ज़िंदगी नाम है ख़तरों से उभर आने का,
खुदकशी नाम है डर डर के भी मर जाने का।
चुप ना बैठो कि अब हालात से लड़ना सीखो,
है तरीक़ा यही हालात संवर जाने का।
घर तुम्हारा भी तो उस आग में जल सकता है,
शौक़ जिसका है तुम्हें औरों पे बरसाने का।
तुम हो ज़हनों से अपाहिज मैं यह कैसे मानूं,
जाग जाओ तो यह मौक़ा नहीं शरमाने का।
अब तआस्सुब के अंधेरों को ना पास आने दो,
वक़्त है प्यार से ज़हनों में उतर जाने का।
जिस्म को कै़द मेरे करके करोगे क्या तुम,
मेरी आवाज़ का वादा है निखर जाने का।
रहनुमा टूट चुका है यह अंदर से पूरी तरह,
अब है ख़तरा मेरे मुल्क के बिखर जाने का।।
नोट-अपाहिज-विकलांग, तआस्सुब-साम्प्रदाकिता,जे़हन-मस्तिष्क,
रहनुमा-नेता, कै़द-बंधक।।
– इक़बाल हिंदुस्तानी