अपने मकसद को लेकर खुद जागरूक है तो उन्हें सबसे पहले ये सुनिश्चित करना होगा की जो धन वो ले रहे है वो कोई कला धन तो नहीं है! महज़ काले धन का एक व्यक्ति के कब्ज़े से दुसरे व्यक्ति के कब्ज़े में चले जाने मात्र से वो धन सफ़ेद नहीं हो जायेगा!

  2. बाबा को ऊपर उठाने वाले लोगों ने बाबा को उपर नहीं उठाया है बाबा स्वयं अपने अच्छे कार्यों से ऊपर उठे हैं, अगर बाबा के आय के साधन अनेतिक होते तो लोग क्या समझते हैं बाबा इतने आराम से सरकार के खिलाफ बोल रहे होते, कदापि नहीं बाबा स्वयम अपनी सम्पति घोषित करें या ना करें उच्च पदों पर बैठे लोगों को उनकी सम्पति एवं आय के स्त्रोत आम लोगों से ज्यादा पता होंगे क्योंकि सारीअनुसंधान करने वाली शक्तियां और उनका नियंत्रण उन लोगों के हाथ में ही है, और वे बाबा की एक चूक का इन्तजार ही कर रहे होंगे, चूंकि बाबा राजनीतिज्ञ नहीं हैं इसलिए उनके विफल होने के भी अवसर हैं, अगर वे असफल भी होतें हैं इस अभियान में तो भी उन पर लोगों की श्रध्धा कम होने वाली नहीं है.

  3. इस वार्तालाप को आगे बढाते हुए मैं कहना चाहता हूँ की बिना आदर्श का सहारा लिए हुए भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता.मैंने १९७३ से १९८० के भारत के इतिहास के माध्यम से यही समझाने का प्रयास किया है.यह महात्मा गाँधी का आदर्श ही था,जिसके बल पर हम बिना खून खराबा के आजाद हो सके.आज की हमारी हालात का कारण भी उस आदर्श से हमारी दूरी है.अगर हम उसी आदर्श पर चले होते तो भारत कही बहुत ऊपर होता
    दूसरी बात बाबा रामदेव के युग पुरुष होने की बात, तो अभी भी यह प्रमाणित होना बाकी है.रही बात सूरज को गुलेल मारने की तो मेरी बाबा रामदेव के अंध भक्तों से यही इल्तजा है की किसी भी मनुष्य इतना ऊपर मत उठा दीजिये की बाद में उसके लिए पछताने में भी शर्म आने लगे. फिर भी .अगर आप लोगों के तर्क को मान भी लिया जाये तो इसका क्या भरोसा की इतिहास दुहराया नहीं जाएगा.जबकि मैं अभी भी जयप्रकाश जी के व्यक्तित्व को बाबा राम देव से ज्यादा अहमियत देता हूँ. दूसरी बात यह है की आज की पीढी के उन लोगों को जो बाबा रामदेव के साथ बहती गंगा में हाथ धोने को तैयार बैठे हैं,उन लोगों से कम अवसर वादी नहीं मानता जो उस समय आगे आये थे और उनमे से बहुत आज भ्रष्टाचार के मामले में भी आगे हैं.फिर भी जैसा मैंने पहले भी लिखा है की अगर मैं गलत साबित हो जाऊं तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी.

  4. सुनील भाई क्या वाक्य लाये हो “सूरज को गुलेल मारना” बाबा रामदेव पर कभी भी कोई आरोप सिध्ध नहीं हो पायेगा, क्योंकि जो लोग बाबा को करीब से जानते हैं वे ही आपको बता सकते हैं की बाबा अपने उद्देश्यों के प्रति किस जूनून के साथ आगे बढ़ते हैं, वो अगर कुछ सालों पहले साइकिल से चलते थे अब उनके संस्थानों का turnover करोडो में है तो ये उनके लक्ष्य पाने के प्रयासों को इंगित करता है यदि बाबा भ्रष्टाचार या बेईमानी से ये धन संग्रह करते तो राजा को तो जेल जाने मे बहुत समय लग गया, इनको पहली फुर्सत में सरकार जेल पहुचा देती, दूसरी बात कई लोग कह रहे है की इनके पहले भी कई साधू सन्यासी राजनीति में आने की कोशिश करते रहे है सभी बुरी तरह असफल रहे तो उनको यह समझ लेना चाहिए की वो लोग पद लोलुपता के कारण राजनीति में आना चाहते थे, जबकि बाबा रामदेव ने जैसे रोगों को योग के द्वारा रोगों को दूर करने का प्रयास किया वैसा ही प्रयास भ्रष्टाचार को रोग मानकर वे दूर करने के लिए प्रयत्न शील हैं, ऐसा अधिकतर लोग जो उनसे प्रभावित हैं वे मान रहे हैं, किरण बेदी, सुब्रमनियम स्वामी जैसी गहरी सोच रखने वाले लोग अकारण ही किसी के साथ नहीं जुड़ेंगे.

