यह कैसी मित्रता

rat and frogगणेशी के खेत में बने तीन कमरों के घर में चिंकू चूहे ने अपना निवास बना लिया था |घर के ठीक सामने दो ढाई सौ फुट की दूरी पर एक नीली नदी बहती थी |नदी थी तो पहाड़ी परन्तु मार्च महीने तक उसमें भरपूर पानी रहता था |बरसात में तो पानी खेत की मेढ तक ठहाके लगाकर खेत के भीतर तक घुसने की धमकी देता रहता |चिंकू जब घर में धमाचौकड़ी करते करते उकता जाता तो नदी की तरफ दौड़ जाता और किनारे पर बैठकर कल कल छल छल करते जल को निहारता रहता |उसे नदी में बहता नीला जल बहुत अच्छा लगता |किनारे पर लगे पेड़ों के वह चक्कर लगाने लगता तो उसे बहुत मज़ा आता |बरसात के दिनों को छोड़कर रोज वह खाना खा पीकर नदी के तट पर चला आता | चूँकि गणेशी बड़ा किसान था कमरों में गेहूं चना चांवल जैसे अनाज भरे पड़े रहते |चिंकू छककर भोजन करता इस कारण उसका स्वास्थ बहुत अच्छा था |
गणेशी के मुंह से वह अक्सर सुनता रहता था कि यह चूहा अपना माल खा खा कर कितना मुटा गया है |यह सुनकर उसकी पत्नी कहती –
मालिक ने जब हमें दिया है, सब जीवों को खाने दो |
खुले रखो दरवाजे घर के ,खूब दुआएं आने दो |
चूहा ये बातें सुनता तो खूब दुआएं देता “भगवान इनका घर धन धान्य से सदा भरा रहे |
वह सोचता था की इनका घर भरा रहा तो उसे कभी भूखा नहीं रहना पडेगा|
नदी किनारे रेत पर कभी कभी एक मेंढक मिन्दू धूप सेंकने पानी से बाहर आ जाता था |कुछ दिनों की मेल मुलाकात से दोनों की पक्की दोस्ती हो गई |अब रोज ही पानी से बाहर आकर मिन्दु चिंकू के साथ रेत में खेलता |मिन्दू उचक उचक कर कूदता और टर्र टर्र करता तो चिंकू ताली बजा बजा कर हँसता |चिंकू जब चिक चिक की आवाज़ लगाकर मिन्दू के चककर
लगाता तो मिन्दू ख़ुशी के मारे चार फुट तक ऊँचा कूद जाता |वहीँ एक पेड़ पर रहने वाला बन्दर इन दोनों की मित्रता देखकर बहुत आश्चर्य करता |यह कैसी दोस्ती एक जलचर एक थलचर !
एक दिन वह पेड़ से उतरकर नीचे आया और बोला” तुम लोगों की यह बेमेल मित्रता मुझे समझ में नहीं आई |” चिंकू बोला” क्यों बेमेल कैसी /हम लोग मित्र हैं भाई भाई जैसे हैं ,साथ साथ रहते हैं, साथ साथ खाते पीते हैं ,तुम्हें क्या!,क्यों जलते हो ?”
यह सुनकर बंदर फिर बोला-
” यह कैसी बेमेल मित्रता, मुझको समझ न आई |
चूहा और मेंढक हो सकते, कैसे भाई भाई |”
उसकी बातें सुनकर दोनों को बहुत गुस्सा आया |
“जा जा अपना काम कर |हम लोगों की दोस्ती पक्की है और पक्की ही रहेगी |”चिंकू झल्लाकर बोला|
“अरे भाई तुम ठहरे जाति के चूहे, घर के बिलों में रहने वाले और यह तुम्हारा मित्र पानी में रहने वाला ,कीड़े मकोड़े खाने वाला” बंदर चिढ़कर चिंकू पर जैसे टूट पड़ा |
‘अरे जाति और खाने पीने की वस्तुओं से क्या फर्क पड़ता दिल मिलना चाहिए बस|” मिन्दु ने चिल्लाकर जबाब दिया |”हम दोनों दो शरीर एक जान हैं क्या इतना काफी नहीं है ?
सही दोस्ती तो दिल से होती है मेरे भाई |
चूहा मेंढक दोस्त बने तो बोलो क्या कठिनाई |”
“इसका क्या प्रमाण है की तुम दोनों तन मन से एक ही हो ?”बन्दर तो जैसे आज उनके पीछे ही पड़ गया |
“इसमें प्रमाण की क्या बात है हम दोनों अभी एक दूसरे को एक रस्सी से बाँध लेते हैं|” ऐसा कहकर दोनों ने एक दूसरे को एक रस्सी से बाँध लिया |
अब दोनों जहाँ भी जाते साथ साथ जाते |जाना ही पड़ता बंधे होनें जो मजबूरी थी |
चूहा अपने घर जाता तो मेंढक भी साथ में कूदता जाता |चूहा बिल के भीतर चला जाता और मेंढक बाहर आराम करता |और जब मेंढक नदी किनारे आता और नदी में कूद जाता तो चूहा रेत में किनारे पर चहल कदमी करता रहता|मेंढक नदी में बहुत भीतर तक नहीं जाता था क्योंकि उसे पता था की किनारे चिंकू बेचारा बैठ है |उसे स्मरण था कि उसके किसी पूर्वज कि लापरवाही से कोई चूहा नदी में डूबकर अपनी जान गँवा चुका था |
एक दिन दोनों नदी किनारे रेत में मस्ती कर रहे थे कि अचानक दो तीन बच्चे वहां आ धमके और एक बड़ा सा पत्थर मेंढक पर उछाल दिया|घबराहट में मेंढक नदी में कूद गया|बच्चे ढेले उठाकर पानी में मेंढक पर फेकने लगे |अब तो मेंढक डर गया और नदी में दूर तक गहरे में चला गया |मेंढक की छलांग रस्सी से ज्यादा लम्बी हो जाने से चिंकू नदी में जा गिरा और थोड़ी देर में ही तड़फकर मर गया|और पानी के ऊपर उतराने लगा |तभी अचानक आसमान में एक चील उड़ती हुई आई और मरे हुए चूहे को चोंच में दबाकर आसमान में उड़ गई |इधर चूहे के साथ रस्सी से बंधा मिन्दु भी साथ में आसमान में झूलने लगा|डर के मारे उसकी भी जान निकल गई | अचानक ही चील के की चोंच से चिंकू छूट गया और दोनों उसी पेड़ के नीचे जा गिरे जिस पर बन्दर बैठा था | दोनों की दशा देखकर बंदर जोर से हंसने लगा और बोला –
अलग अलग जाति के प्राणी, मित्र नहीं बन सकते भाई |
किसी तरह भी चली मित्रता, ज्यादा देर नहीं चल पाई |

परन्तु उन दोनों की दोस्ती तो पक्की ही थी |नदी किनारे के पेड़, नदी की रेत और नदी का नील जल, यह सभी साक्षी थे इस बात के और रो रहे थे उनकी मौत पर |
साथ साथ वे रहे हमेशा ,साथ मौत को गले लगाया |
अंत अंत तक रहे साथ में ,अहा! मित्रता धर्म निभाया |
बन्दर अभी भी सोच रहा था कि ऎसी मित्रता कितनी उचित थी |

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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