जन विश्वास की कसौटी पर: मोदी सरकार

वीरेन्द्र सिंह परिहार

केन्द्र में शासन कर रही मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस बीच कई लोग सवाल करते हैं- क्या अच्छे दिन आ गए? इतना तो तय है कि बहुत कठोर तकनीकी अर्थों में अच्छे दिन भले न आए हांे, पर मोदी सरकार के प्रति कोई बहुत दुराग्रही व्यक्ति ही यह कहेगा कि अच्छे दिन आने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो चली है, बल्कि गति भी पकड़ चुकी है। यूं तो हर सरकार अपनी उपलब्धियों का दावा करती है, लेकिन किसी सरकार की सफलता की कसौटी तो एक मात्र यही हो सकती है कि जन विश्वास पर वह कहाॅ तक खरी उतरती है? मोदी सरकार के मामले में एक चीज तो बहुत स्पष्ट रूप से माननी पड़ेगी कि अब भारतीय राजनीति में वोट बैंक की राजनीति का दौर एक तरह से समाप्त हो चला है। तभी तो सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान वह तीन तलाक जैसी प्रथा को संविधान विरोधी एवं स्त्री विरोधी बता चुकी है। ममता बनर्जी जैसी राजनीतिज्ञ भले इसे साम्प्रदायिकता बढ़ाने वाला कदम बताए तो यह उनकी समझ है। देश में सुशासन की एक बेहतर शुरूआत हुई है। निसन्देह सुशासन की दिशा में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है-शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार की समाप्ति, भाई-भतीजावाद एवं पक्षपात से परे समदर्शी शासन व्यवस्था। ऐसा दावा तो नहीं किया जा सकता कि भ्रष्टाचार जड़ मूल से साफ हो गया है, लेकिन यह बड़ी उपलब्धि है कि तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद अभी तक मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। निसन्देह भ्रष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद का चोली-दामन का साथ है और उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार नहीं तो भाई-भतीजावाद की भी कोई गुन्जाइश नहीं बनती। जैसा कि गीता में कहा गया है-’’श्रेष्ठ लोग जैसा आचरण करते हैं, आम लोग उसका अनुसरण करते हैं।’’ इसी का नतीजा है कि देश तेजी से विकास पथ पर चल पड़ा है। देश की आजादी के बाद जिस महगाई को लेकर आए दिन बड़े सवाल खडे़ होते थे, उस महगाई की कहीं चर्चा ही नहीं है। मोदी सरकार के आने के पूर्व जहाॅ मुद्रास्फीति की दर 8 प्रतिशत से ज्यादा थी, वहीं अब तीन प्रतिशत के अंदर है। इसी तरह से नोटबंदी के बावजूद विकास दर 7.10 प्रतिशत है, औद्योगिक उत्पादन की दर जो 1914 में नकारात्मक स्थिति में थी, वह 5-7 प्रतिशत हो गई है। आधारभूत संरचना की दृष्टि से सड़कों, रेल की पटरियों और बिजली उत्पादन की दृष्टि से देश ने तेजी से प्रगति की है। बंदरगाहों के लिए सागरमाला, सड़कांे के लिए भारतमाला जैसी योजनाए चलाई जा रही हैं। 1916-17 में रिकार्ड 1लाख 14 हजार कि.मी. राजमार्गों का निर्माण कार्य किया गया। ’’वन रैंक वन पेन्शन’’ योजना लागूकर मोदी सरकार ने यह साबित कर दिया कि वह जो कहती है वह करती है। स्टार्टअप और स्टैण्डअप योजना के तहत देश के सात करोड़ से ज्यादा युवाओं को स्वरोजगार के अवसर मिले हैं। मेक इन इंडिया के तहत देश सिर्फ रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की दिशा में तेजी से आगे ही नहीं बढा है, बल्कि उसने चीन की सीमा पर राफेल विमान, ब्रम्होस मिसाइल और होवित्जर तोपों की तैनाती कर देश की सुरक्षा को चाक चैबंद कर दिया है। सितंबर महीने में पाकिस्तान के विरूद्ध सर्जिकल स्ट्राइक कर और 23 मई को पाकिस्तान के कई बंकर उड़ाकर मोदी सरकार ने यह साबित कर दिया है कि उसका सीना सचमुच 56 इंच का है।

