संयुक्त प्रधानमंत्री योजना

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– विजय कुमार

इन दिनों भारत में चातुर्मास चल रहे हैं। देवी-देवता निद्रा में हैं। चातुर्मास में साधु-संत भी अपना प्रवास स्थगित कर एक ही जगह रहते हैं। इस दौरान वे अपना अधिकांश समय अध्ययन, चिंतन, पूजा और प्रवचन में बिताते हैं। पर चातुर्मास में असुर क्या करते हैं, इस पर शास्त्र मौन हैं। शर्मा जी का विचार है कि इस दौरान ये लोग अधिक सक्रिय रहते हैं। जैसे पुलिस वालों की व्यस्तता के दिनों में चोर-उचक्कों की बन आती है।शर्मा जी की बात सुनकर मैंने आसपास देखा, तो ध्यान में आया कि आम लोग तो अपनी दाल-रोटी में व्यस्त हैं; पर राजनेता 2019 के महासमर के लिए कमर कस रहे हैं। पिछले दिनों लोकसभा में विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव रखने का उद्देश्य भी यही था। यद्यपि उसका हश्र सबको पता था; पर असली लड़ाई के लिए अभ्यास करते रहना भी तो जरूरी है।पर 2019 की बिसात पर सबसे बड़ा प्रश्न प्रधानमंत्री पद का है। इधर तो मोदी हैं ही; पर बाकी विपक्ष जूझ रहा है कि इस पद का प्रत्याशी कौन हो ? अभी तो उनकी सारी शक्ति यही तय करने लगी है। जब चुनाव होंगे और उसके परिणाम आएंगे; तब क्या होगा, खुदा जाने।विपक्ष इस पर सहमत है कि एक ‘संयुक्त मोर्चा’ बने। यद्यपि इसका स्वरूप क्या हो, और कौन सा दल कहां, कितनी सीट लड़ेगा, इस पर भारी मतभेद हैं। समझौता केवल लोकसभा के लिए होगा या विधानसभा के लिए भी ? कुछ दलों और नेताओं को लोकसभा की चिंता है, तो कुछ को विधानसभा की। सबकी मुख्य चिंता यही है कि मेरी थाली में अधिक घी कैसे आये ?इसलिए जब भी विपक्षी नेता संयुक्त मोर्चे पर विचार करने के लिए बैठते हैं, तो सवाल प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आकर अटक जाता है। चाय, कॉफी, काजू और किशमिश के कई दौर चलते हैं; और फिर अगली बार बैठने का निर्णय कर सब उठ जाते हैं।शर्मा जी का चिंतन समुद्र जैसा गहरा भी है और आकाश जैसा ऊंचा भी। इसलिए ऐसे मामलों में वे बिल्कुल नये उपाय सुझाते हैं। ये सुझाव कई बार खतरनाक होते हुए भी कमाल के होते हैं। पिछले दिनों विपक्षी नेताओं की एक बैठक में उन्होंने कहा कि संयुक्त मोर्च की बजाय ‘संयुक्त प्रधानमंत्री’ बनाएं। यह सुझाव मजाक नहीं, बल्कि सीटों के गणित पर आधारित था। उनका कहना है विपक्षी नेता अपनी सीटों की संख्या के अनुसार नीचे से ऊपर की ओर संयुक्त प्रधानमंत्री बनते जाएं। जिस नेता पर जितनी सीट हैं, वह उतने सप्ताह के लिए कुर्सी पकड़ ले। इससे देश के 30-40 महान नेताओं की उस कुर्सी पर बैठने की अंतिम इच्छा पूरी हो जाएगी।इस सुझाव से एक-दो सीटों की औकात रखने वाले नेता बहुत खुश हुए। लेकिन इससे कांग्रेसी प्रतिनिधि भड़क गये, ‘‘इससे तो सबसे बड़ी पार्टी होने पर भी कांग्रेस और राहुल जी का नंबर सबसे बाद में आएगा।’’- बाद में.. ? हो सकता है नंबर आये ही नहीं। कर्नाटक को भूल गये क्या ? फिर राहुल बाबा का उद्देश्य प्रधानमंत्री बनने की बजाय मोदी को प्रधानमंत्री न बनने देना है।उनकी यह इच्छा तो पूरी हो ही जाएगी। जहां तक कुर्सी की बात है, उसे वे छू तो आये ही हैं।- पर शर्मा जी, ऐसी सरकार न जाने कब गिर जाए। इससे देश का बड़ा नुकसान होगा- देश की चिंता यदि कांग्रेस ने की होती, तो उनकी ये दुर्दशा नहीं होती। उनके लिए परिवार महत्वपूर्ण है, देश नहीं।इतना कहकर शर्मा जी बाहर आ गये। इस बैठक में वे मुझे भी ले गये थे। लौटते हुए मैंने अपना प्रश्न फिर दोहराया कि चातुर्मास में असुर क्या करते हैं ?

शर्मा जी हंसकर बोले – अब भी नहीं समझे क्या ?

 

 

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