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भारत की यह मजबूरी है, भ्रष्टाचार जरूरी है - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
-लिमटी खरे एक समय में सामाजिक बुराई समझे जाने वाले भ्रष्टाचार ने आजाद हिन्दुस्तान में अब शिष्टाचार का रूप धारण कर लिया है। बिना रिश्वत दिए लिए कोई भी काम संभव नहीं है, यह हमारा नहीं देश की सबसे बड़ी अदालत का मानना है। अस्सी के दशक के मध्य तक…