जब जागो तभी सवेरा है

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हम क्या करें चारों तरफ अँधेरा है,
हर तरफ मौत और खौफ का ही डेरा है।
बीन बस आज बजाता है वो दिखावे का,
आज साँपों से स्वयं मिल गया सपेरा है ।
ख्वाब महलों का देख जुल्म पर कदम रखा ,
छुआ तो देखा कि दलदल ये बहुत गहरा  है ।
हमने इन्सान को इन्सा समझ के प्यार किया ,
मगर ये भूलें कि इन्सा बदलता चेहरा है ।
सोचें हम भी रहेंगे दिल में किसी के यारों,
मगर दिलों में यहाँ नफरतों का पहरा है ।
लुटा दी जिसके वास्ते खुशियां अपनी ,
मेरी खुशियों का वही एक बस लुटेरा है ।
देखकर देर बहुत सो गया ‘एहसास ‘ आज,
उठो जागो तो जब जागो तभी  सबेरा है ।
               – अजय एहसास 

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