हिमकर श्याम
साल 2014 जाते-जाते अच्छे दिनों की उम्मीद जगाता जा रहा है. झारखंड की जनता ने पहली बार भाजपा की नेतृत्व वाली एक स्थिर सरकार का चुनाव किया है. राज्य के संपूर्ण विकास के लिए भाजपा को एक मौका दिया है. पूर्ण बहुमत से जीत कर सत्ता तक पहुँचने वाले भाजपा गठबंधन को जनाकांक्षाओं और अपेक्षाओं को समझना होगा. जनता की उम्मीदों को पूरा करने की दिशा में सार्थक पहल करनी होगी, जिसके लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत है. राज्य के नए मुख्यमंत्री होंगे, उन्हें जनता की उम्मीदों पर खड़ा उतरना होगा.
यदि नेतृत्व में इच्छाशक्ति हो, तो खराब से खराब चीजों को भी सुधारा जा सकता है. झारखण्ड में शुरू से ही इसका अभाव रहा. राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के चलते राज्य का समुचित विकास नहीं हो पाया. जो भी नेतृत्व उभरा उसने उन मुद्दों को भूला दिया जो यहाँ की जनता की रोजमर्रे की जिन्दगी के शोषण, उत्पीड़न और दुखः दर्द से जुड़ा था. प्रदेश के नेताओं ने राज्य से अधिक स्वयं का हित महत्वपूर्ण समझा. राजसत्ता लूट-खसोट का जरिया बन गया. झारखण्ड के लिए चुनाव नतीजे कई मायनों में महत्वपूर्ण माने जा सकते हैं. पहली बार एक स्थिर सरकार का जनादेश मिला हैं. विकास की उम्मीदें फिर एक बार जगी हैं.
पूर्ण बहुमत के साथ-साथ नयी सरकार को चुनौतियों की सौगात भी मिलने वाली है. यह चुनौती शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की है. झारखण्ड एक ऐसा राज्य है, जिसने राज्य गठन के 14 वर्षों के भीतर 13 मुख्यमंत्री देखे और तीन बार राष्ट्रपति शासन का का कटु अनुभव किया. राजनीतिक अस्थिरता जिसकी पहचान बन गयी. विकास की दौड़ में जो अपने साथ बने उत्तराखंड और छतीसगढ़ से कोसों पीछे छूट गया. अस्थिरता और सरकारों के बनने-बिगड़ने का खामियाजा राज्य की जनता को भुगताना पड़ा. प्राकृतिक और खनिज संसाधनों में अव्वल रहने के बावजूद विकास के मामले में यह देश के पिछड़े राज्यों में शुमार हो गया. यह पिछड़ापन सिर्फ आर्थिक मोरचे पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक मोरचे पर भी दिखता है. छोटे और मध्यम उद्यमों की कमी और प्रदेश में रोजगार के अवसर के अभाव में बेरोजगारी, विस्थापन और पलायन की समस्या दिन-ब-दिन बढती रही. गांव, कस्बों, जिलों का बुनियादी ढांचा काफी पिछड़ा हुआ है. शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली और सफाई जैसे क्षेत्रों में इन वर्षों में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाया है. कुपोषण की दृष्टि से झारखंड मध्य प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है. खाद्यान के मामले में भी झारखण्ड आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है. यहां हर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सुधार की जरूरत है.
