अवधेश पाण्डेय
मीडिया में आजकल उत्तरप्रदेश छाया हुआ है, यहाँ जिनके ऊपर कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी है वही उसे पलीता लगा रहे हैं, अचानक ही अपराध की खबरों का ग्राफ बहुत ऊपर चढ गया है, जैसे विगत चार वर्षों से प्रदेश शान्त रहा हो और अब एकाएक अपराधों की बाढ सी आ गयी हो. लेकिन इसका उत्तर तो निश्चय ही नहीं है. वास्तव में अपराध का स्तर तो पिछले दशक से घटने की बजाय और बढता जा रहा है और वर्तमान परिस्थितियों में कोई भी सरकार अपराध पर नियंत्रण करने में असमर्थ ही होगी ऐसा जान पडता है.
मीडिया में खबरें बनने का कारण अपराध नहीं, प्रदेश का चुनावी माहौल है. बडा से बडा नेता छोटी से छोटी घटनाओं पर हो हल्ला मचा रहा है और उसका राजनीतिक लाभ लेने के लिये उसे मीडिया के द्वारा खूब प्रचारित प्रसारित करवा रहा है. इस मामले में काँग्रेस पार्टी सबसे ज्यादा लाभ की स्थिति में है और उसका देश की इलेक्ट्रानिक मीडिया पर अघोषित नियंत्रण है. इसलिये उसके नेताओं को मीडिया में प्रमुखता से कवरेज दी जा रही है. भट्टा पारसोल और मीडिया के दम पर काँग्रेस पार्टी प्रदेश की चुनावी राजनीति में मुख्य लडाई में आ गयी है और अब मीडिया के सहयोग से अगले विधानसभा चुनावों तक कमोवेश यही स्थिति बनी रहेगी.
उत्तरप्रदेश के विगत चुनावों मे मायाराज समाजवादी पार्टी के गुण्डाराज के विरुद्ध आया था और माया ने जाति व्यवस्था (जिसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया) और एक नारे “चढ गुण्डन की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर” के दम पर जनता का विश्वास जीता. यह गुण्डे कोई और नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी के नेता लोग थे. आज भी देखें तो समाजवादी पार्टी इससे मुक्त होने का कोई विचार रखती है, ऐसा प्रतीत भी नहीं होता. लेकिन समाजवादी पार्टी को हराने के लिये माया ने भी जमकर गुण्डों का सहारा लिया था, जिसे अब प्रदेश की जनता भुगत रही है. बीते चार वर्षों में शासनकाल में प्रदेश के कई मंत्री व विधायक कानून को ठेंगा दिखा चुके हैं. यह बात और है कि बीएसपी में माया जैसा दूसरा नेता न होने की वजह से माया ने जिसे चाहा, बाहर फेंक दिया और उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर उन्हे जेल भी भेजा. उनका यह निर्णय बहुत कुछ उनकी प्रतिष्ठा बचाने में उपयोगी साबित हुआ.
अपराध और राजनीति में के मूल में नेता अफसर और अपराधियों का गठजोड है, जिसने आम व्यक्ति को राजनीति से लगभग दूर कर दिया है. चुनाव में होने वाले खर्च और और जोखिम को देखते हुए राजनीति में आना आसान भी नहीं. जनता भी पोस्टर बैनर देखती है, व्यक्ति की नियत नहीं, इसलिये प्रचार प्रसार का खर्च वहन करना सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं, अत: जनता के पास चुनने के लिये विकल्प कम ही होते हैं. चुनावों में विभिन्न दलों और निर्दलीय किन्तु मजबूत प्रत्याशियों की हत्या होना भी उतरप्रदेश में आम बात है, जो एक आम व्यक्ति को राजनीति से दूर करती है. 2004 के लोकसभा चुनावों में गोण्डा से भाजपा प्रत्याशी घनश्याम शुक्ला की मौत की सीबीआई जाँच अभी भी अधूरी है इण्डियन जस्टिस पार्टी के बहादुर सोनकर की हत्या के राज से पर्दा उठेगा, यह कहना मुश्किल है. भाजपा तो घनश्याम शुक्ला की हत्या को भूल चुकी है तो उनकी पत्नी नन्दिता आज उसी समाजवादी पार्टी की विधायक हैं, जिसके नेता पर घनश्याम शुक्ला की हत्या का आरोप लगा था.
