झुन्ने और शन्नो

rat                  बसंत उभार पर था|और जब‌ यह शहंशाह उभार पर होता है तो फिर क्या कहनें| जागते हुये भी लोगों को रंगीन और हसीन सपने आने लगते हैं|चारों तरफ बहार ,क्या जंगल क्या गांव और क्या शहर,मजे ही मजे|पीली सरसों, गेहूं की पकती हुईं बालियां और आम के वृक्षों मे मंजरियां बसंत की उपस्थिति दर्ज करा दॆती है|ठंडी शीतल सुहानी हवा आनंद को कई गुना बढ़ा देती है|जीव जन्तुओं में नया उल्लास भर जाता है, बे मतलब ही धमा चौकड़ी करने लगते हैं| झुन्ने लाल भी मस्ती में दौड़ रहे थे|झुन्ने से मतलब झुन्ने छछूंदर| जंगल के छोटे राजकुमारों में से एक सुंदर राज कुमार||इधर से उधर और उधर से इधर, आज कुछ ज्यादा ही कूद रहे थे|आखिर मौका ही ऐसा था|आज उनकी शादी थी| आज रात को शन्नो छछूंदरी उनकी हो जाने वाली थी|उसके पापा कल ही बात पक्की कर आये थे|मंगेतर शन्नो दुनियां की सभी छछूं दरियों से सुंदर थी| सुडौल नाक नक्शा सदी हुई चाल चुलबुलापन कोई एक नज़र देखते ही फिदा हो जाये|
शाम को बारात तैयार थी| बेंड मय आर्केस्ट्रा के तैयार था|अपनी बिरादरी के लोग चूहा, गिलहरी ,लोमड़ी नेवले इत्यादि को लेकर बारात चली| विशेष अतिथियों में शेर, हाथी भालू, बंदर भी साथ में थे| बारात शन्नो के दरवाजे पर पहुंची तो जोरदार स्वागत हुआ|शन्नो बाहर ही वरमाला लिये हुये अपने दूल्हे राजा झुन्ने के गले मे माला डालने को बेताब थी| सजे सजाये झुन्ने शन्नो के सामने जा पहुंचे और अपने चमचमाते हुये जींस पेंट की ओर इशारा करते हुये अपनी रईसी का बखान कर अपनी गरदन शुतुरमुर्ग की तरह शन्नो की तरफ बढ़ा दी| शन्नो ने वरमाला पहनाई तो परंतु बगल में खड़े चूहे के गले में| झुन्ने अवाक खड़े रह गये ,ये क्या हो गया|क्या शन्नो भूल गई|इधर चूहा भी सटपटा गया|डर और आश्चर्य से वह इधर उधर देखने लगा| झुन्ने का पारा थर्मामीटर‌ फोड़कर बाहर निकल आया और शन्नो के ऊपर गिरा| “क्या तुम पागल हो गई हो |माला मुझे पहनाना है, चूहे को नहीं|झुन्ने छछूंदर मैं हूं यह  चूहा नहीं|”ऐसा कहकर उसने चूहे को जोरदार धक्का दिया और शन्नो के सामने खड़े होकर चीखने लगा असली दूल्हा मैं हूं यह गधा चूहा नहीं|
” अबे हट बड़ा आया असली दूल्हा, जानवर कभी कपड़े पहनते हैं क्या?जींस पहनते हैं क्रया?तुझे शरम नहीं आती, कपड़े पहने है और अपने आपको जानवर कहता है|क्या तुझे जानवरों के उसूल नहीं मालूम कि जानवर नंगे रहते हैं कपड़े नहीं पहनते|”छछूंदरी जब जोरों से चिल्लाई तब झुन्ने को होश आया |बहुत बड़ी भूल हुई थी|परंतु अब क्या हो सकता था….चिड़िया चुग गई खेत| शन्नो कहे जा रही थी,”कपड़े सिर्फ आदमी पहनते हैं,मन के काले तन पर सफेद वस्त्र हूं ढोंगी …..”तू कपड़े पहनकर आया तूने जानवर धर्म का उल्लंघन किया ,इसकी यही सज़ा है कि मैंने चूहे से विवाह कर लिया है| इतना कहकर उसने चूहे के गले में हाथ डाला और हँसती हुई दूसरी ओर चल दी|

 

Previous articleबैंकों के लिए फीकी पड़ती सोने की चमक
Next articleकौन बिगाड़ रहा है समाज
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here