जस्टिस काटजू की संकीर्ण मानसिकता

1
145

यह उचित है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणियां करने वाले उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कडेंय काटजू की संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से निंदा की है। एक ऐसा व्यक्ति जो देश की सर्वोच्च अदालत में न्यायाधीश के अलावा भारतीय प्रेस परिषद का अध्यक्ष रह चुका हो उसे कतई अपेक्षा नहीं की जाती कि जिस गांधी को संसार महात्मा व मनीषी मानता है वह उसे ब्रिटिश एजेंट, नकली व पाखंडी महात्मा करार देकर भारतीय जनमानस को ठेस पहुंचाए और खुद की गरिमा को भी ध्वस्त करे। समझना कठिन है कि न्यायाधीश काटजू को यह अलौकिक ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ कि मोहनदास करमचंद गांधी ही भारत के सार्वजनिक जीवन की हरेक बुराई की जड़ हैं और उन्होंने धर्म व राजनीति का घालमेल कर ब्रिटेन की बांटो और राज करो की नीति को बढ़ावा दिया। उनका यह भी कुतर्क है कि गांधी जी द्वारा दशकों तक हिंदू धर्म से जुड़े विचारों मसलन रामराज्य, गोरक्षा, वर्णाश्रम और ब्रहमचर्य के कारण ही मुसलमान लगातार मुस्लिम जैसे संगठनों की ओर बढ़ने लगे। गौर करें तो काटजू का यह विचार उन विचारों का ही महिमामंडन है जो भारत विभाजन और उसके उपरांत देश में चतुर्दिक हिंसा के लिए जिम्मेदार मुहम्मद अली जिन्ना की सांप्रदायिक नीति को श्रेष्ठ ठहराते हैं। गांधी के बारे में न्यायाधीश काटजू के विचार नितांत सतही और त्रासदीपूर्ण है। अन्यथा वह गांधी पर लांक्षन नहीं लगाते कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को दंतहीन सत्याग्रह की ओर मोड़ा और आजादी के आंदोलन का श्रेय लिया। बेहतर होगा कि न्यायाधीश काटजू गांधी के विचारों और आदर्शों को संकीर्णता और सांप्रदायिकता के तराजू पर न तौलें। उन्हें समझना होगा कि गांधी के विचार सार्वकालिक हैं। वे भारतीय उदात्त सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के अग्रदूत हैं। सहिष्णुता, उदारता और तेजस्विता के प्रमाणिक सत्यशोधक संत भी और शाश्वत सत्य के यथार्थ समाज वैज्ञानिक भी। राजनीति, साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, विज्ञान और कला के उनके आदर्श मापदण्ड थे। गांधी सम्यक प्रगति मार्ग के चिंह्न भी हैं और भारतीय संस्कृति के परम उद्घोषक भी। वेद, पुराण एवं उपनिषद का सारतत्व ही उनका ईश्वर है। बुद्ध, महावीर की करुणा ही उनकी अहिंसा। सत्य, अहिंसा, ब्रहमचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शरीर श्रम, आस्वाद, अभय, सर्वधर्म समानता, स्वदेशी उनके जीवन के सार तत्व रहे हैं और समावेशी समाज निर्माण की परिकल्पना ही उनके जीवन का चरम लक्ष्य रहा है। गांधी के आदर्श विचार उनके निजी तथा सामाजिक जीवन तक ही सीमित नहीं रहे। उन विचारों को उन्होंने आजादी की लड़ाई में आजमाया भी। काटजू साहब! तब भी आप जैसे लोगों ने कहा था कि राजनीति में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह की नहीं चलती। लेकिन उन्होंने दिखा दिया कि सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर किस तरह आजादी