इस वर्ष नोटबंदी का फैसला स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवतः सबसे बड़ा फैसला था। विरोधियों और निहित स्वार्थी तत्वों ने इसे लेकर देश की अर्थव्यवस्था को ढह जाने की भविष्यवाणी की थी। लेकिन नोटबंदी का सबसे बड़ा कमाल यह कि इससे देश को पूरे 91 लाख नए करदाता मिले। जो लोग यह कहते है कि पूरा काला धन बैंकों में वापस आ गया, उन्हंे यह भी पता होगा कि ऐसे लाखों लोग आयकर की राडार में हैं जो आने वाले दिनों में कटघरे में खड़े दिखाई देंगे। बेनामी सम्पत्ति के विरूद्ध मोदी सरकार का अभियान शुरू ही हो चला है, जिसमें उसके पहचान की कार्यवाही बहुत हद तक हो चली है और इन पर जल्दी ही गाज गिरने वाली है। इस तरह से देश में जो एक कालेधन की समानान्तर अर्थव्यवस्था बन गई थी वह समाप्त होने की ओर है। जो देश के विकास और उत्थान के लिए ही नहीं, बल्कि जनसामान्य के लिए भी निहायत कल्याणकारी साबित होगी। चिर प्रतीक्षित जीएसटी के लागू होने से देश की अर्थ व्यवस्था में युगान्तरकारी परिवर्तन होने जा रहा हैं।

मोदी सरकार के पूर्व अमूमन देश में एक विचित्र गठजोड़ का दौर कायम था। जिसका परिणाम था- एक लूटतंत्र का भरपूर विकास। चिकित्सा मंे लूट, शिक्षा में लूट, राजनीति में लूट। लेकिन वह दौर समाप्त प्राय है। मोदी सरकार की गरीब-हितैशी नीतियों की स्थिति यह है कि जीवनरक्षक दवाओं के दाम भारी मात्रा में घटा दिए गए। कैंसर की दवा में 86 प्रतिशत तक की कमी की गई, तो हार्ट में काम आने वाला स्टंेट की कीमत 4-5 गुना तक घटा दी गई। ब्रान्डेड दवाओं के नाम पर अब लूट नहीं चलेगी, क्योकि डाक्टर सिर्फ जेनरिक दवा ही लिख सकेंगे। बिल्डर जो खुली लूट मनाते थे, उन पर रियल इस्टेट बिल के माध्यम से नकेल कस दी गई है। शिक्षा के क्षेत्र में भी लूट रोकने के कई कदम उठाए जा रहे हैं। शुचिता और सेवा की राजनीति को लेकर मोदी सरकार इतनी संवेदनशील है कि उसने समिति की रिपोर्ट क बाद भी विगत तीन वर्षों में सांसदों और मंत्रियों के वेतन नहीं बढ़ाए, जबकि कई राज्यों में विधायकों के वेतन गई गुना बढ़ चुके हैं।

यह पूछा जा सकता है कि मोदी सरकार भी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है? इसके उत्तर में निसंदेह कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान में कानून के समक्ष जो समानता का अधिकार दिया गया है, उसे मोदी सरकार ने बखूबी कायम किया है। अब यह कहावत बिल्कुल उलट चली है कि कानून गरीबों पर शासन करता है और अमीर कानून पर शासन करता है। इसी का नतीजा है कि बड़े राजनीतिज्ञ जैसे ओम प्रकाश चैटाला, छगन भुजबल जैसे लोग जेल में हैं, तो कई जेल जाने की प्रक्रिया में गुजर रहे हैं। लालू यादव जैसे राजनीतिज्ञ जिनके परिवार के 22 ठिकानों पर छापा पड़ चुका है, भले ही यह कहें कि वह 2019 में मोदी सरकार को दिल्ली की कुर्सी से उतार देंगे। लेकिन सभी को यह पता है कि यह ’’खिसियानी बिल्ली संभा नोचे’’ वाली बात है। बड़ी बात यह कि कभी रिक्शा चलाने वाले लालू यादव यह नहीं बताते कि उनके और उनके बेटे,बेटियों के पास हजारों करोड़ रूपये से ज्यादा की सम्पत्ति कहाॅ से आई। निसंदेह मोदी सरकार के पूर्व इस तरह की लूट को जहाॅ राजनीतिज्ञों का विशेशाधिकार माना जाता था, वहीं अब ऐसे लोग कानून के कटघरे में आ रहे हैं। कुल मिलाकर अब जवाबदेही की राजनीति का दौर आ गया है जिसका भारतीय राजनीति में नितांत अभाव था। इसी जबावदेही की राजनीति के चलते देश एक नए युग में प्रवेश कर चुका है जो निसंदेह अच्छे दिन की सबसे बड़ी कसौटी है। यह बात अलग है कि जिन्होंने इस लूट की संस्कृति को बढावा दिया, उनके अनुसार यह विरोधियों को दबाने और कुचलने का प्रयास है। पर आम जन को इस बात का पूरा भरोसा है कि कानून के तहत ही यह सब हो रहा है और ऐसा होना ही चाहिए।