देश में बढते अपराध, भ्रष्टाचार आदि के लिये जिम्मेदार वह व्यक्ति नहीं जिसे आपने चुना है, जिम्मेदार वह लोग हैं, जिन्होने उस व्यक्ति को चुन कर अपना प्रतिनिधि बनाया है. मुझे बतायें कि कितने स्थानों पर जनता खुद जाकर किसी ईमानदार व्यक्ति से चुनाव लडने के लिये प्रेरित करती या कहती है. कितनी पार्टियाँ अपने ईमानदार कार्यकर्ता को टिकट देती हैं. वस्तुत: ईमानदार व्यक्ति को यह बताया जाता है कि राजनीति तुम्हारे लिये नहीं है. अब जब आप प्रामाणिक व्यक्ति को अपना जनप्रतिनिधि नहीं बना सकते तो बदले में एक अच्छी सरकार की कल्पना व्यर्थ है. सरकार का मुखिया चाहकर भी ऐसे अपराधी जनप्रतिनिधियों पर अंकुश नहीं लगा सकता और उत्तरप्रदेश सरकार इसका उदाहरण है.
वर्तमान में प्रदेश के राजनीतिक परिदृ्श्य को देखें तो हमें मुख्य रूप से चार दल बसपा, सपा, काँग्रेस और भाजपा नज़र आते हैं. पश्चिम में रालोद तो पूर्व में नवोदित पीस पार्टी की भूमिका सीमित ही होगी. सपा और बसपा में नेतृत्व संकट नहीं है, यहाँ निर्विवाद रूप से माया और मुलायम परिवार का ही कब्जा रहेगा. काँग्रेस तो राहुल के नेतृत्व में ही लडेगी, और जीतने की स्थिति में मुख्यमंत्री राहुल की ही पसंद का होगा, इसमें कोई संशय नहीं. सबसे दयनीय स्थिति भाजपा की है, अपने वास्तविक मुद्दों को तिलांजली देकर, बहुत से जनाधार विहीन नेताओं वाली यह पार्टी कल्याण सिंह का कोई विकल्प नहीं तैयार कर सकी. वर्तमान में योगी आदित्यनाथ को छोड कोई अन्य नेता अपनी भी सीट जीतने की स्थिति में नहीं दिखाई देता.
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर विष्लेषण करने से पता चलता है कि कम से कम आने वाले चुनाव में हमें विधानसभा में साफ सुथरे लोग दिखेंगे ऐसा असंभव सा लगता है, क्योकि सभी पार्टियों को चुनाव जिताऊ उम्मीदवार चाहिये, जनप्रतिनिधि नहीं. ऐसे में फिर से जिम्मेदारी जनता पर है कि वह अपने आने वाले समय को कैसा बनाना चाहती है, अगर विधानसभा में अपराधियों को भेजेगी तो लचर कानून व्यवस्था की जिम्मेदार वह खुद होगी कोई और नहीं. जनता का एक मन होना चाहिये कि किसी भी सूरत में अपराधी चुनाव न जीतने पायें. अगर अपराधी आपके प्रतिनिधि नहीं होंगे तो यकीनन प्रदेश की स्थिति में सुधार होना तय ही है और अगर फिर से अपराधी सदन में पहुचे तो क्या होगा यह आप देख सुन ही रहें हैं….
हो रहा भारत निर्माण
चल रही हमरी भौजी की दुकान
मनमोहन सिंह बेचे सामान
सरे साथी है बेईमान
सब कोई बोले देश महान
डा.सुब्रमण्यम स्वामी ने देहरादून में ये आरोप लगाया की इधर देश में कोहराम मचा है और
राजमाता सोनिया जी (सोनिया भौजी) और युवराज पिछले चार दिन से switzerland में बैठे हैं
.अब पिछले कुछ सालों में सुब्रमण्यम स्वामी ने देश विदेश में ये इमेज बनायी है की वो अनर्गल प्रलाप नहीं करते हैं ..
जो बोलते हैं सोच समझ कर बोलते हैं …नाप तोल कर बोलते है …….कुछ भी बोलने से पहले पूरी रिसर्च करते हैं ……..पिछले कुछ सालों में उन्होंने बहुत बड़े बड़े ….विशालकाय घोटाले खोजे हैं ….