के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। गाधी ने लोगों को संघर्ष के तीन मंत्र दिए-सत्याग्रह, असहयोग और बलिदान। यही नहीं उन्होंने इस मंत्र को समय की कसौटी पर भरपूर कसा भी। सत्याग्रह को सत्य के प्रति आग्रह बताया। यानी आदमी को जो सत्य दिखे उस पर पूरी शक्ति और निष्ठासे डटा रहे। बुराई, अन्याय और अत्याचार का किन्हीं भी परिस्थितियों में समर्थन न करे। सत्य और न्याय के लिए प्राणोत्सर्ग करने को बलिदान कहा। जरा याद कीजिए काटजू साहब! अमेरिका की प्रतिश्ठित टाइम पत्रिका ने महात्मा गांधी की अगुवाई वाले नमक सत्याग्रह को दुनिया के सर्वाधिक दस प्रभावशाली आंदोलनों में शुमार किया है। गत वर्ष पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी ह्वाइट हाउस में अफ्रीकी महाद्वीप के 50 देशों के युवा नेताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि आज के बदलते परिवेश में युवाओं को गांधी जी से प्रेरणा लेने की जरुरत है। अहिंसा के बारे में उनके विचार सनातन भारतीय संस्कृति की प्रतिध्वनि है। अगर गांधी के विचारों में रामराज्य, गोरक्षा, वर्णाश्रम और ब्रहमचर्य जैसे आग्रह ध्वनित हुए तो समझना होगा कि वे सनातनी हिंदू थे और उन पर गीता के उपदेशों का व्यापक असर था। वे कहते भी थे कि हिंसा और कायरता पूर्ण लड़ाई में मैं कायरता की बजाए हिंसा को पसंद करुंगा। मैं किसी कायर को अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ा सकता वैसे ही जैसे किसी अंधे को लुभावने दृश्यों की ओर प्रलोभित नहीं किया जा सकता। अहिंसा को वे शौर्य का शिखर मानते थे। उन्होंने अहिंसा की स्पष्ट व्याख्या करते हुए कहा कि अहिंसा का अर्थ है ज्ञानपूर्वक कष्ट सहना। उसका अर्थ अन्यायी की इच्छा के आगे दबकर घुटने टेक देना नहीं। उसका अर्थ यह है कि अत्याचारी की इच्छा के विरुद्ध अपनी आत्मा की सारी शक्ति लगा देना। अहिंसा के माध्यम से गांधी ने विश्व को यह भी संदेश दिया कि जीवन के इस नियम के अनुसार चलकर एक अकेला आदमी भी अपने सम्मान, धर्म और आत्मा की रक्षा के लिए साम्राज्य के सम्पूर्ण बल को चुनौती दे सकता है। गांधी के इन विचारों से विश्व की महान विभुतियों ने स्वयं को प्रभावित बताया है। आज भी उनके विचार विश्व को उत्प्रेरित कर रहे हैं। लोगों द्वारा उनके अहिंसा और सविनय अवज्ञा जैसे अहिंसात्मक हथियारों को आजमाया जा रहा है। ऐसे समय में जब पूरे विश्व में हिंसा का बोलबाला है, राष्ट्र आपस में उलझ रहे हैं, मानवता खतरे में है, गरीबी, भूखमरी और कुपोषण लोगों को लील रही है तो गांधी के विचार बरबस याद आने लगे हैं। विश्व महसूस करने लगा है कि गांधी के बताए रास्ते पर चलकर ही विश्व को नैराष्य, द्वेश और प्रतिहिंसा से बचाया जा सकता है। गांधी के विचार विश्व के लिए इसलिए प्रासंगिक हैं कि उन विचारों को उन्होंने स्वयं अपने आचरण में ढालकर सिद्ध किया न कि सिर्फ उपदेश दिया। उन विचारों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर चढ़ाकर जांचा-परखा भी। 