मोदी सरकार के कटु आलोचक भी इन तीन वर्षों में मोदी सरकार की उपलब्धियों को देखते हुए नरेन्द्र मोदी की तुलना इंदिरा गाॅधी से करने लगे हैं। इसमें रामचन्द्र गुहा जैसे वाममार्गी, बुद्धिजीवी, इतिहासकार शामिल हैं। बहुत से लोग इस झाॅसे में आ भी जाते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से तथ्यों को अपने अनुकूल तोड़ने-मरोडने का प्रयास है। ऐसे लोगों को यह पता होना चाहिए कि 1971 में लोकसभा चुनाव में गरीबी हटाओ के नारे के चलते मतदाताओं ने श्रीमती इदिरा गाॅधी को अपार बहुमत दिया था। लेकिन 2 वर्षों में ही इंदिरा गाॅधी की लोकप्रियता घटते क्रम की ओर जाने लगी और महंगाई, कालाधन और भ्रष्टाचार के चलते पूरे देश में जन आंदोलन शुरू हो गया, जिसकी परिणित 26 जून 1975 को आपातकाल से हुई। लेकिन तीन वर्षों के शासनकाल के बाद नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ते क्रम पर है। एक सर्वे के अनुसार यदि आज चुनाव हो तो भाजपा 2014 से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतेगी। ’’हाॅथ कंगन को आरसी क्या’’ उड़ीसा,महाराष्ट्र और दिल्ली के स्थानीय निकाय चुनाव तथा उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम सामने है। जिससे यह साबित होता है कि तीन वर्षों में ही मोदी देश में महानायक बन चुके हैं। इस तथ्य से कई लोग परिचित होंगे कि देश में वंशवाद की राजनीति, चुनावों में अपराधियों का उपयोग, भ्रष्टाचार को राजनीतिक संरक्षण-संस्थागत रूप से इंदिरा गाॅधी के दौर से शुरू हुआ, जिसका दुष्परिणाम देश आज भी भुगत रहा है। इसके उलट मोदी वंशवाद, भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को पूरी तरह निर्मूलन करने का प्रयास कर रहे हैं। तभी तो सिर्फ देश ही नहीं, पूरी दुनियाॅ ’’मोदी-मोदी’’ चिल्ला रही है। जैसा कि स्वर सामाज्ञी लता मंगेशकर ने कहा कि मोदी जैसा प्रधानमंत्री भारत में कोई नहीं हुआ, और मैं मोदी के तीन वर्षों के शासन से अभिभूत और धन्य हूॅ। इस तरह से जन विश्वास की कसौटी पर मोदी सरकार को पूरी तरह पास किया जा सकता है। अन्त में मोदी सरकार के आने से देश में जिस तरह से परिदृष्य में बदलाव आ रहा है। उसे देखकर गोपालदास नीरज की ये पक्तियाॅ सार्थक लगती हैं – ’’ मेरे देश निराश न हो, फिर जग बदलेगा, मग बदलेगा’’। इस तरह से मोदी सरकार के इन तीन वर्षों में हताशा और निराशा के बादल छट चुके हैं। अविश्वास और शंका का कुहरा परिदृष्य से बाहर हो चुका है। मोदी सरकार की तीन वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है।

 

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