जस्टिस कर्णन लड़ें जरुर लेकिन….

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

कोलकाता उच्च न्यायालय के चर्चित जज सी.एस. कर्णन ने अब एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। वैसे भी जब वे मद्रास उच्च न्यायालय में थे, तब भी उन्होंने अपनी साथी जजों के विरुद्ध आदेश जारी कर दिए थे। उन्हें सबसे बड़ी शिकायत यह है कि मद्रास हाईकोर्ट के कई जज भ्रष्ट हैं। उन्होंने न्यायपालिका में चल रहे छोटे-मोटे भ्रष्टाचारों के विरुद्ध एक अभियान-सा छेड़ रखा है। सर्वोच्च न्यायालय की सात जजों की बेंच ने इसे न्यायपालिका का अपमान माना है और उन्हें 13 फरवरी को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। कर्णन का मानना है कि यह आदेश अवैध है। सर्वोच्च न्यायालय ने कर्णन द्वारा दिए जा रहे फैसलों पर भी रोक लगा दी है। कर्णन ने इस आदेश को अवैध और अनैतिक कहने के लिए बहुत ही कमजोर तर्क का सहारा लिया है। उनका कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के ये सभी जज ऊंची जातियों के हैं, इसीलिए वे हाथ धोकर उनके पीछे पड़ गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ऐसा करके संविधान में दिए गए मानव अधिकार का उल्लंघन कर रहा है और दलित-उत्पीड़न का अवैध कार्य भी कर रहा है। ऐसा तर्क देकर कर्णन ने अपनी लड़ाई को कमजोर कर लिया है। यह जातिवादी तर्क उन पर उल्टा भी पड़ सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि दूसरे जजों पर वे भ्रष्ट होने के आरोप इसीलिए लगा रहे हैं कि उनके दिल में जलन है कि वे ऊंची जातियों के हैं और कर्णन खुद दलित हैं। कर्णन ने सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को जो विरोध-पत्र भेजा है, उसमें उन्होंने यह भी लिखा है कि उनके मामले पर तभी विचार किया जाए, जब चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर सेवा-निवृत्त हो जाएं। यह सब लिखकर कर्णन ने अपनी स्थिति तो हास्यास्पद बना ही ली है, भारतीय न्याय-व्यवस्था को भी वे बदनाम कर रहे हैं। जहां-तहां हो रहे भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ना अच्छी बात है, बड़े साहस का काम है लेकिन यह जरुरी नहीं है कि अच्छे और साहसिक कार्य करते वक्त व्यक्ति अपनी गरिमा और मर्यादा को ताक पर रख दे। भारतीय ही नहीं, दुनिया की सारी न्यायपालिकाओं में से भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रहती हैं लेकिन उनसे लड़ने का जो तरीका कर्णन ने अपनाया है, वह निंदनीय है। पता नहीं, कर्णन सर्वोच्च न्यायालय के सामने खुद को पेश करेंगे या नहीं लेकिन संसद चाहे तो उनको सदन में हाजिर करके उनके अतिवाद को जरा घिसे लेकिन उनके भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान पर भी समुचित ध्यान दे।

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