आज टेलिकॉम घोटाला और कामनवेल्थ घोटाले को सामने लेन में सुब्रमण्यम स्वामी की बड़ी भूमिका रही है .उनपे बड़ी व्यापक खोजबीन की है.अब इतनी बड़ी बात कह दी उन्होंने….आरोप लगाया की
दोनों माँ बेटा स्वित्ज़रलैंड गए हैं अपने खातों की देखरेख करने ………पूरे देश में आम आदमी ये बात खुल कर कहता है और मानता है की
प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह जी व्यक्तिगत रूप से बेहद इमानदार होते हुए भी भ्रष्टाचार एवं काले धन पर कोई प्रभावी कदम इसलिए नहीं उठा पा रहे क्योंकि
कांग्रेस के बड़े नेता गण……( गाँधी परिवार समेत ) की गर्दन सबसे पहले नप जाएगी ……..अब ऐसे माहौल में आज कोढ़ में खाज हो गयी
….कमबख्त ….मुए स्वामी ने इतनी बड़ी बात कह दी किसी एक चैनल पर ..अब हमारे जैसे लोग चिपक गए भैया टीवी से …वैसे भी हम लोग चिपके ही रहते हैं ..पर वाह ….क्या बात है
किसी भी माई के लाल हमारे न्यूज़ चैनल ने उस बयान को दुबारा नहीं दिखाया ….खोज बीन करना….बाल की खाल निकालना तो दूर की बात है ……..सारा दिन टीवी पर सुरफ़िंग करने के बाद ( हांलाकि न्यूज़ तो अब भी चल रही है )
शाम को हमने इन्टरनेट पर गोते लगाए ..सारी न्यूज़ खोज मारी ..कहीं तो कुछ निकलेगा …….कहीं तो कोई चर्चा होगी …किसी ने
डॉ स्वामी को quote ही किया होगा …कहीं से कोई खंडन ही आया होगा ……….अब हम क्या जानें दिल्ली में कौन क्या कर रहा है ….पर
दिल्ली वाले तो जानते हैं की कहाँ हैं सोनिया जी ….कहाँ हैं अपने राहुल बाबा …..और इन मीडिया वालों के लिए तो ये एक मिनट का काम है …..एक फोन मारा और ये लो …..हो गयी पुष्टि ….या ये रहा खंडन
पर कुछ नहीं ….शांति …एकदम मरघट वाली
शांति है आज ……..न पुष्टि…. न खंडन ………..
हर बात का जबाब देने वाले कांग्रेस के पालतू कुत्ते और प्रवक्ता क्यों आज तक चूप है ?
पर दोस्तों …..मरघट की ये शांति …….चीख चीख कर कुछ कह रही है ध्यान से सुनिए …..दूर वहां कोई रो रहा है ………किसी की मौत पर …..पर मुझे सचमुच विश्वास नहीं होता की वो मर गया ……….इतनी आसानी से मरने वाला वो था तो नहीं ….बड़ी सख्त जान था कमबख्त ……क्या वाकई मर गया …खबरनवीस …………न कोई आवाज़ न हलचल ……..माजरा क्या है …..
आज सुबह एक लेख लिखा मैंने की कैसे सरकार हमारे मूल अधिकारों को कुचल रही है …..इसके अलावा मैं लिखता रहा हूँ की कैसे न्यूज़ मर रही है …………पिछले कई दिनों से मैं महसूस कर रहा
हूँ की news channels पर सरकारी विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गयी है
अब ये कोई खोजी पत्रकार या संस्था ही आंकड़े खोजेगी की किस महीने में कब कितने सरकारी विज्ञापन आये news channels पर, और अखबारों में ……….. …..सच्चाई सामने आनी ही चाहिए
और जैसे ही इन्हें सरकारी विज्ञापन मिले इनकी तोपों का मुह सिविल सोसाइटी की तरफ मुड़ गया ये लगे जन आन्दोलन को बदनाम करने .सरकार और पार्टी का गुणगान करने और भ्रम फैलाने
.जो मीडिया एक एक byte के लिए मारा मारा फिरता है ….
आज डॉ सुब्रमण्यम स्वामी के इतने सनसनीखेज बयान के बाद भी चुप है
मरघट सी शांति है …….पुष्टि नहीं तो खंडन तो आना चाहिए ……..सरकार की तरफ से न सही पार्टी की तरफ से ही सही …….अगर सोनिया जी शब्द कुछ अच्छा नही लगता सोनिया भौजी और राहुल बाबा देश में हैं तो बताया जाए और
डॉ स्वामी से कहा जाए की प्रलाप बंद करो ……और अगर कहीं बाहर हैं तो ये भी बताया जाए की कहाँ हैं ………. चुप्पी साध के देश का मीडिया
गाँधी परिवार को बचा रहा है क्या ??????? या ये मुद्दा…ये प्रश्न ….सचमुच इतना छोटा …इतना घटिया है की इसपे टिप्पणी करना नहीं चाहता
पर ये बहुत कडवी सच्चाई है की आज अधिकाँश लोग …
चाहे वो कांग्रेस समर्थक लोग ही क्यों न हों……..
