राम जेठमलानी का भाजपा से निष्कासन

डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

 jethmalani

एक अच्छे वकील के नाते ख्याति प्राप्त राम जेठमलानी को आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने पार्टी से बाहर निकाल दिया। राजनीति में थोड़ी-सी भी रुचि रखने वाले लोगों के लिए इस खबर में आश्चर्यजनक कुछ भी नहीं है। इसके विपरीत आश्चर्य इस बात का है कि जेठ मलानी इतने लम्बे अरसे से भाजपा में क्या कर रहे थे और उन्हें उस समय पार्टी से क्यों नहीं निकाला गया, जब बाप-बेटे ने तात्कालिक भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था। काबिले गौर है कि राम जेठमलानी के बेटे महेश जेठमलानी भी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य थे। राम जेठमलानी का भाजपा के वैचारिक आंदोलन से भी कुछ लेना देना नहीं था। एक वकील के नाते वे विविध प्रकार के मुकदमें लड़ते हैं और पूरी ईमानदारी से जो पक्ष उनकी कानूनी सेवा खरीदता है उसका  बचाव करते हैं। कांग्रेस या फिर किन्हीं व्यक्तियों द्वारा चलाई गयी राजनैतिक पार्टियों में इस प्रकार के लोगों का स्थान हो सकता है क्योंकि व्यक्ति आधारित पार्टियों में इस प्रकार की सेवाएं देने वाले लोगों का सहज ही राजनैतिक स्थान भी बन जाता है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी केवल एक दल नहीं है बल्कि एक वैचारिक आंदोलन भी है। इसलिए भाजपा में शामिल होने या फिर वहां रहने के लिए उस वैचारिक आधार के प्रति प्रतिबधता भी बहुत जरुरी है। राम जेठमलानी को इस बात की दाद तो देनी पड़ेगी कि उन्होंने कभी यह पाखंड़ नहीं किया कि उनको भाजपा के वैचारिक आधार के प्रति निष्ठा है। उनका तो अभी भी यह कहना है कि भाजपा ने जब उनसे सम्पर्क किया तो उसे पता था कि जेठमलानी की सोच क्या है? इस सोच को जानते हुए भी पार्टी ने उन्हें स्वीकार किया। ऐसे में पार्टी को कोई अधिकार नहीं है कि वह जेठमलानी की विचारधारा को बदल दें बल्कि जेठमलानी को यह आधिकार है कि वह पार्टी की विचारधारा को बदलें। जेठमलानी की इस साफगोई के लिए प्रशांसा करनी पड़ेगी मैंने शुरू में ही कहा है कि आश्चर्य यह नहीं है कि जेठमलानी को पार्टी से निकाला गया है आश्चर्य इस बात का है कि इतने लम्बे अरसे से पार्टी ने उन्हें घर के अंदर रहने दिया। भाजपा जैसे वैचारिक आंदोलनों में जब राम जेठमलानी जैसे व्यक्ति घुसपैठ कर जाते है या फिर उनको घुसपैठ करने की सुविधा प्रदान कर दी जाती है तो निश्चय ही वहां प्रदूषण फैलता है। भाजपा में राम जेठमलानी के कारण ऐसा ही हो रहा था लेकिन उसके बावजूद पार्टी चुप थी। राम जेठमलानी लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़े थे। उस चुनाव में उनका हश्र तो वही हुआ जो हो सकता था लेकिन उस चुनाव में जेठमलानी ने वाजपेयी और भाजपा के खिलाफ उन तमाम विशेषणों का इस्तेमाल किया जिनका इस्तेमाल वे मुकदमा लड़ते हुए विरोधी पक्ष को चित करने के लिए करते हैं। जेठमलानी भारत का राष्ट्रपति बनने का भी कई बार प्रयास कर चुके है और विभिन्न राजनैतिक दलों के दरवाजे पर अपनी योग्यता के प्रमाण पत्र दिखा कर, स्वयं को राष्ट्रपति पद का प्रत्याक्षी घोषित करने की गुहार लगा चुके हैं। यह अगल बात है कि उनकी असली योग्यता को पहचानते हुए किसी भी राजनैतिक दल ने उन्हें राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाने के लिए खास तक नहीं डाली। अनुशासन में रहना जेठमलानी की फितरत नहीं है। वे भाजपा में भी अपनी शर्तों पर ही टीके हुए थे। यही कारण था कि वे अनुशासन व मर्यादा की चिंता न करते हुए सार्वजनिक रुप से पार्टी की आलोचना ही नहीं करते थे बल्कि उसे प्रताड़ित भी करते थे। उनकी आलोचना या प्रताड़ना किन्हीं वैचारिक मुद्दों को लेकर नहीं होती थी बल्कि व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित थी। उनके इस प्रकार के व्यवहार के कारण पार्टी नेतृत्व को कार्यकर्ताओं में उत्तर देना मुश्किल होता जा रहा था। इसलिए आश्चर्य करने वाली बात यह है कि पार्टी इतने लम्बे समय तक उनकी तमाम हरकतों के बाद भी झेलती रही।

 

देर से कार्रवाही करने का एक और नुकसान होता है, पार्टी के भीतर राम जेठमलानी जैसे जो दूसरे लोग होते है, जिनकी पार्टी के वैचारिक आधार के प्रति कोई निष्ठा नहीं होती बल्कि जो भाजपा को सत्ता प्राप्ति का माध्यम मात्र मानकर डटे होते हैं उनके हौसले भी बुलंद होने लगते है। ऐसे बुलंद हौसले वाले लोग विभिन्न विषयों पर अपनी कीमती यह पार्टी के भीतर जाहिर करने की बजाए मीडिया में जाहिर करके सुर्खियां तो बटोर लेते है लेकिन उससे अनुशासन हीनता का जो वातावरण बनता है उसके कारण पार्टी की पहचान भी धुमिल होती है और वैचारिक निष्ठा से जुड़े हुए दिन-रात, खून-पसीना बहाने वाले कार्यकर्ताओं में निराशा भी उत्पन्न होती है। राम जेठमलानी को बाहर का रास्ता दिखा कर भाजपा ने चाह देर से ही सही लेकिन एक सही संकेत दिया है।

यह भी निश्चित है कि राम जेठमलानी के बाहर जाने से भारतीय जनता पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा। क्योंकि राम जेठमलानी कोई जननेता नहीं बल्कि एक वकील है। राम जेठमलानी जैसे वकिल के पास केवल ही मुवकिल होते हैं जनाधार नहीं। इसलिए इनके निष्कासन से हो सकता है कि इनके दो-चार मुवकिल पार्टी छोड़ दें। लेकिन भाजपा के जनाधार को जेठमलानी के जाने से कोई आंच नहीं आएगी। अलबता, जेठमलानी की राज्यसभा की सीट खतरे में पड़ सकती है क्योंकि उन्होंने संसद में पार्टी के दिशा-निर्देश का उलंघन किया था। वैसे तो जेठमलानी के पुराने रिकॉड को देखते हुए, यह खतरा भी बना हुआ है कि शायद वे अपनी राज्यसभा की सीट बचाने के लिए पार्टी से फिर समझौता करने का प्रयास करें।  परन्तु लगता है इस बार पार्टी ने उन्हें वापिस न लेने के लिए ही निकाला है।

1 COMMENT

  1. If he was greater than the party then he should not have joined the party . He must have followed the discipline of the party.He cannot be trusted.

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