जितना बड़ा हमला उससे बड़ा बदला

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राकेश कुमार आर्य

पुलवामा में जिस प्रकार हमारे सीआरपीएफ के लगभग 4 दर्जन जवानों को अपनी शहादत देनी पड़ी है ,उसके दृष्टिगत देश की सुरक्षा नीति पर एक बार फिर विचार करने का समय आ गया है । हमें बचाव की मुद्रा में रहना है या देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाले तत्वों के साथ आक्रामक मुद्रा में रहना है – अब यह स्पष्ट हो ही जाना चाहिए । 
1947 में जब देश को आजादी मिली थी तो उसके बाद से अब तक की अपनी सुरक्षा नीति का यदि हम आकलन करें तो इस देश में दो प्रकार की विचारधाराएं सुरक्षा परिदृश्य पर प्रवाहित होती दिखाई देती हैं ।एक है- बचाव में ही बचाव है – की सुरक्षा नीति । इसे गांधी का अहिंसावाद भी कहा जा सकता है , जो शत्रु के सामने समर्पण करके चलने की स्थिति में देश को लाकर खड़ा कर देता है । इसमें दुष्ट ,अत्याचारी और आतंकवादी लोगों के भी मानव – अधिकार मानने की अवैज्ञानिक एक अतार्किक और मूर्खतापूर्ण धारणा काम करती है । इसको हम सत्यमेव जयते की परंपरा कहते हैं । जिसने हमारी वीरता , पौरूष और देश भक्ति को ही घुन लगा कर के रख दिया है । दूसरी , विचारधारा है — भिड़ाव में ही बचाव की परम्परा । यह सावरकरवाद की विचारधारा है । जिसमें शत्रु को तोड़ने के लिए हमें चौबीसों घंटे सचेत ,सतर्क , और सावधान रहना चाहिए । यह शस्त्रमेव जयते की परंपरा है । जिसमें दुष्ट , अत्याचारी ,आतंकवादी , देशद्रोही और देश विरोधी लोगों के कोई मानव – अधिकार नहीं होते । इस परंपरा में शत्रु को शत्रु और मित्र को मित्र मानने की स्पष्टवादी पारदर्शितापूर्ण नीति का अवलंबन लेने के लिए देश की राजनीति को प्रेरित किया जाता है । 
यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जब देश आजाद हुआ तो देश की सत्ता उन लोगों के हाथों में चली गई जो देश को – बचाव में ही बचाव – की गांधीवादी विचारधारा की ओर ले गए और जिन्होंने अपनी सुरक्षा नीति के साथ खिलवाड़ करते हुए अहिंसा को प्रत्येक स्थिति में अपनाने का राग छेड़ा । सैकड़ों वर्ष तक वीरतापूर्वक अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाला भारत देश उनकी राजनीति और शासन के अंतर्गत आकर नपुंसक बन कर रह गया । वीरों का देश , देश भक्तों का देश , क्रांतिकारियों का देश जब दुर्बल राजनीतिक नेतृत्व या राजनीतिक विचारधारा के लोगों के अधीन चला जाता है तो ऐसी स्थिति आ जाना स्वाभाविक है । 
आवश्यकता इस बात की थी कि सावरकरवादी – भिड़ाव में ही बचाव है – की परंपरा को आगे बढ़ाया जाता और देश के लोगों का मनोबल बनाए रखने के लिए शत्रु को शत्रु और मित्र को मित्र मानने की पारदर्शितापूर्ण नीति का अवलम्बन करना चाहिए था । 
हम कश्मीर के आतंकवादियों से जितने बच कर चले उन्होंने उतना ही हमसे भिड़ने का प्रयास किया । पूर्वोत्तर में हम उन मौन आतंकवादियों के सामने झुक गए जो हमारे देश के भीतर आकर हमारे ही भाइयों का धर्मांतरण करते चले गए। उसका परिणाम यह हुआ कि आज पूर्वोत्तर भारत के सभी प्रांतों में हिंदू अल्पसंख्यक होकर रह गया है ,और कश्मीर में आतंकवाद हमारी गिरफ्त से बाहर होता जा रहा है । हम देशद्रोही विचारधारा के लोगों के सामने तुष्टीकरण के गीत गाते रहे और उन्हें अपने अहिंसावादी गीतों से रिझाने का प्रयास करते रहे और वे हमारे साथ रहकर भी पाकिस्तान के गीत गाते रहे । पुलवामा के हमला के पश्चात अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिस प्रकार आतंकवादियों के समर्थन में जश्न मनाया जा रहा है – वह ऐसे ही देशद्रोहियों का एक उदाहरण है । ऐसे देशद्रोही इस देश के लिए कैंसर बन चुके हैं। 
अब जब सारे शरीर में कैंसर फैल गया है तब हमारी स्थिति सांप छछूंदर वाली हो कर रह गई है । अभी भी जो लोग यह मान कर चल रहे हैं कि शायद परिस्थितियां ऐसे ही अनुकूल हो जाएंगी 
– वह भी भ्रांति में हैं । हम पहले से ही कहते चले आये हैं कि – बचाव में ही बचाव है – की नीति को यदि अपनाया जाएगा तो देश टूट जाएगा । अब तो – भिड़ाव में ही बचाव है – की नीति को ही अपनाना होगा । इससे निश्चित रूप से क्षति तो होगी , लेकिन एक बार की क्षति के पश्चात स्थाई समाधान भी हमको मिल जाएगा । जब तक इस देश के भीतर ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग ‘ का समर्थन करने वाले राजनीतिज्ञ और राजनैतिक दल जिंदा है तब तक इस देश में – भिड़ाव में ही बचाव है – को अपनाने में राजनीति संकोच करती रहेगी। वास्तव में इस समय राजनीतिक दलों के लिए राजनीतिक आचार संहिता लागू करनी हमारे देश में बहुत आवश्यक हो गई है । एक ऐसी आचार संहिता जिसके अंतर्गत रहकर कोई भी राजनीतिक दल देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त किसी व्यक्ति का समर्थन करता है तो उसके नेताओं को आतंकवादियों का साथ देने के कारण आतंकवादी ही माना जाए , ऐसी कानूनी स्थिति यहां पर होनी चाहिए। यह बहुत ही शुभ संकेत है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस समय स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि पुलवामा का आक्रमण भारत की आत्मा पर किया गया आक्रमण है और संपूर्ण विपक्ष इस समय देश की सरकार के साथ खड़ा है ।