ये मानते हैं की गांधी परिवार के खाते हैं…… विदेशी बैंक्स में …….अब इसका जवाब या तो हाँ में हो सकता है या ना में
चुप रहना कोई जवाब नहीं है ….और चुप रहे तो गाँधी परिवार रहे
मीडिया क्यों चुप है
खबरनवीस बिक गये क्या ????????
लोकतंत्र का चौथा खम्बा भी टूट रहा है क्या ????????
हम भी टीवी के चिपककर सुनने की कोशिश करते रहे कि कहीं तो प्रतिवाद होगा, लेकिन नहीं हुआ। इस परिवार को बचाने का ठेका मीडिया ने ले रखा है, किसी का भी चरित्रहनन करने में सबसे आगे रहता है यह मीडिया लेकिन जैसे ही सोनिया का नाम आता है ऐसे चुप हो जाता है
.
अजब राहुल (गांधी) की गजब कहानी
अस्वीकरण (DISCLAIMER): मैं किसी राजनैतिक पार्टी का समर्थन नहीं करता हूँ. जो मायावती ने किया, मैं उसका भी समर्थन भी नहीं करता हूँ .
पर जब मैंने उत्तर प्रदेश में हो रहे किसान आन्दोलन पर राहुल गाँधी की पाखण्ड भरी टिप्पणी सुनी, तब मुझे बहुत बुरा लगा. राहुल गाँधी:
“उत्तर प्रदेश में जो कुछ हुआ उसे देखकर मुझे अपने आपको भारतीय कहने में शर्म आती है.”
यू. पी. के लिए शर्मिन्दा होने की इतनी भी क्या जल्दी है?
आज़ादी के पहले से लेकर आज़ादी के बाद तक, 1939 से 1989 तक ( इक्का दुक्का अन्य सरकारों और आपातकाल को छोड़कर जो आपकी दादी माँ इंदिरा गाँधी की सौगात थी), कांग्रेस ने इस देश पर ज़्यादातर समय तक राज किया है.
भारत के 14 में से 8 प्रधानमन्त्री यू पी से थे, 8 में से 6 प्रधानमन्त्री कांग्रेस से थे… आपकी पार्टी के पास कम से कम आधी शताब्दी और आधे से ज्यादा प्रधानमंत्री थे देश का निर्माण करने के लिए… मुलायम सिंह जैसे लोग मुख्यमंत्री सिर्फ इसलिए बने क्योंकि आपकी पार्टी राज्य में अपने काम-काज को लेकर ‘गांधीवादी’ सिर्फ कागजों पर थी. अगर आप थोड़ा ध्यान दें तो शायद आपको यह अहसास होगा कि यू पी की अभी की अराजकता वाली हालत कांग्रेस के लगभग 50 साल तक रहे गरिमामय शासन का ही नतीजा है.
तो राहुल बाबू…..यू. पी. के लिए शर्मिन्दा होने की इतनी भी क्या जल्दी है? मायावती तो सिर्फ उसी ‘जमीन अधिशासन विधेयक’ का इस्तेमाल कर रही है जिसका आपकी कांग्रेस ने किसानों को लूटने के लिए कई बार इस्तेमाल किया है. आपकी पार्टी ने इस विधेयक को तब क्यों नहीं बदला जब वो शासन में इतने लम्बे समय तक थी? मैं मायावती के काम को समर्थन नहीं दे रहा…
लेकिन आपकी पार्टी द्वारा किये जाने वाले काम और आपकी टिप्पणी आपकी ‘नीयत’ और ‘विश्वसनीयता’ पर भी सवाल खड़े करती है.
अगर आप वास्तव में शर्मिन्दा होना चाहते हैं घबराइये मत, मैं आपको शर्मिन्दा होने के कई कारण देने वाला हूँ…
अगर आप वास्तव में शर्मिन्दा होना चाहते हैं! पहले तो आप प्रणव मुखर्जी से पूछिए कि वो स्विस बैंकों में अकाउंट्स रखने वालों के बारे में सूचना क्यों नहीं दे रहे…
अपनी माँ से पूछिए कि 74 ,000 करोड़ के कर चोरी के मामले में हसन अली के खिलाफ जांच कौन रोक रहा है.