विस्थापन, पलायन, भूमि अधिग्रहण, स्थानीयता, कानून व्यवस्था और ग्रेटर राँची जैसे मुद्दे अगली सरकार का इंतजार कर रहे हैं. यह जनादेश जनाकांक्षाओं और लोगों की उम्मीदों से जुड़ा है. राज्य गठन के बाद से ही झारखंड की सरकारों की प्राथमिकता में विकास नहीं रहा, जबकि यहाँ विकास की अपार संभावनाएं हैं. कोयला, लोहा, बॉक्साईट और अबरख से लेकर यूरेनियम का यहाँ अकूत भण्डार है. नयी सरकार को उद्यमिता विकास व स्वरोजगार विकसित करने की चुनौती होगी. सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के साथ-साथ विकास के लिए निजी पूंजी निवेश, रोजगार के मौकों का सृजन और आम लोगों की आय बढ़ाने की सार्थक पहल करनी होगी. स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अपने विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाना होगा. पंचायती राजव्यवस्था को मजबूत करने की कोशिश करनी होगी ताकि स्थानीय स्तर पर विकास सही तरीके से हो सके. विद्युत उत्पादन को जीरो पावर कट की स्थिति पहुंचाने के लिए बंद पड़े थर्मल पावर प्लांटों को चालू करने की योजना बनानी होगी. विकास की योजना में विस्थापितों का ध्यान रखना होगा. विस्थापितों के विरोध के चलते कई विकास योजनाएं बंद हो गयीं हैं. इसके लिए ठोस एवं व्यवहारिक पुनर्वास नीति बनानी होगी. विकास कार्यों को गति देने के लिए नक्सली समस्या का हल खोजना होगा. यदि नयी सरकार नक्सली समस्या पर काबू पा लेती है तो यह बड़ी उपलब्धि होगी. भ्रष्टाचार से निपटने की चुनौती भी कम बड़ी नहीं है. राजनीतिक जवाबदेही की कमी और संस्थाओं की कमजोरी के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है. लूट के खेल में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों से लेकर प्रखंड स्तर के छोटे कर्मचारी शामिल हैं. नयी सरकार को भ्रष्टाचार मुक्त झारखण्ड का सपना पूरा करना होगा.
इस बार राज्य की जनता ने कई आश्चर्यजनक फैसले सुनाये हैं. तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी, मधु कोड़ा और पूर्व उप मुख्यमंत्री और आजसू सुप्रीमों सुदेश महतो चुनाव हार गये. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बरहेट से तो जीते पर अपने ही गढ़ दुमका से हार गये. वर्तमान सरकार के कई मंत्री और कद्दावर नेताओं को हार का सामना करना पड़ा. अकेले चुनाव लड़ने के बावजूद झामुमो घाटे में नहीं रहा. उसने अपनी एक सीट भी बढ़ाई. कांग्रेस तो रेस में थी ही नहीं. कई विधायकों के पार्टी से अलग हो जाने के कारण जेवीएम को अपनी कुछ सीटें गंवानी पड़ी. कुछ निर्दलीय जीते मगर वे इस बार सत्ता से दूर रहेंगे, जो झारखण्ड के लिए अच्छा संकेत है. मतदाताओं ने अपनी जिम्मेदारी बख़ूबी निभायी है. नयी सरकार को भी इस जनादेश का सम्मान करते हुए इसकी चुनौतियों और जिम्मेदारियों को समझना होगा.
राज्य के निर्माण के पीछे यह भावना थी कि प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य सबसे गरीब क्षेत्र बन कर न रहे. कोशिश थी कि राज्य अपने लोगों के विकास की योजनाएं ज्यादा प्रभावी तरीके से लागू कर सके और लोगों की जिन्दगी बेहतर बना सके. झारखंड के भौतिक संसाधन जल, वन, खनिज विस्तृत औद्योगिक संसाधन को बनाये रखने और क्षेत्र को विकसित बनाने के लिए निःसंदेह पर्याप्त थे. भावी सरकार के पास एक मूलभूत ढांचा है, जरूरत एक पूर्व निश्चित दिशा में काम करने की है ताकि आर्थिक रूप से ऊर्जावान झारखंड का विकास किया जा सके, निवेश के अनुकूल माहौल बनाया जा सके. झारखण्ड में अब तक जो भी सरकारें रहीं वह जनता की उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर पायीं. झारखण्ड की सत्ता अधिक समय तक भाजपा के ही हाथों में रही, लेकिन हर बार गठबंधन की मजबूरियों का बहाना होता था. इस बार यह बहाना नहीं चलेगा. वैसे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसकी सहयोगी पार्टी आजसू अपनी अवसरवादिता के लिए जानी जाती है. बहरहाल, तमाम निराशाओं के बावजूद उम्मीद तो यही रखनी चाहिए कि रघुवर दास विकास और सुशासन के जरिये झारखण्ड को नए मुकाम पर ले जायेंगे. रघुवर दास के रूप में राज्य को पहली बार एक गैर आदिवासी मुख्यमंत्री मिला है.