यह परिवर्तन की आहट है

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-आशुतोष

राष्ट्रमण्डल खेलों में हुए घोटाले पर उंगलियां तो पहले ही उठने लगी थीं, खेल समाप्त होते-होते तो लोगों ने उन्हें भ्रष्टमण्डल खेल कहना शुरू कर दिया। खेलों के आयोजन की योजना बनाते समय निश्चित किये गये कुल बजट से भी कई गुना अधिक राशि के घोटाले का अनुमान लगाया जा रहा है।

भ्रष्टमण्डल खेलों का खुलासा पूरा नहीं हुआ था कि टू जी घोटाले पर चर्चा शुरू हो गयी। आदर्श हाउसिंग सोसायटी के छींटे सेना के शीर्षस्थ अधिकारियों तक पर पड़े। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और केन्द्रीय संचार मंत्री ए. राजा की बलि लेने के बाद भी खुलासों का सिलसिला रुका नहीं है।

हर दिन नये खुलासे सामने आ रहे हैं। जिस गति से खुलासे हो रहे है उससे साबित होता है कि यह घोटालों का नहीं, खुलासों का दौर है। घोटाले तो इससे बहुत पहले ही हो चुके हैं। सीएजी की रिपोर्ट हो अथवा नीरा राडिया के टेपों का लीक होना, यह तो बाद की घटनाएं है। इसके लिये प्रशासनिक त्रुटियों को जिम्मेदार ठहराया जाय अथवा खोजी पत्रकारिता को इसका श्रेय दिया जाय, यह निर्णय करना आज तो कठिन ही है। हो सकता है कि यह इन दोनों के साथ ही कुछ राजनेताओं की मिली-भगत का नतीजा हो।

भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी जिस सरकार पर है उसके मुखिया की पहचान एक ईमानदार लेकिन निरीह प्राणी की बनी है। गत दो दशकों में पारदर्शी प्रशासन की जगह स्थिरता को एक मूल्य के रूप में स्थापित करने की भरसक कोशिश की गयी है। इसके चलते कठोर निर्णय लेने के बजाय गठबंधन को ढोने की योग्यता ही प्राथमिकता है और अपनी इस योग्यता का परिचय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बखूबी दे रहे हैं।

टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला आज का नहीं है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पहले दौर में इसे अंजाम दिया गया था। इस घोटाले की जानकारी भी तभी छन कर आने लगी थी। सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत दस्तावेज बताते हैं कि मनमोहन सिंह ने इसका संज्ञान लेते हुए राजा को चिट्ठी भी लिखी थी। जवाब में राजा ने जो उत्तर दिया वह प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की निरीहता को ही प्रदर्शित करता है। इसके बावजूद कांग्रेस ने द्रमुक के साथ मिल कर सरकार बनायी। नयी सरकार में भी राजा इन आरोपों के बाद भी संचार मंत्री ही बने। जाहिर है प्रधानमंत्री उन्हें कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे।

इसी तरह संप्रग सरकार के दूसरे सहयोगी और मराठा छत्रप शरद पवार और उनकी पार्टी भी तरह-तरह के मामलों में फंसती रही और प्रधानमंत्री मुंह बाये देखते रहे। लवासा मामले में हुए घोटाले का खुलासा भी भ्रष्टाचार की एक और कहानी कह रहा है। सच तो यह है कि राजा मामले में सरकार को संभावित आय नहीं हुई जबकि लवासा घोटाले में राज्य सरकार की बहुत बड़ी राशि उन कामों में खर्च की गयी जिनका सीधा फायदा पवार के इस प्रोजेक्ट को हुआ। यह राशि भी लगभग उतनी ही है जितनी कि स्पेक्ट्रम घोटाले की। इसके लिये तमाम कायदे-कानून ताक पर रख दिये गये।

संसद का शरद सत्र समय से पहले बुलाया गया जिसका प्रारंभ ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के संबोधन से हुआ। निस्संदेह उनका भाषण उत्कृष्ट था और इसके लिये उनको भाषण लेखक की प्रशंसा की जानी चाहिये। उन्होंने “जय हिंद” बोल कर तथा विवेकानन्द आदि का उल्लेख करके भारत का ह्रदय जीतने का प्रयास किया और अपने देश की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिये अरबों रुपये का व्यापार बटोर ले गये।

अमेरिकी चुनावों में अपनी पार्टी की पराजय और अपनी स्वयं की सीट गंवा कर वे भारत दौरे पर पधारे थे और जाने के बाद विकीलीक्स के खुलासे उनके लिये नयी शर्मिन्दगी लाने की तैयारी में थे। ओबामा की विदाई के बाद ही सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तलवारें खिंच गयीं और दोनों के सांसद पुनः तभी एकत्र हुए जब आमिर खान ने संसद पहुंचकर कुपोषण के मुद्दे पर समझाइश की।

संसद का शीतकालीन सत्र समाप्ति की ओर है पर गतिरोध समाप्त नहीं हो सका है। विपक्ष संयुक्त संसदीय जांच समिति की मांग पर अड़ा है जबकि सरकार इसके लिये तैयार नहीं है। इसे टालने के लिये एक से एक अनोखे कारण सरकार द्वारा बताये जा रहे हैं। हाल ही में संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने यह कह कर सभी को चौंका दिया कि जांच के लिये आवश्यक साधनों का संसद के पास अभाव है।

यह ठीक वही स्थिति है जो लगभग 25 वर्ष पहले तब उत्पन्न हुई थी जब बोफोर्स तोप सौदे में 64 करोड़ रुपये दलाली लेने का मामला प्रकाश में आया था। मिस्टर क्लीन और युवा नेता की छवि के चलते जबरदस्त बहुमत लेकर सत्ता में आये स्व. राजीव गांधी भी मामले की जांच के लिये संयुक्त संसदीय समिति के गठन पर इसी प्रकार अड़े थे जैसे आज की सरकार अड़ी हुई है। अंततः उन्हें झुकना पड़ा था और समिति के गठन की मांग स्वीकार करनी पड़ी थी।

यह और बात है कि इस पूरे प्रकरण के मुख्य आरोपी इतालवी व्यापारी क्वात्रोच्चि का बाल भी बांका नहीं हुआ। लेकिन साथ ही यह भी सत्य है कि राजीव सरकार की यह हठधर्मी ही अगले लोकसभा चुनावों में न केवल उन्हें ले डूबी अपितु दो दशक तक नेहरू-गांधी परिवार को सत्ता से दूर रहना पड़ा। कांग्रेस एक बार पुनः जब गांधी(!) खानदान के चिराग राहुल गांधी के चॉकलेटी चेहरे को स्थापित करने की जीतोड़ कोशिश में जुटी है तो फिर से भ्रष्टाचार का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है।

1 COMMENT

  1. Sir ji,
    jai mai ki.
    I have sent a Report”Political murder”.
    Please try to publish this “Report”.
    Regards.
    jai mai ki.
    Shailendra Saxena.
    09827249964.

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