नवम्बर 1999 में राजीव गांधी के गुप्त बैंक खाते में 2 .5 बिलियन स्विस फ्रांक (2.2 बिलियन डॉलर) थे (ANNEXURE 10 देखें) उनकी मृत्यु के बाद सोनिया गांधी इस पैसे की एकमात्र हकदार थीं.
यह तो 1991 की बात है, सिर्फ उन्हें पता है अब इसमें कितने पैसे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी कारण से भारत सरकार स्विस बैंकों में अकाउंट्स रखने वालों के नाम नहीं दे रही?
उनसे जाकर पूछिए, 2G घोटाले में 60 % हिस्सा किसे मिला?
कलमाडी पर कुछ सैकडे करोड़ रुपयों का इलज़ाम है. कॉमनवेल्थ गेम्स के बाकी पैसे किसकी जेब में गए?
प्रफुल पटेल से पूछिए किसने इन्डियन एयरलाइन्स की हालत खराब की. एयर इंडिया ने लाभकारी रूट्स को क्यूँ छोड़ा?
हम टैक्स भरने वाले एयर इंडिया के नुकसान को क्यों भरें?
जब आप एक एयर लाइन प्रोपर्टी नहीं चला सकते, देश कैसे चलाएंगे?
मनमोहन सिंह से पूछिए. वो इतने समय से शांत क्यों हैं? लोग कहते हैं वो इमानदार हैं. उनकी इमानदारी किसकी तरफ है – देश की ओर या एक व्यक्ति विशेष की ओर?
सी बी आई ने रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया पर छापा मारा और उसे 500 एवं 1000 के नोटों की भारतीय नकली मुद्राओं का ज़खीरा मिला. वो भी रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया में?
भारत सरकार इस पर चुप क्यों है?
तो फिर इस बढ़ती मुद्रास्फीती का कारण है क्या – वाणिज्य या राजनीति ? ( इकोनोमिक्स या पोलिटिक्स )
भोपाल गैस ट्रेजेडी के गुनाहगार अभी तक खुले आम घूम रहे हैं. कौन है इसका जिम्मेवार? (इसमें 20,000 लोग मारे गए थे)
1984 में सिखों की सामूहिक ह्त्या हुई. वो भी सरकार के समर्थन से. किसने यह करवाया?
1976 -77 की इमरजेंसी के बारे में पढ़ना मत भूलिए. जब हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव में चयन को अवैध ठहराया, उन्होंने कैसे देश को इमरजेंसी में धकेल दिया. (ज़ाहिर है कि उनके मन में भी लोकतंत्र, न्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस के लिए तहे दिल से इज्ज़त थी.) जवाब तो आप जान ही गए होंगे.
पर मेरा प्रश्न है कि मायावती और उनके परिवार व पार्टी पर फैसला करने में दुहरे मापदंड का इस्तेमाल क्यों ?
मैं मायावती की निंदा करता हूँ.
पर राहुलजी, आप सिर्फ उनके लिए शर्मिन्दा क्यों होते हैं?
अपने करीबियों के लिए इतनी नरमी बरतने की क्या ज़रुरत है?
देश को खस्ताहाल में लाने में उनका योगदान कोई कम तो नहीं है.
आप किसानों से उनकी ज़मीन लिए जाने की निंदा करते हैं. ज़रा बताइये कि आपकी पार्टी के शासनकाल में विदर्भ में कितने किसानों ने खुदकुशी की. उसके लिए आपको शर्मिन्दगी नहीं होती?
72 ,000 करोड़ के लोन की माफी आपकी पार्टी ने किसानों का 72 ,000 करोड़ का लोन माफ़ किया. पर वो तो किसानों तक पहुंचा भी नहीं. आपने अपनी सरकार द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने पर ध्यान तो दिया नहीं,
पर अपनी सुन्दर छवि बनाने के लिए हम पर किसानों के साथ भोजन करते हुए खुद की तस्वीर मीडिया में छपवाते रहते हैं.
आप शर्मिन्दा होना चाहते हैं ना! तो इस बात के लिए शर्मिन्दा होइए कि आपकी पार्टी ने लोगों का पैसा (72 ,000 करोड़) सरकार की तिजोरी से खर्च करने के लिए लिया और पूरी तरह बर्बाद कर दिया..
