सिर्फ ढोंग है माया का दलित और मुस्लिम प्रेम

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

उत्तर प्रदेश में 15वी विधानसभा के लिये जब चुनाव हुए तो जिला बिजनौर के मतदाताओ ने जिले की सातो विधानसभा सीटों से बसपा के सात विधायक जीताकर विधानसभा लखनऊ भेजे मायावती और बसपा पर पूरा विश्वास जगाया पर बिजनौर वासियो को क्या हासिल हुआ, कुछ नही। उस वक्त ये उडाया गया कि सूबे की मुख्यमंत्री मायावती जी द्वारा जिले को वीआईपी जिले का दर्ज दे दिया गया है, जिले में 24 घन्टे बिजली आयेगी, विकास की गंगा बहेगी, नये नये उघोग लगेगे, मुस्लिम मदरसो में कम्प्यूटर लगेगे मुस्लिम बच्चो को दीनी तालीम के साथ साथ दुनियावी तालीम भी दी जायेगी पर हाय, पॉच साल गुजरने के बाद न तो दलित की दशा सुधर पाई और न मुस्लिम की। आज प्रदेश की स्थिति ये है कि जंगलराज फैला है। खुद को दलित समाज का चेहरा कहने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के राज में खुद दलितो को सब से ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है फिर अब सर्वजन हिताए, सर्वजन सुखाय के नारे और भ्रष्टाचार की विरोधी बनकर 15वी विधानसभा के चुनाव में उतरी मायावती आज किस मुंह से उत्तर प्रदेश की जनता से वोट मांग रही है। आज नॅशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकडे इस बात के गवाह है कि 2009 में देश में हुए दलितो के उत्पीड़न के मामलो में सब से आगे उत्तर प्रदेश है।

उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में 21.1 प्रतिशत आबादी दलित बहुल है। खास बात यह है कि इन में से 87.7 प्रतिशत दलित आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में निवास करते है। इन में 99.3 प्रतिशत दलित हिंदू धर्म को मानते है, 0.6 प्रतिशत दलित बौद्व धर्म, 0.1 सिख धर्म को मानते है। सोनभद्र जिले में सब से ज्यादा 41.9 प्रतिशत दलित तो उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में सब से कम 11 प्रतिशत दलित निवास करते है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकडे पर गौर करे तो वर्ष 2009 के दौरान देशभर में दलितो के खिलाफ कुल 33,594 मामले सामने आये, जिन में सब से ज्यादा मामले 22.4 प्रतिशत सिर्फ यूपी के ही रहे। वर्श 2009 के दौरान देश में कुल 624 दलितो की हत्या हुई, जिनमें यूपी में 37.7 प्रतिशत मामले रहे। 1,346 मामले बलात्कार क माले एससी/एसटी एक्ट में दर्ज हुए, जिन में यूपी 23.6 प्रतिशत मामलो के साथ देश में दूसरे नम्बर पर रहा वही देश में कुल 195 दलितो के घरो में आगजनी के मामलो में यूपी में 38 मामले सामने आये। दलितो पर देश में अत्याचार के 11,143 मामले सामने आये जिन में यूपी में 22.9 प्रतिशत हुए, दलितो के शिक्षा की बात करे तो मायावती के शासन काल में भी दलित केवल 46.3 प्रतिशत ही आज साक्षरता की श्रेणी में आते है इन में से 27.1 प्रतिशत दलितो ने केवल प्राईमरी तक ही शिक्षा प्राप्त की है।

अब प्रदेश में हाथ से सत्ता और जनाधार सरकता देख मायावती नये नये शगूफे गढने लगी है। कही मुस्लिम आरक्षण का ढोंग रच रही है तो कही सवर्ण आरक्षण का स्वांग। पर हकीकत ये है कि अब जनता खास तौर से दलित और मुस्लिम मौजूदा बसपा सरकार के दलित और मुस्लिम विरोधी कार्य को जान चुकी है और ये भी जान चुकी है कि किस प्रकार ये ढोंगी सत्ता और पैसे की लालची मायावती मुस्लिमो और दलितो के नाम पर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है। आज चुनाव नजदीक होने पर मुस्लिम आरक्षण और मुस्लिमो के हितो की बात करने वाली मायावती को पॉच सालो तक मुस्लिमो के हित में सच्चर कमेटी की सिफारिशो की क्यो याद नही आई। वर्ष 2011 में मायावती के शासन में भारत सरकार द्वारा मुस्लिम छात्रो को छात्रवृत्ती बाटने के लिये मिले 35 करोड़ रूपये क्यो नही बाटें गये। आज प्रदेश की जनता जर्नादन प्रदेश में फैली अराजकता, भ्रष्श्टाचार से ही पीडित नही है, जनता बसपाईयो की गुण्डागर्दी और आम समस्याओ से बहूत ज्यादा पीडित है आज बसपा शासन में उस की आवाज उस का दुख दर्द सुनने वाला कोई नही। ये हम सब जानते है कि मायावती और बसपा का उदय मुस्लिम और बहुजन समाज से हुआ पर सत्ता के नशे में चूर मायावती आज मुस्लिमो और बहुजन समाज को पूरी तरह भूल चुकी है। उत्तर प्रदेश की आईएएस लॉबी के कुछ अधिकारी काली कमाई काले कारनामो के सहारे स्वय को सत्ता के मठाधीश बनाये हुए है। 15वी विधानसभा में जितने दुराचारी, भ्रष्टाचारी और अत्याचार विधायक दागी निकले शायद ही किसी विधानसभा में निकले हो, या फिर आगे आने वाली विधानसभाओ में निकले, जनता और विपक्ष के चिल्लाने, पीडित लोगो के न्यायालयो में जाने के बाद इन चरित्रहीन विधायको पर सरकार ने तब गौर किया, जब हद और बहुत देर हो गईं।

