जोजि़ला सुरंगः पूरा करेगा कारगिल का सपना

जावेद नकी

सालों भर देश के अन्य हिस्सों से जुड़े रहने का लद्दाखवासियों का सपना अब हकीकत में बदलने वाला है। अगस्त में जोजि़ला सुरंग की नींव रखने के साथ ही वर्षों से इस क्षेत्र के लोगों की मांग आकार लेने लगेगी। केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से मंजूरी के बाद इसके निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। संसद ने 2007 में ही इसके निर्माण की मंजूरी प्रदान कर दी थी। हालांकि निर्माण के प्रथम चरण में यह सुरंग सोनमर्ग से गगनजीर तक बनाई जाएगी। जिसका लाभ लद्दाखवासियों से अधिक पर्यटन को होगा जबकि दूसरे चरण में कश्मीमर के बलताल से लद्दाख के मिनामर्ग तक का निर्माण कराया जाएगा। यह सुरंग लद्दाख क्षेत्र को कश्मीकर घाटी से जोड़ेगा। इसके निर्माण के बाद लद्दाख सालों भर देश के अन्य हिस्सों से जुड़ा रहेगा। दूसरे चरण के सुरंग के निर्माण की घोषणा अगस्त में होने वाले पहले चरण के नींव के दौरान ही कर दी जाएगी। वर्तमान में लद्दाख को देश के अन्य भागों से जोड़ने वाली एकमात्र सड़क श्रीनगर-कारगिल-लेह राष्ट्रीसय राजमार्ग है जो साल के तकरीबन छह महीने बर्फबारी के कारण बंद रहता है।

लद्दाख जम्मू-कश्मीबर का एक अंग है। यह क्षेत्र देश के अन्य भागों से सबसे अधिक ठंडा है। जहां साल के आधे से अधिक महीने बर्फबारी होती रहती है। कारगिल इसी लद्दाख का एक क्षेत्र है। देश के सुदूर उत्तरी क्षेत्र में अवस्थित कारगिल 1999 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय अंतरराष्ट्रीीय स्तर पर सुर्खियों में आया। इस युद्ध से पूर्व कारगिल के बारे में देश और दुनिया को बहुत कम जानकारी थी। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को शिकस्त देने में भारतीय फौजियों के साथ साथ स्थानीय निवासियों ने भी सशक्त भूमिका निभाई थी। जिसे सभी ने सराहा था। बावजूद इसके यहां की स्थानीय आबादी की परेशानियां और मुद्दे आज भी यथावत हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी परेशानियां कारगिल जीत की चमक दमक में कहीं खो गए हैं।

राजधानी श्रीनगर से 205 किलोमीटर दूर कारगिल करीब 14000 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां का मौसम सालों भर ठंडा रहता है। अत्याधिक बर्फबारी के कारण वातावरण सूखा है तथा आर्द्रता की कमी होती है। स्थानीय निवासियों पर इसके नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते रहे हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में जन्म दर अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कम है। दूसरी ओर अत्याधिक विकिरण और ऑक्सीजन की कमी के कारण के यहां के निवासियों में मानसिक बीमारी ज्यादा पाई जाती है। बर्फबारी की अधिकता के कारण इस क्षेत्र को बर्फीला रेगिस्तान के नाम से भी जाना जाता है। जिससे यहां प्राकृतिक संपदा नाममात्र है। ऐसी परिस्थितियां यहां के हालात को और भी खराब बना देती हैं। कारगिल के पश्चिम में स्थित द्रास को लद्दाख का द्वार के नाम से भी जाना जाता है। यह दुनिया का दूसरा सबसे अधिक ठंडी आबादी वाला क्षेत्र है। जहां सर्दी के मौसम में तापमान शुन्य से 45 डिग्री नीचे चला जाता है। यहां बालटिस, पुरिगपा, दार्द और ब्रोकपा जैसी समुदाय निवास करती है। कारगिल क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की संख्या अधिक है। जिसके बाद बुद्ध मत के मानने वालों की दूसरी सबसे अधिक तादाद है। अधिकांश आबादी खेती और जानवर पालन के माध्यम से अपनी आजिविका चलाती है। इस क्षेत्र में विकास की गति काफी धीमी है। बुनियादी ढ़ांचे में कमी के कारण यह इलाका सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। बुनियादी सुविधाओं की कमी यहां के लोगों की जिंदगी को और भी अधिक कठिन बना देती है और वह अब भी प्रकृति के रहमोकरम पर जीवन बसर करते हैं।

