जिन आँखों के तारे थे हम उन आँखों में पानी है !
सुलगते हुये रिस्तो की सच्ची यही कहानी है !
जरा सी चोट लगी जब हमको माँ कितना रोई थी !
सूखे में हमें सुलाया खुद गीले में सोई थी !
ऐसी माँ की क़द्र ना करना क्या बात नहीं बेईमानी है !
सुबह से लेकर शाम तलक जो पीछे पीछे भागी थी !
तबियत जब नाशाद हुई तब रात रात भर जागी थी !
माँ तेरी ममता कहूँ इसे या तेरी क़ुरबानी है !
रोज सबेरे उठ कर जो हमको गले लगाती थी !
मुख चूम चूम कर मेरा अहो भाग्य मानती थी !
जो सम्बल थी मेरा आज बनी परेशानी है !
रूखा सूखा खाकर भी जो चुपड़ी रोटी देती थी !
वाट निहारे आने की आने पे बलइया लेती थी !
क्यूँ ऐसी ममता को रुसवा करने की ठानी है !
धन यौवन मान सम्पदा जिसने हम पर वार दिया !
सर्वस्व लुटा कर अपना हमको केवल प्यार दिया !
ऐसे अनमोल प्यार का क्या दुनिया में कोई शानी है !
ममता मयी जननी को हम आज बोझ समझते है !
”मेरी माँ है ” ऐसा कहने में भी झिझकते है !
क्या लहू हमारा सफ़ेद हुआ या लहू हुआ अब पानी है !
जो आज करेंगे वही मिलेगा सच्ची बात है एकदम यार !
काटें जो तू बोवेगा तो कहाँ मिलेगा तुझको प्यार !
मेरी माँ की चरण धूलि में राकेश मेरी जिंदगानी है !