केवल इस गिरफ्तारी पर इतना हल्ला क्यों? राहुलजी , सितम्बर 2001 में आप एफ बी आई
द्वारा बोस्टन एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किये गए थे. आपके पास नकद में $ 1 ,60 ,000 मिले थे . आपने अभी तक जवाब नहीं दिया आप इतना सारा पैसा क्यों ले जा रहे थे. संयोग से आप अपनी कोलंबियन गर्लफ्रेंड और एक कथित रूप से ड्रग माफिया सरगना की बेटी, वेरोनिक कार्टेली,के साथ 9 घंटों तक एयरपोर्ट पर रोककर रखे गए थे. बाद में प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी के हस्तक्षेप पर आपको छोड़ा गया.
एफ बी आई ने अमेरीका में FIR जैसी शिकायत दर्ज करके आपको जाने दिया. जब सूचना के अधिकार का प्रयोग करते हुए FBI से आपकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचना माँगी गयी तो FBI ने आपसे ‘कोई आपत्ति नहीं’ का सर्टिफिकेट माँगा. आपने तो कभी जवाब ही नहीं दिया.
यह गिरफ्तारी न अखबारों की हेडलाइन बनी ना न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज. आपको खुद ही मीडिया के पास जाना चाहिए था और बोलना चाहिए था :
“मुझे खुद को भारतीय कहते हुए शर्म आती है.” कहीं ऐसा तो नहीं कि आप सिर्फ दिखावटी गिरफ्तारियों (उत्तर प्रदेश) पर बवाल मचाते हैं और वास्तविक गिरफ्तारियों (बोस्टन) को कूड़े के डब्बे में डाल देते हैं? बताइये!!!
खैर, अगर आप और शर्मिन्दा महसूस करना चाहते हैं तो पढ़ते जाइए…
2004 में आपकी माँ द्वारा प्रधानमंत्री पद के तथाकथित त्याग के बारे में. नागरिक अधिनियम के एक प्रावधान के अनुसार… एक विदेशी नागरिक अगर भारत का नागरिक बन जाता है तो उस पर वही नियम-क़ानून लागू होंगे जो एक भारतीय नागरिक के इटली के नागरिक बन जाने पर लागू होते हैं. (Principle of Reciprocity पर आधारित शर्त) [ANNEXURE 1&2 पढ़ें] जिस तरह आप इटली में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते अगर आप वहाँ पैदा नहीं हुए ठीक उसी तरह आप भारत में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते अगर आप यहाँ पैदा नहीं हुए!
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी (2G का खुलासा करनेवाले)
ने भारत के राष्ट्रपति का ध्यान इस बात पर दिलाते हुए एक पत्र भेजा. [ANNEXURE 3 में उस पत्र को पढ़ें] 17 मई 2004 को शाम 3 :30 बजे भारत के राष्ट्रपति ने इस सम्बन्ध में एक पत्र सोनिया गांधी को भेजा.
शपथ ग्रहण समारोह उसी दिन शाम 5 बजे होना था. तब लाज बचाने के लिए अंतिम पल में मनमोहन सिंह को लाया गया.
सोनियाजी द्वारा किया गया त्याग महज एक
नौटंकी था.
क्योंकि सच तो यह है कि सोनियाजी ने अलग अलग सांसदों द्वारा हस्ताक्षर किये गए 340 पत्र राष्ट्रपति कलाम को भेजे थे, जिनमें खुद के प्रधानमन्त्री बनने की योग्यता की वकालत की गयी थी.
उनमें से एक पत्र में लिखा था – मैं, सोनिया गांधी, राय बरेली से चयनित सदस्या, सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्ताव रखती हूँ. तो स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री तो वह बनना चाहती थीं जब तक उन्हें संवैधानिक प्रावधानों का पता नहीं था.
गौरतलब यह कि उन्होंने कोई त्याग नहीं किया, दरअसल वह कानूनन रूप से देश की प्रधानमंती बन ही नहीं सकती थीं.
राहुलजी, आपको इस बात के लिए शर्मिन्दा होना चाहिए. सोनिया जी के पास एक विश्वसनीयता थी वो भी एक झूठ था.
अब ज़रा अपने बारे में सोचिये आप डोनेशन कोटा पर हार्वर्ड जाते हैं
(हिंदुजा भाइयों ने हार्वर्ड को 11 मिलियन डॉलर उसी साल दिए वो भी स्विस बैंक के अकऔंत से जिस साल राजीव गांधी सत्ता में थे) आप 3 महीने में निकाले जाते हैं/
आप 3 महीनों में ड्रॉप आउट हो जाते हैं या निक्कले गये क्योकि वह पर खच्चरों को नही पढ़ाया जाता ( दुर्भाग्य से मनमोहन सिंह उस समय हार्वर्ड के डीन नहीं थे, नहीं तो आपको एक चांस और मिल जाता. पर क्या करें, दुनिया में एक ही मनमोहन सिंह हैं)
कुछ स्त्रोतों का कहना है, आपको राजीव गांधी की ह्त्या के कारण ड्रॉप आउट करना पडा.