  5. सारे लेख का सार स्वामी रामदेव जी और कांग्रेस है.
    स्वामी रामदेवजी पर ऊँगली उठाना तो सूरज को गुलेल मरने जैसा है. करोडो मैं ऐसे लोग पैदा होते है जो सच को इतनी निर्भीकता और बुलंदी से कहते है.
    सेकड़ो, हजारो, लाखो नहीं बल्कि करोडो लोगो में स्वाभिमान का जज्बा वापस स्वामीराम देवज जी ने पैदा किया है. स्वामी जी वास्तव में युग पुरुष है. उनका कार्य आने वाले हजारो सालो तक याद किया जाएगा.

  6. कपूर साहब से पूरी तरह सहमत, आदर्शवादी बातें करना जितना आसान है उनका निर्वाहन अत्यधिक दुष्कर, जैसे भी हो भ्रष्टाचारियों से मुक्ति मिलनी ही चाहिए.

  7. दान के बारे में निर्मल रानी जी ने जो लिखा है उसको मैंने पहली बार केवल उद्धृत किया थाऔर यह प्रश्न पूछा था की क्या इसका उत्तर है तो उसके उत्तर में जो प्रश्न डाक्टर राजेश कपूर ने पूछा है उसके उत्तर में अब मैं टालस्टाय को उद्धृत करना चाहूँगा,जब उन्होंने कहा था की यु कांट क्लीन द निलेन विद डर्टी हैंड्स तो उनका अभिप्राय यही था की पहले अपने शुद्ध होवो तब दूसरे को शुद्ध करने की कोशिश करो.महात्मा गाँधी भी यही कहा करते थे.
    भ्रष्टाचार के विरुद्ध में किसी भी अभियान का मैं समर्थक हूँ,पर मैं १९७३ से १९८० तक के भारतीय इतिहास को भी भूला नहीं हूँ.पहले गुजरात में छात्रों ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाया था और बाद में भारत स्तर पर जय प्रकाश जी ने उसका नेतृत्व किया था.बाद में जो हुआ वह तो इतिहास है और उसकी चर्चा मैं अन्यत्र कर चुका हूँ. बाबा रामदेव जयप्रकाश नहीं है,क्योंकि बाबा रामदेव और जिन साधु संतों का आपलोग बार बार जिक्र करते है उनकी इमानदारी प्रामाणित नहीं है.समय की कसौटी पर बहुत कम तथाकथित संन्यासी खरे उतरे हैं. बाबा रामदेव के समर्थन में परोक्ष रूप में ही सही भारतीय जनता पार्टी भी खडा है,जिसका दामन भी भ्रष्टाचार के मामले में बेदाग़ नहीं है.दूसरी बात जो मैंने पहले भी लिखी है की अगर मान भी लिया जाये की बाबा पूर्ण रूप से इमानदार हैं,(हालाकि अभी भी यह प्रमाणित होना बाकी है) तो भी कौन दावे के साथयह कह सकता है की जो अन्य उनके तरफ से चुनाव लड़ेंगे या फिर जीतकर सत्तारूढ़ होंगे वे भी १९७७ वाले इतिहास को नहीं दुहराएंगे?
    राजेश कपूर जी ,मेरे ख्याल से सबसे बड़ा प्रश्न चिह्न तो यह है जनता बाबा को इस नए अवतार में स्वीकार करेगी या नहीं?अगर स्वीकार कर ले और उनके समर्थकों को सत्ता की वाग्डोर सौप दे तो मुझ जैसे लोग तो एकबार खुश अवश्य हो जायेंगे की चलो परिवर्तन तो आया.हो सकता है की कुछ अच्छा हो भी जाये पर भारतीय इतिहास पर जब नजर जाती है तो यह सब दिवा स्वप्न लगता है और टालस्टाय हावी हो जाते हैं.

