ये सियासत का धोखा है

kalyan-mulayamअयोध्या मसले पर परस्पर विरोधी खेमों के सेनापति रह चुके सियासी दिग्गज कुछ समय की गलबंहियों के बाद फिर आमने-सामने है। बातों का अन्दाज पुराना है, लेकिन सच्चाई और विश्वनीयता का घोर अभाव है। इसलिए धार कुन्द है। कभी एक दिग्गज ने ऐलान किया था कि अयोध्या में पंरिदा भी पर नहीं मार सकता। दूसरे ने नारा बुंलद किया-मन्दिर वही बनाऐंगे। यह वह दौर था जब मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश की धुर विरोधी राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। यह ऐसी समानान्तर चलने वाली विचारधाराएं थी, जिनका कोई मिलन बिन्दु अस्वभाविक, अवांछित, अमर्यादित और प्रायः असंभव ही माना जाता था, लेकिन इसे राजनताओ के बेहिसाब लालच ने संभव बना दिया। एक बार नहीं दो बार। पहली बार इस मिलाप से मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने थे। कल्याण के पुत्र और एक करीबी उनकी कैबिनेट में शामिल हुई। इस अस्वभाविक दोस्ती से मन उक्ताया तो फिर अपने-अपने पाले में लौट गए।

मुलायम तो अपनी जगह रहे। कुछ समय बाद कल्याण फिर उन्ही के पाले में थे। इतना अवश्य था कि मुलायम ने उनका पलके बिछा कर स्वागत किया। लेकिन फिरोजाबाद लोकसभा और कुछ विधानसभा सीटो के चुनाव परिणामो ने दोस्ती के प्रति नजरिया ही बदल दिया। यहां चुनाव प्रचार में कल्याण सिंह ने हिस्सा लिया था। मुलायम ने ही पुत्रवधु के पक्ष में पाँच जनसभाएं की । उनकी प्रशंसा में जमीन-आसमान एक कर दिया। जवाब में मुलायम ने भी उन्हें पिछड़े वर्ग की एकता और साम्प्रदायिक तत्वों के विघटन का मसीहा बताकर गले लगाया। चुनाव परिणाम सपा के पक्ष में रहते, तो मुलायम और उनके मसीहा आज भी दोस्ती का विर्नाह कर रहे होते। किन्तु चुनाव परिणाम ने तस्वीर बदल दी। मुलायम की उम्मीद टूट चुकी थी। पुत्रवधु की बड़ी पराजय के साथ ही इटावा, भरथना की पराजय उनके राजनीतिक आधार पर बड़े आघात की तरह था। सियासी इमारत दरकती नजर आई तो दोस्ती बेमानी लगने लगी। कल्याण से दोस्ती घाटे का सौदा साबित हुई। सपा के वोट बैक में लोदी वोट जुड़ने की आशा थी। लेकिन पूरा समीकरण बिगड़ गया। समीक्षा में निष्‍कर्ष निकला कि कल्याण के कारण मुस्लिम मतदाता दूर हो गया। इसलिए ढह गए। कल्याण को दूर कर दें तो मुस्लिम मतदाता करीब आ जाऐंगे। जवाब में कल्याण को लगा कि उनकी हैसियत हिन्दुत्व के कारण थी, इसके अलावा कोई विकल्प उनके लिए नहीं हो सकता।

अक्ल कहे बार-बार उन्हें न आजमाइए! इश्क कहे एक बार और धोखा खाईए!!

मुद्दतों बाद दोनों ने अपने पुराने अन्दाज में अयोध्या को याद किया। मुलायम को छः दिसम्बर का काला दिन याद आया, कल्याण ने शौर्य दिवस को याद किया। सियासत के रिश्ते-नाते चुनाव परिणामो ने बदल दिए। इसी के साथ यह खुलासा हुआ कि सियासत के खिलाड़ियों की नजर में हिन्दू, मुस्लिम, दलित, पिछड़ा, वर्ग है। नहीं तो पिछले महीने तक जो मुलायम व कल्याण एक दूसरे के लिए बहुत अच्छे थे, वह नफरत के लायक कैसे हो जाते? मुलायम को छः दिसम्बर याद आया। लिब्रहन और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट में हो रही देरी पर गुस्सा आया। अयोध्या में मस्जिद निर्माण संबंधी तत्कालीन कांग्रेसी सरकार का वादा याद दिलाया। राजठाकरे की बेबकूफी से हिन्दी के पुरोधा बने अबू आजमी को कल्याण से हुए नुकसान की भरपाई के लिए उपयोगी माना गया। दूसरी तरफ कल्याण को हिन्दुत्व पर एक बार फिर गर्व हुआ। यह खुलासा भी हुआ कि राजनीति के महारथी धोखे में ना जाएं। यह खुलासा भी हुआ कि राजनीति के महारथी धोखे में ना जाने, क्या-क्या कर गुजरते हैं। फिरोजाबाद चुनाव प्रचार के दौरान कल्याण को कोत था कि उन्हे धोखें में रख कर बाबरी ढाचे का विध्वंस किया गया। वह तो मुसलमानों का दिल जीतने में विश्वास रखते है। मुलायम ने कहा कि सपा अधिवेशन का निमन्त्रण कल्याण के पास धोखे से पहुँच गया। तब यह भी मानना पडेगा कि निमन्त्रण के पहले सपा को ग्रुप के सदस्य राम गोपाल यादव का कल्याण से मिलना, अधिवेशन में मुलायम द्वारा उन्हें लाल टोपी पहनाना, उनके लिए जिन्दाबाद के नारे बुलंद करना, जनम जनम के साथियो की तरह फोटोग्राफरो को पोज देना सभी कुछ धोखा था। कल्याण की यह सौगन्ध भी धोखा रही होगी कि मन्दिर वहीं बनाऐगें, या कोर्ट की अवमानना बर्दाश्त कर सकते है, लेकिन श्री राम की अवमानना कैसे मंजूर करे, या पत्थर तराशे जा रहे है तो मन्दिर ही बनेगा। या मुलायम के साथ रह कर बाबरी विघ्वंस पर आंसू बहाना, धोखा था, या भाजपा की कब्र खोदने, मुसलमानो का सच्चा हिमायती का दावा धोखा था। रमईकाका ने ऐसे ही एक मासूम व्यक्ति का चित्रण किया है। जो बार-बार धोखा खाता है। और परेशान होकर कहता है- अरे फिर हवा होइगा । लेकिन वह मासूम था, इसलिए उसका किस्सा हसाता था। ये सियासत का धोखा है। जो हतद्रप करता है। जब चाहो चेहरा, टोपी, तकदीर बदल लो। निशाने पर हमेशा वोट बैंक ही रहना चाहिए। मुलायम और कल्याण फिर अयोध्या मसले पर आक्रामक रूख में हैं। लेकिन यह पुराने दिनो की वापसी का संदेश नहीं है। बेशक शब्द जाल वही है, लेकिन विश्वसनीयता का प्राण तत्व कहाँ से आऐगा। मुलायम फिर-धर्म निरपेक्षता के दावेदार है। कल्याण हिन्दुत्व के पक्ष घर है। भाजपा कशमकश में हैं क्या करें, क्या न करें।

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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