शायद ऐसा हो. लेकिन फिर आप हार्वर्ड से अर्थशास्त्र में मास्टर्स होने का झूठ क्यों बोलते रहे….जब तक कि आपके बायो- डाटा पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी (2G का खुलासा करने वाले) ने सवाल नहीं उठाया.
सैंट स्टीफेंस में आप हिन्दी में फेल कर जाते हैं. हिन्दी में फेल!! और आप देश के सबसे बड़े हिंदीभासी राज्य का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं?
सोनिया गांधी की शैक्षिक उपलब्धियां सोनिया गांधी ने एक उम्मीदवार के रूप में एक हलफनामा दायर किया है जिसमें लिखा है कि उन्होंने
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी की पढाई की है. [ANNEXURE-6 7_37a देखें] कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अनुसार ऐसी कोई छात्रा कभी थी ही नहीं! [ANNEXURE-7_39 देखें] डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा एक केस दायर करने पर, उन्होंने अपने हलफनामा से कैम्ब्रिज की बात हटा दी.
सोनिया गांधी ने हाई स्कूल तक पास नहीं किया. वो सिर्फ 5 वीं पास हैं!
शिक्षा के मामले में, मामले में वो 2G घोटाले के दूसरे सहयोगी करूणानिधि के बराबर हैं –
आप अपनी शिक्षा की नक़ली डिग्री दिखाते हैं; आपकी माँ अपनी शिक्षा की नक़ली डिग्री दिखाती हैं. और फिर आप युवाओं के बीच में आकर बोलते हैं :
“हम राजनीति में शिक्षित युवाओं को चाहते हैं.” EC और लोकसभा के स्पीकर को डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा भेजे गए पत्र पढ़ें – ANNEXURE 7_36 &7_35 एक गांधीजी थे, वो दक्षिण अफ्रीका गए, वहाँ अपनी योग्यता से वकील बने, उसे दक्षिण अफ्रीका में सेवा करने के लिए छोड़ा, फिर अपने देश में सेवा करने के लिए…
क्यूंकि सच्चाई ये है कि आप अभी तक
राजनीति में नहीं आये हैं. दरअसल आप फैमिली बिजनेस में आये हैं. पहले राजनीति में आइये.
राहुल गाँधी के नाम से नहीं, राओल विन्ची (राहुल गाँधी के दुसरे पासपोर्ट पर यही नाम है ) के नाम से चुनाव जीतकर दिखाइये. तब युवाओं और शिक्षित लोगों को राजनीति में आने की सीख दीजिए.
और तब तक हमें सचिन पायलट, मिलिंद देवरा और नवीन जिंदल जैसे युवाओं का उदाहरण मत दीजिये जिन्होंने राजनीति में पदार्पण किया है. वो राजनीतिज्ञ नहीं हैं. बस राजनीति में किसी तरह आ गए हैं. ठीक उसी तरह जैसे अभिषेक बच्चन और कई स्टारपुत्र जो अभिनेता नहीं है, बस अभिनय में किसी तरह आ गए हैं (कारण सभी जानते हैं)
इसलिए बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप युवाओं को राजनीति में आने की सीख देना बंद करें जब तक खुद में थोड़ी काबिलियत ना आ जाए.. हम राजनीति में क्यों नहीं आ सकते! राहुल बाबा, थोडा समझो.
आपके पूज्य पिताजी के बैंक खाते (स्विस) में 10,000 करोड़ रुपये थे जब वो स्वर्गवासी हुए. सामान्य युवाओं को ज़िंदगी जीने के लिए वर्क करना पड़ता है. आपके परिवार को बस थोड़ा नेटवर्क करना पड़ता है. अगर हमारे पिता ने हमारे लिए हज़ारों करोड़ रुपए छोड़े होते तो शायद हम भी राजनीति में आने की सोचते… लेकिन हमें काम करना पड़ता है. सिर्फ अपने लिए नहीं, आपके लिए भी. ताकि हमारी कमाई का 30% हिस्सा टैक्स के रूप में सरकार के पास जाए जो आपके स्विस बैंक और अन्य व्यक्तिगत बैंक खातों में पहुँचाया जा सके.