  8. सिंह साहिब आप की मानें तो बाबाजी को दान उनसे लेना चाहिए जो व्यापारे नहीं, यानी किसान, मजदूर, रेहड़ी, खोमचे वाले से ? महोदय कोरे- कागजी आदर्शों की बात करना जितना आसन है व्यावहारिक व्यवहार उतना कठिन.
    आज के दिल्ली के विराट कार्यक्रम से आशंकाएं दूर होनी चाहियें. आशा है की आपने व हमारे अन्य मित्रों ने यह कार्यक्रम देखा होगा. क्या अब भी संदेह है की गद्दारों के लिए उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. चमत्कार, एक अनहोनी घटने को है. देख सकें तो देख लें. देश की सारी सात्विक ताकतें एक मंच पर एकत्रित नज़र आ रही हैं. सवेरा अब अधिक दूर नहीं. जो सौभाग्यशाली इस महा यग्य में आहुति डालने का पुन्य प्राप्त करना चाहें, जीवन सार्थक करना चाहें, उन्हें देरी नहीं करनी चाहिए और यथा सामर्थ्य सहयोग शुरू कर देना चाहिए.

  9. निर्मल रनी जी ने अपने आलेख में बहुतकुछ लिखा है और कही कही उनके लेख में पक्षपात भी दिख रहा है पर उनकी इस बात में मुझे कोई गलती नहीं दिख रही है जब उन्होंने लिखा है कि ” दिग्विजय सिंह की एक बात में ज़रूर पूरा दम नज़र आया कि बाबा जी को अपने भक्तों द्वारा दान में दी जाने वाली राशि को लेकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह रकम कहीं भ्रष्टाचार का पैसा या काला धन तो नहीं है। आमतौर पर देखा भी यही जाता है कि बाबा रामदेव जहां भी जाते हैं वहां का अधिकांशत: व्यापारी वर्ग ही उनके कार्यक्रम तथा स्वागत आदि का जि़ मा संभालता है। अब यहां यह कहने की ज़रूरत नहीं कि इन स्वागतकर्ता व्यवसायियों में कितने लोग ऐसे होते हैं जो दाल में नमक के बराबर मुनाफा कमा कर अपना व्यवसाय चलाते हैं तथा सभी सरकारी कर नियमित रूप से ठीक प्रकार से देते हैं”.है इसप्रश्न का कोई उत्तर उनलोगों के पास जो बाबा के हरेक व्योहार को ईश्वरीय मानते हैं और उनके विरुद्ध कुछ भी नहीं सुनना चाहते?

  10. किसी भी देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष का काम है की देश में व्यवस्थाये सुचारू रूप से चले और अगर कोई कुछ गलत कर रहा हो तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जाये इसमे विपक्ष तो केवल मांग ही कर सकता है लेकिन सत्ता पक्ष को कार्यवाही करने का अधिकार है
    लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि यहाँ सत्ता पक्ष केवल मांग कर रहा है कोई कार्यवाही नहीं इससे स्पष्ट है कि ये मांग केवल एक दिखावा है स्वामी रामदेव के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए सरकार के पास कुछ नहीं है
    हमारे देश के नपुंसको के लिए ये एक उदाहरण है कि अगर केवल एक ईमानदार व्यक्ति भी ठान ले तो वो सत्ता को हिला सकता है चाणक्य और गाँधी जी इसका उदाहरण है दोनों ही पद के लोभी नहीं थे और वो इसी परंपरा से आते थे दोनों के बीच एक लम्बा कालांतर था इसलिए काल और परिस्थितियों के अनुसार उन्होंने अपने आन्दोलन को अंजाम दिया स्वामी रामदेव भी अपने आन्दोलन में सफल होंगे इसके लिए प्रयोग में लाये जाने वाले उनके हथियार अलग हो सकते है

  11. सुश्री निर्मल जी के लेख पहले भी जितनी बार देखे तो उनमें पूर्वाग्रह और संकीर्ण दृष्टी साफ़ नज़र आई. निर्मल बहन अगर आप विषय को गहराई से समझकर और बिना पूर्वाग्रह के लेखन करें तो लेखन में आप की उत्तम पहचान बनेगी और समाज हित भी आपके कारण होगा. शुभकामनाओं सहित, सादर , सप्रेम ,
    -राजेश कपूर.