प्रधानमंत्री श्री मोदी के प्रति लोगों का भरोसा अभी बना हुआ है । उनकी बातों पर लोगों को विश्वास है । ऐसे में प्रधानमंत्री के ये शब्द बहुत ही सार्थक जान पड़ते हैं कि – जितना बड़ा हमला ,उससे बड़ा बदला – प्रधानमंत्री श्री मोदी ने बहुत ही गंभीरता के साथ पुलवामा की घटना में संलिप्त लोगों को पाठ पढ़ाने का वचन देशवासियों को दिया है । विश्व नेताओं ने भी भारत का साथ देने का विश्वास हमारी सरकार को दिलाया है । भारत सरकार ने मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा समाप्त कर पाकिस्तान को पहला झटका दिया है , परंतु देश अभी संतुष्ट नहीं है । वैसे अखिल भारत हिंदू महासभा भारत की सरकारों से 1947 के बाद से ही यह कहती आ रही है कि पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा न दिया जाए । दुर्भाग्यवश हिंदू महासभा की यह मांग अब से पहले किसी सरकार ने नहीं मानी । अब जाकर श्री मोदी ने यह कदम उठाया है तो यह निश्चय ही सावरकरवाद की जीत है । हम यह मानते हैं कि किसी भी कार्यवाही के करने से पहले पूरी गंभीरता और सावधानी वर्तनी अपेक्षित है और साथ ही यह भी कि पूरा देश चाहता है कि इस बार आर – पार की होनी चाहिए । 
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने यह कहकर अपनी गंभीरता को एक बार फिर प्रकट किया है कि देश के विपक्ष के नेताओं को उनकी आलोचना करने का पूरा अधिकार है और उनकी आलोचना से वह कुछ सीखते भी हैं , परंतु – मैं उनसे उनसे अपील करता हूं कि देश हित में राजनीतिक छींटाकशी का दौर अब बंद होना चाहिए। सारे देश की जनता प्रधानमंत्री मोदी के इन शब्दों का सम्मान करती है और अपने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से अपेक्षा करती है कि वह किसी भी प्रकार की राजनीतिक छींटाकशी करने के स्थान पर राष्ट्रहित में एक होकर शत्रु का सामना करने के लिए सरकार का साथ दें । इस समय राजनीतिक छींटाकशी का समय नहीं है ,अपितु अपने बलिदानी शहीदों का प्रतिशोध लेने का समय है । यदि इस समय भी प्रतिशोध लेने की ओर नहीं सोचा गया तो परिणाम वैसे ही होंगे जैसे कभी मुगलों के समय में हुआ करते थे । जब हमारा एक हिंदू राजा पिटता था और दूसरा उसका उपहास उड़ाता था , या उसका साथ नहीं देता था । इतिहास से हमें शिक्षा लेने की आवश्यकता है और सीमा पर खड़े शत्रु को खदेड़ कर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति संकल्पबद्धता को प्रकट करने का समय है।
सरकार को हमारी सेना के हाथों को खुला छोड़ना ही होगा । सारे देश ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की है केंद्र सरकार ने अपनी सेना को किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने के लिए इस समय खुला छोड़ दिया है । राहुल गांधी की इस बात को भी देश ने सराहा है कि पुलवामा का आक्रमण देश की आत्मा पर किया गया अक्रमण है । दोनों नेता गहराई से बोले हैं और देश इस समय अपेक्षा कर रहा है कि यह अंतर्मन की गहराई का बना संबंध उस समय तक यथावत स्थापित रहना चाहिए जब तक आतंकवाद और आतंकवाद के जनक को मिटा न दिया जाए। 
हम अपने उन शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं , जिनके लहू से सींचा गया यह चमन यहां गुलजार है । उनके खून को हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे । निश्चित रूप से उनके लिए श्रद्धांजलि के शब्द नहीं हो सकते । फिर भी उनकी पवित्र स्मृति में कविता की चार पंक्तियां प्रस्तुत कर रहा हूं : —-
किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूं ।
मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूं ।।
मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ए भारत मां ,
मैं अपनी मां की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ।।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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