जिया जले, जाँ जले !

देवेंद्रराज सुथार

अब तो न दिन को चैन आता है और न ही रात को नींद आती है। इस आलम में कुछ नहीं भाता है और न ही कोई ख्याल आता है। जिया जलता है। जाँ जलती है। नैनों तले धुआँ चलता है। रुक जाइए ! यदि आप मुझे प्रेमी समझने की भूल कर रहे है तो ! ऐसा हाल केवल प्रेम के वियोग पक्ष में ही नहीं होता बल्कि ऐसा तो मेरे साथ अक्सर गर्मियों के दिनों में होने लगता है। मैं पूरी रात सो नहीं पाता, सिर्फ करवट बदलता रहता हूं। मच्छरों को चकमा देने की कोशिश करता हूं। लेकिन सफल नहीं हो पाता। जब गर्मी पव्वा चढ़ाकर आती है, तो मेरे माथे का तापमान बढ़ने लग जाता है। मेरी इस दुःख की घड़ी में मेरा साथ सगे-संबंधियों की तरह घर का पंखा भी नहीं देता है। मैं अकेला पड़ जाता है। मैं रोता हूं। यह सोचकर की जब कूल-कूल वाली सर्दी मेरे पास थीं, तो मैंने उसकी कोई कद्र ही नहीं की। उसे कभी प्यार से देखा भी नहीं। यहां तक कभी सीधे मुंह उससे बात भी नहीं की। हमेशा उससे कांपता रहा और उसे छोड़कर जाने की धमकियां देता रहा। लेकिन एक दिन वह जब सच में मुझे छोड़कर चली गई तो मुझे पता चला कि उसकी मेरे जीवन में कितनी अहमियत थीं। वो थी तो मुझे रात को गर्म होने में भी मजा आता था। लेकिन अब तो मैं पहले से ही गर्म होता हूं, रात को ओर गर्म होकर आग थोड़ी ना लगानी है।

कभी-कभी मेरे दिल में यह ख्याल आता है कि गर्मी बहुत ही निष्ठुर है। यह सबको एक ही नजर से देखती है। उसको आरक्षण जैसी कोई समझ है नहीं? अमीर और गरीब को एक साथ तौलकर यह भेदभाव ही तो करती है ! अमीर को जितनी लगती है, उतनी कि उतनी यह गरीब को भी लगती है। जबकि अमीर के पास तो इसको कम करने के लिए वैकल्पिक इलाज पद्धति कूलर और एसी है। ठंडा पीने और खाने के लिए संसाधन भी है। इसके विपरीत गरीब के पास कुछ भी तो नहीं हैं, केवल अधिकार और कर्तव्यों को छोड़कर। कितना अच्छा होता इन अधिकारों और कर्तव्यों को बेचकर एक अच्छी-खासी एसी आ जाती। एसी नहीं तो कूलर ही सही कुछ आता। इंसान की छोड़िए इस गर्मी से पशु-पक्षियों का भी हाल बेहाल हैं। बेचारे पूरे दिन चारे की जगह छांव की तलाश में घूम फिर रहे है। इनकी कास्ट में कुत्ता ही भाग्यवान है। जो अमीर के साथ एक ही पलंग पर सो कर एसी की हवा का आनंद लेता है। आज पहली बार मुझे कुत्ते से हिस्टीरिया होने लगा है।

गर्मी ऐसी है, जिसमें लड़कियां सुबह घर से कैटरीना बनकर निकलती है तो वापस घर आते-आते मिशेल ओबामा बन जाती हैं। और लड़के सलमान बनकर निकलते है तो वपास आते-आते रजनीकांत बन जाते हैं। गर्मी के ढेरों नुकसान हैं तो एक फायदा भी है। इन दिनों में नहाने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती। क्योंकि सारा काम पसीना ही कर देता है। यह गर्मी चढ़ने में भी माहिर है। जब यह किसी को चढ़ती है तो आदमी आग बबूला हो जाता है। उसका मुंह टमाटर की तरह लाल होने लगता है। आजकल यह गर्मी बहुत लोगों को चढी़ हुई हैं। हमारे माननीयों से लेकर बड़े-बड़े साहित्यकारों तक, अभिनेता से लेकर गायकों तक, सभी इसके चक्कर में फंस चुके है। इसके चढ़ने के कारण व्यक्ति अपने आगे के व्यक्ति को अकिंचन व अदृश्य समझने लगता है। वह गोलगप्पे के माफिक फूलकर फूलगोभी बन जाता है। इस गर्मी को ठंडा करने की क्षमता तो दुनिया के बड़े से बड़े एसी में भी नहीं है। भगवान बचाएं इस गर्मी से।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here