  12. रामदेव हो या और कोई भी हो अच्छी बातो का स्वागत करने की हिम्मत हम सबमे होनी चाहिए. दिग्विजय सिंह और खुद रामदेव में भी.

  13. मैं एक बात और लेखिका महोदया से पूछना चाहता हूँ की संत, महंत, साधू, सन्यासीयों को देशहित के बारे मैं सोचने का कोई अधिकार नहीं है, यह विषय उनके कर्मषेत्र मैं क्यों नहीं आ सकता. भारत का इतिहास रहा हैं की साधू सन्यासियों ने ही क्रांति की ज्वाला को हवा दी हैं वैसे बाबा रामदेव स्वयं ही यह घोषणा कर चुके हैं की वे किसी पद के इच्छुक नहीं हैं वे केवल योग्य व्यक्तिओं को ही उच्च पदों पर आसीन देखना चाहते हैं. फिर इन लेखकों (चतुर्वेदी जी, निर्मला जी को) को तकलीफ क्यों हो रही हैं.

  14. इंडिया की परम्परागत हिन्दू समर्थित राष्ट्रवादी राजनीतिक पार्टी के वोटरों में बाबा की सेंध लगाने वाली है. कांग्रेसी अन्दर से खुश है की चलो राष्ट्रवादी शक्तियों के बिखराव का फायदा उन्हें मिलने वाला है. मुझ जैसे लोग चिंतित है की बाबा और परम्परागत शक्तियों में सुलह क्यों नहीं हो पा रही है.

  15. इसे कहते हैं बहती गंगा में हाथ धोना! निर्मल जी भी कूद पड़ी जैसे इनके लेखन के बिना ये बहस पूरी ही नहीं होती!

    माफ़ी चाहता हूँ लेकिन माननिय लेखिका जी ये बता पाती की कौन सा प्रोडक्ट पतंजलि वाले महंगा बेच रहे हैं और कैसे? जिससे हम जैसे मुर्ख लोगों को भी तो पता चले की स्वामी रामदेव जी कैसे लोगों को “बेवकूफ” बना रहे हैं?

    क्या आपने कभी पतंजलि के उत्पादों को उपयोग किया भी है या हवा में तीर मारना आपका पेशा है मेरे जैसे कई और लोग हैं जो आपके लेख के बाद ये जानने के इच्छुक हैं !

  16. विदेशो में जमा धन तथा सोना में निवेशित रकम को एक ही दृष्टी से देखा जाना चाहिए. भारत में व्यवासायिक दृष्टी से संचालित कोइ सोने की खादान नहीं है. भारत में लोग मेहनत करके धन सृजित करते है तथा उसे सोने में लगा देते है. विश्व की सारी सोने की खादानो पर कुछ दो-चार देशो का कब्जा है. अतः विदेशी बेंक में जमा रकम की चिंता करने से पहले भारत में सोना रखने पर बनदेज लगना चाहिए. यदि भारत के लोगो के पास जो सोना है वह आज के अंतरास्ट्रीय बाजार दर से विदेशो को बेच दिया जाए तो हमें इतनी बड़ी राशी प्राप्त होगी की हमारा अर्थतंत्र सबसे बड़ा अर्थतंत्र बना जाएगा. और यदि भारत की जनता सोना खरीदना बंद कर दे तो अमेरिकी बिलायती अर्थतंत्र का बारह बज जाएगा. बाबा रामदेव तक कोइ मेरी यह राय पहुंचा दे तो मै आभारी रहूँगा.

  17. लेखिका महोदया शायद रामदेव के सबसे बड़े देसी ब्रांड साबित हो जाने के बाद कुंठाग्रस्त हो गयी हे, बाबा रामदेव अगर सक्रीय राजनीति में आ भी जाते हे तो इसमें बुराई ही क्या है अक्सर बाहुबली भारत की राजनीति का मार्ग तय तो आमतोर पर अपराध के गलियारों से होकर करते हैं, कम से कम बाबा योग जैसे अच्छे काम से यह रास्ता तय कर रहे है.

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