जो रहगुज़र हो जाए तेरे तन बदन का

जो रहगुज़र हो जाए तेरे तन बदन का
मुझे वही झमझमाती बारिश कर दो

तुमसे मिलते ही यक ब यक पूरी हो जाए
मुझे वही मद भरी ख़्वाहिश कर दो

जो रुकती न हो किसी भी फ़ाइल में
मेरी उसी “साहेब” से गुजारिश कर दो

गर लैला-मजनूँ ही मिशाल हैं अब भी
फिर हमारे भी इश्क़ की नुमाइश कर दो

वो सुनता बहुत है तुम्हारी बातों को
खुदा से कभी मेरी भी सिफारिश कर दो

सलिल सरोज

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