प्रो. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला पिछले काफी अरसे से यह मांग कर रहे हैं कि राज्य से विशेष सेना अधिकार कानून को हटा दिया जाए। अब उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया है कि यदि पूरे राज्य से ऐसा करना संभव नहीं हैतो कम से कम कुछ क्षेत्रों से इसे हटा दिया जाना चाहिए, यहां उनके चाल से शांति स्थापित हो गई है। जो मांग उमर अब्दुल्ला कर रहे हैं लगभग वही मांग राज्य में सक्रिय आतंकवादी संगठन भी कर हैं, जिन्हें पाकिस्तान पालता-पोषता है। उसे देखने पर यह आश्चर्यजनक लगेगा कि नेशनल कॉफ्रेंस और उग्रवादी संगठनों का आपस में कोई ताल-मेल न होने के बावजूद दोनों की मांगे एक समान और भाषा मिलती-जुलती क्यों है? जाहिर है कि सेना उमर अब्दुल्ला की इस मांग का और उनके शांति स्थापित हो जाने के विश्लेषण का विरोध करेगी और उसने ऐसा किया भी। रक्षा मंत्रालय भी उमर अब्दुल्ला की इस मांग का विरोध कर रहा हैऔर कश्मीर में पूरी तरह स्थिति सामान्य हो जाने के अब्दुल्ला के इस तर्क से सहमत नहीं है लेकिन सोनियां-कांग्रेस की भीतर की नीति को जानने-बुझने वाले अब्दुल्ला परिवार ने गृह मंत्रालय में अपना एक विश्वस्त साथी खोज लिया है। गृह मंत्री पी. चिदंबरम् जैसे-जैसे टुजी स्पेक्ट्रम घोटाले में गहरे फंसते जा रहे हैं वैसे-वैसे वे उमर अब्दुल्ला की कश्मीर नीति के समर्थक बनते जा रहे हैं। यह चिदंबरम् की रणनीति का हिस्सा है या फिर रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय में जोर आजमायिस का परिणाम, इसे तो वे ही बेहतर जानते होंगे। लेकिन इतना स्पष्ट है कि उनकी इस नीति से कश्मीर में बवाल बढ़ता जा रहा है।
शायद पी. चिदंबरम् के इसी समर्थन के बल-बूते उमर अब्दुल्ला ने अब सार्वजनिक रूप से कहना शुरू कर दिया है कि उन्हें सेना की स्थिति और उसके आंकलन की चिंता नहीं है। राज्य के संविधान के अनुसार उन्हें पुरा अधिकार है कि वे राज्य में से सेना विशेषाधिकार कानून को हटा दें। अब्दुल्ला ने अपनी यह प्रतिज्ञा भी दोहराई है कि वे अपने इस अधिकार का अवश्य प्रयोग करेंगे।
इस पूरे विवाद में सोनिया कांग्रेस की स्थिति उसी प्रकार की राष्ट्रघाती है जिस प्रकार की स्थिति इंदिरा गांधी ने 1984 में फारूख अब्दुल्ला को गद्दी से हटाकर पैदा कर दी थी। इंदिरा गांधी के उस काम से, कश्मीरियों में लोकप्रियता खोते जा रहे फारूख अब्दुल्ला रातोंरात कश्मीरियों की दृष्टि में शहीद हो गए थे और उनका रूतवा कश्मीर की राजनीति में अचानक बढ़ गया था। सोनिया कांग्रेस की सहायता से ही जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार चल रही है। उमर अब्दुल्ला सोनिया कांग्रेस के कंधों पर बैठकर ही सेना को ललकार रहे हैं। यदि सोनिया कांग्रेस उमर अब्दुल्ला के इन रियासत विरोधी कदमों से असहमत है तो उसे अपना समर्थन इस सरकार से वापस लेना चाहिए और उमर अब्दुल्ला की सरकार को विधानसभा में अपना बहुमत सिध्द करने के लिए कहना चाहिए। सोनिया कांग्रेस यह रास्ता तो नहीं अपना रही बल्कि रिसायत की जनता की आंखों में धुल झोंकने के लिए उमर अब्दुल्ला का विरोध करने का नाटक करती जा रही है। यकिन मानें तो ज्यों-ज्यों यह नाटक लंबा होता जाएगा त्यों-त्यों कश्मीर की आवाम से कटते जा रहे उमर अपने पिता की तरह 1984 में फिर शहीद बनने की मुद्रा में आ जाएंगे। बेहतर यह होगा कि सोनियां कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की आपस की नूराकुश्ती बंद हो जानी चाहिए। साथ ही राज्य की जनता को दोनों पार्टियों का सही चेहरा देखने का अवसर मिल सके। सोनिया कांग्रेस को चाहिए कि वह जनता को धोखा देने के बजाय उमर अब्दुल्ला की सरकार से समर्थन वापस लेने का पत्र राज्यपाल को लिखे। उसके बाद उमर अब्दुल्ला को विधान सभा में बहुमत सिध्द करने का अवसर दिया जाना चाहिए। यदि उमर अब्दुल्ला ऐसा नहीं कर सकेंगे तो यकीनन उनकी सरकार समाप्त हो जाएगी लेकिन तब उन्हें यह कहने का अवसर नहीं मिलेगा कि लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई उनकी सरकार को 1984 की तरह गिरा दिया गया है। सोनिया कांग्रेस दोनों हाथों से खाना चाहती है। केंद्र में नेशनल कांफ्रेंस का समर्थन पाने के लिए वह श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला की सरकार को गिराना भी नहीं चाहती और जम्मू के लोगों को खुश करने के लिए विशेष सेना अधिकार कानून के खिलाफ बोलने का ड्रामा भी कर रही है। सोनिया कांग्रेस के इस ड्रामे से जम्मू-कश्मीर का अहित तो होगा ही देश को भी नुकसान पहुंचेगा।
प्रोफ़ेसर अग्निहोत्री जी से पहला प्रश्न ,क्या आप बताने का कष्ट करेंगे की जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का विकल्प क्या है?
दूसरा प्रश्न,,यह कौन सा प्रजातंत्र है जिसमे अनिश्चित काल के लिए स्वाधीन भारत केकुछ भू भाग के सब नागरिकों को अनिश्चित काल के लिए ,पीढी दर पीढी के लिए के मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाए,क्योंकि वहां के चंद लोग भारतीय संविधान के विरुद्ध कार्रवाई कर रहे हैं?.