मायावती ने जिस प्रकार 300 हाथियो की और 9 अपनी मूर्तिया लखनऊ और पचास हाथियो और 2 अपनी मूर्तिया नोएडा में लगवाई आखिर प्रदेश सरकार द्वारा मूर्तियो और पार्क पर खर्च किया गया ये पैसा बेवजह बर्बाद क्यो किया गया समझ से परे की बात है। वह भी तब जब बुंदेलखड सहित प्रदेश के कई जिलो में किसान सूखे के कारण आत्महत्या करने को विवश थे और आम आदमी आवश्यक वस्तुओ के क्रय करने में असमर्थ। जितना धन सरकार ने इन मूर्तियो और पार्क पर खर्च किया उस पैसे से प्रदेश मे बहुत विकास हो सकता था। बच्चो की पढाई, स्वास्थ्य सेवाओ, विधवा पेंशन, सहित प्रदेश की विधुत व्यवस्था सुधर सकती थी। कोई ऐसा उद्योग या कल्याणकारी योजना क्रियान्वित हो सकती थी, जिस से आम आदमी को राहत और रोजगार मिल सकता था। मगर सत्ता में बैठे भ्रष्टाचारियो को जनहित की जरा भी परवाह नही थी।

मायावती और उन के कार्यकाल में जिस प्रकार से प्रदेश में पूरे पॉच साल लूट, भ्रष्टाचार, अराजकता का बोलबाला रहा वो भी किसी से छुपा नही है और अब मायावती उसे छुपा भी नही सकती। हम बात मायावती सरकार के सब से प्रभावशाली और कई विभागो का काम देख रहे मंत्री नसीमुद्वीन सिद्दीकी की करे तो यह जानकर आश्चर्य होता है कि उन्होने प्रदेश के विकास के बजाये अपने परिवार खानदान, भाईयो को नजूल की जमीने दिलाकर, अवैध रूप से आबादी की जमीने दिलाकर, बुंदेलखण्ड के विकास के लिये मिले पैकेज में परिवार, नातेदार, रिश्तेदार का कल्याण किया। बंदेलखण्ड के विकास के लिये केंद्र सरकार से मिले तीन हजार करोड़ रूपये में से गरीब किसानो को दिये जाने वाले 40 ट्रक्टर में सिद्दीकी ने 17 ट्रक्टर अपने नाते- रिश्तेदारो अथवा बसपा से जुडे लोगो को बट दिये। वही मुख्यमंत्री के कार्यकाल में उन के सगे भाई आनंद कुमार की सम्पत्ति में हजार गुना से अधिकं की बढोतरी हुई पिछले दिनो भाजपा ने ये आरोप लगाते हुए सीबीआई की जॉच की मांग उठाई थी। आप को बता दू की सन् 2007 में आानंद कुमार के पास कुल दो चार कंपनिया थी जिन की हैसियत पॉच करोड रूपये से भी कम थी, पर मायावती के मुख्यमंत्री बनते ही उनके शासनकाल में उन के पास इस वर्ष जनवरी 2012 तक उन की कुल कंपनियो की संख्या तीन सौ का आंकडा पार कर गई, और अब आनंद कुमार और उस के परिवार और उन के मित्रो की कंपनियो के समूह की हैसियत संदिग्ध निवेश और धन के लेनदेन के जरिये दस हजार करोड़ रूपये से भी अधिक हो गई है।

आज देश में प्रेरणादायक महापुरुषों की प्रतिमाए जिस प्रकार से अपमान का दंश झेलने के लिये विवश है ये किसी से छुपा नही है। मायावती द्वारा ये महापुरूषो की प्रतिमाए उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए भावी पीढी या समाज को प्रेरणा देने की नीयत से स्थापित नही की जा रही है बल्कि जातिगत प्रतीक की पहचान के लिये स्थापित की जा रही है। इसी कारण इन महापुरूषो की प्रतिमाओ के प्रति आम आदमी की श्रद्धा डगमगा रही है। देखा जाये तो ऐसा कर के खुद मायावती इन महापुरूषो के कद को कम कर उन्हे एक जाति विशेष तक संकुचित करने की गलती कर रही है। ऊपर से प्रतिमाओ के रख रखाव पर हर साल करोडो रूपये फूंके जाते है अलग से। यदि इस बार बसपा की सरकार नही आती है तो इन महापुरूषो और खुद मायावती का क्या का क्या हाल होगा हम और आप कल्पना कर सकते है।

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