इसलिए प्यारे राहुल, बुरा ना मानो अगर युवा राजनीति में नहीं आ पाते. हम आपके चुनाव अभियानों और गाँवों में हैलीकॉप्टर यात्राओं के लिए भरपूर योगदान दे रहे हैं.
आप जैसे नेताओं बनाम राजकुमारों को पालने के लिए किसी को तो कमाना पडेगा, खून पसीना एक करना पडेगा.
कोई आश्चर्य नहीं आप गांधी नहीं, सिर्फ नाम के गांधी हैं! एयर इंडिया, KG गैस डिविजन, 2G, CWG, स्विस बैंक खातों की जानकारियाँ…हसन अली, KGB. अनगिनत उदाहरण हैं आपके परिवार के कारनामों के.
उसके बाद सोनिया गांधी ने नवम्बर 2010 में इलाहाबाद की पार्टी रैली में भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टोलेरेंस’ की घोषणा की.
पाखण्ड की भी हद है! आप शर्मिन्दा होना चाहते हैं न! यह सोचकर शर्मिन्दा होइए कि देश का प्रथम राजनैतिक परिवार क्या से क्या बन गया है… …
एक पैसा कमाने की शर्मनाक मशीन! कोई आश्चर्य नहीं कि आप अपने रक्त से गांधी नहीं हैं. गाँधी तो बस एक अपनाया हुआ नाम है.
आखिरकार इंदिरा ने महात्मा गाँधी के बेटे से शादी नहीं की थी, अगर गाँधी का एक भी जीन आपके DNA में होता तो आप इतनी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षा से ग्रस्त नहीं होते
( सिर्फ पैसा बनाने की महत्त्वाकांक्षा) ! आप सच में शर्मिंदा होना चाहते हैं.
यह सोचकर शर्मिन्दा होइए कि आप जैसे तथाकथित गांधियों ने गांधी की विरासत का क्या हाल किया है.
कभी-कभी लगता है शायद गांधी ने अपने नाम का कॉपीराईट कराया होता. फिलहाल मेरी सलाह है कि सोनिया गांधी अपना नाम बदल कर $onia Gandhi कर लें, और आप अपने नाम Rahul/Raul की शुरुआत रुपये के नए सिम्बल से करें.
राओल विंची: ‘मुझे खुद को भारतीय कहने में शर्म आती है. हमें भी आपको भारतीय कहते हुए शर्म आती है.’ उपसंहार: पोपुलर मीडिया को अपनी बात मनवाने के लिए खरीदा, ब्लैकमेल या नियंत्रित किया जाता है. मेरा मानना है कि सामाजिक मीडिया अभी भी के लोकतांत्रिक मंच है.
(अब वो इसे भी नियंत्रित करने के लिए क़ानून ला रहे हैं!) तब तक हम ये सवाल पूछते रहें जब तक जवाब ना मिल जाएं. .
आखिर में हम सब गांधी हैं, क्योंकि हम भी बापू की संतान हैं. अधिक जानकारी के लिए डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के बारे में पता लगाते रहें. आज उनके कारण 2G घोटाले की जांच हो रही है. वो एक भूतपूर्व केंद्रीय क़ानून मंत्री हैं.
सभार श्री सुब्रमण्यम स्वामी जी की पुस्तक का हिंदी अनुवाद .
उत्तर प्रदेश मेंजिस जंगल राज की बातें की जारही है वह क्या दूसरे राज्यों में नहीं है?चार वर्षों तक चुप्पी के बाद मायावती शासन के अंतिम वर्ष में लोग और मिडिया दोनों मुखर हो गए हैं,पर मुझे तो ऐसा नहीं लगता की पांचवे वर्ष में जुर्म का ग्राफ उपर उठा है.दूसरी बात यह है,क्या जुर्म के इस ग्राफ का उसी समय के दूसरे राज्यों के ग्राफ से तुलना की गयी है.? अगर ऐसा है तो केवल उत्तर प्रदेश के जुर्म का लेखा जोखा देने के बदले अगर तुलनात्मक आकडे प्रस्तुत कए जाते तो वह ज्यादा प्रभावशाली और निष्पक्ष सिद्ध होता.ऐसे भी उत्तर प्रदेश का इतिहास इस मामले में कोई गौरवशाली नहीं रहा है,पर तुलनात्मक अध्ययन सत्य के ज्यादा करीब और निष्पक्षतापूर्ण होता..