कारगिल बाहरी दुनिया से केवल जोजिला दर्रा के माध्यम से जुड़ा हुआ है। जो छह महीने बर्फबारी के कारण बंद रहती है। ऐसे मौसम में हैलीकॉप्टर एकमात्र रास्ता होता है। परंतु कई कई दिनों तक खराब मौसम होने पर यह सुविधा भी खत्म हो जाती है। पर्यटन इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्डी के समान है। देश विदेश से पर्यटक यहां बिछी बर्फ की चादर और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने आते हैं। यहां बर्फ पर खेले जाने वाले खेल पर्यटकों द्वारा काफी पसंद भी किए जाते हैं। जो स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन भी साबित होता है। परंतु पर्यटकों का यहां आना पूरी तरह से श्रीनगर-कारगिल-लेह राष्ट्रीपय राजमार्ग के खुलने पर निर्भर होता है। गर्मी के दिनों में स्थानीय निवासी से लेकर सरकारी अधिकारी तक सर्दी के दिनों के लिए सामान इकट्ठा करने में अपनी अनावश्याक ऊर्जा लगा देते हैं। जिससे विकास के कार्य प्रभावित होते हैं।

भारत के विभाजन से पहले एशियाई व्यापार नेटवर्क में कारगिल को व्यापारिक केंद्र के रूप में जाना जाता था। चीन और मध्य एशिया के रास्ते यूरोप तक व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला स्लिक रूट इस रास्ते का एक हिस्सा था। लेकिन पहले स्लिक रूट बंद होने और फिर भारत पाकिस्तान बटवारे के बाद यह क्षेत्र पूरी दुनिया से बिल्कुल अलग थलग पड़ गया। जम्मू-कश्मी र पर्यटन विभाग के पूर्व महानिदेशक मो. अशरफ के अनुसार यह क्षेत्र कभी सर्दियों में भी दुनिया से अलग नहीं रहता था। कारगिल-स्कर्दू (पाक अधिकृत क्षेत्र) मार्ग सभी मौसम में खुला रहता था। जो आगे चलकर गिलगित और फिर मध्य एशिया से जुड़ जाता था। परंतु सीमा निर्धारण के बाद यह क्षेत्र स्लिक रूट से कट गया और न सिर्फ धीरे-धीरे वीरान होता चला गया बल्कि सर्दियों के मौसम में देश के अन्य हिस्सों से भी इसका संपर्क खत्म हो जाता है। इस दौरान हवाई मार्ग एकमात्र विकल्प होता है। लेकिन वह भी कारगिल में नहीं है। पूरी तरह से पहाड़ों से घिरे होने के कारण यहां यात्री विमानों के आवागमन लायक हवाई अडडा बनाना काफी मुश्किल काम है। ऐसे में यहां आने के लिए लेह हवाई अड्डा का प्रयोग किया जाता है। जहां से सड़क मार्ग द्वारा दूरी तय की जाती है। यदि भारी बर्फबारी होती है तो यह मार्ग भी बंद कर दिया जाता है।

जून के प्रथम सप्ताह में कारगिल में आयोजित पोलो टूर्नामेंट के उद्धाटन अवसर पर राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने क्षेत्र को पर्यटन तथा खेल स्थल के रूप में विकसित करने की घोशणा की। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास होगा कि दुनिया इसे इसकी खूबसूरती, मनोरम दृश्य , अतिथि सत्कार और पोलो के लिए जाने। इससे न सिर्फ अर्थव्यवस्था मजबूत होगी बल्कि खेलों को बढ़ावा मिलने से प्रतिभाएं भी उभरेंगी। ऐसे में सुरंग का बनना इस क्षेत्र के लिए किसी साकार होते सपने की तरह होगा। ज्ञात हो कि प्रथम चरण में सोनमर्ग और गगनजीर के मध्य बनने वाली सुरंग से कारगिल के लोगों को कोई विशेष फायदा नहीं होगा परंतु दूसरे चरण में बलताल से मिनामर्ग तक प्रस्तावित सरुंग के निर्माण से न सिर्फ स्थानीय निवासियों को फायदा होगा बल्कि यहां आर्थिक विकास को भी पंख लगेगा। परंतु स्थानीय निवासियों को नहीं मालूम कि उन्हें अपने सपने के इस सुरंग के लिए और कितने बरस इंतजार करना पड़ेगा। (चरखा फीचर्स)

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