1920 का असहयोग आंदोलन जब जोरों पर था उस दौरान चैरी-चैरा में भीड़ ने आक्रोश में एक थाने को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया। इस हिंसक घटना में 22 सिपाही जीवित जल गए। गांधी जी द्रवित हो उठे। उन्होंने तत्काल आंदोलन को स्थगित कर दिया। उनकी खूब आलोचना हुई लेकिन वे अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए। वे हिंसा को एक क्षण के लिए भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थे। उनकी दृढ़ता कमाल की थी। जब उन्होंने महसूस किया कि ब्रिटिश सरकार अपने वायदे के मुताबिक भारत को आजादी देने में हीलाहवाली कर रही है तो उन्होंने भारतीयों को टैक्स देने के बजाए जेल जाने का आह्नान किया। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन चलाया। ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर टैक्स लगाए जाने के विरोध में दांडी यात्रा की और समुद्र तट पर नमक बनाया। उनकी दृढ़ता को देखते हुए उनके निधन पर अर्नोल्ड टोनी बी ने अपने लेख में उन्हें पैगंबर कहा। काटजू साहब! अब जरा बताइए कि गांधी जी किस तरह ब्रिटिश एजेंट थे? प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन का यह कथन आज भी लोगों के जुबान पर है कि आने वाले समय में लोगों को सहज विश्वास नहीं होगा कि हांड़-मांस का एक ऐसा जीव था जिसने अहिंसा को अपना हथियार बनाया। क्यों न समझा जाए कि जस्टिस काटजू भी कुछ ऐसा ही भूल कर रहे हैं? गांधी जी राजनीतिक आजादी के साथ सामाजिक-आर्थिक आजादी के लिए भी चिंतित थे। समावेशी समाज की संरचना को कैसे मजबूत आधार दिया जाए उसके लिए उनका अपना स्वतंत्र चिंतन था। उन्होंने कहा है कि जब तक समाज में विषमता रहेगी, हिंसा भी रहेगी। हिंसा को खत्म करने के लिए विषमता मिटाना जरुरी है। विषमता के कारण समृद्ध अपनी समृद्धि और गरीब अपनी गरीबी में मारा जाएगा। इसलिए ऐसा स्वराज हासिल करना होगा, जिसमें अमीर-गरीब के बीच खाई न हो। अब बताइए काटजू साहब! गांधी जी के विचार किस तरह देश की समस्याओं और सार्वजनिक बुराइयों की जड़ है? शिक्षा के संबंध में भी उनके विचार स्पष्ट थे। उन्होंने कहा है कि मैं पाश्चात्य संस्कृति का विरोधी नहीं हूं। मैं अपने घर के खिड़की दरवाजों को खुला रखना चाहता हूं जिससे बाहर की स्वच्छ हवा आ सके। लेकिन विदेशी भाषाओँ की ऐसी आंधी न आ जाए कि मैं औंधें मुंह गिर पड़ूं। गांधी जी नारी सशक्तीकरण के भी प्रबल पैरोकार थे। उन्होंने कहा है कि जिस देश अथवा समाज में स्त्री का आदर नहीं होता उसे सुसंस्कृत नहीं कहा जा सकता। लेकिन दुर्भाग्य है कि गांधी के देश में ही उनके आदर्श विचारों का जस्टिस काटजू जैसे लोग कद्र नहीं कर रहे हैं। जस्टिस काटजू सरीखे लोगों को समझना होगा कि गांधी के सुझाए रास्ते पर चलकर ही एक समृद्ध, सामर्थ्यवान, समतामूलक और सुसंस्कृत भारत का निर्माण किया जा सकता है।

अरविंद जयतिलक

1 COMMENT

  1. माननीय (?)काटजू साहेब संसद के दोनों सदन एक मत से किस निषकर्ष पर पहुंचे?ओबामा साहेब ने भारतीय संसद में गांधीजी के बारे में क्या कहा? आईंस्टीन। दलाईलामा , नीत्से , के बापू के बारे में क्या विचार हैं ?लंदन में बापू की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर प्रधामंत्री केमरून ने क्या कहा है यह सब आपको पता होगा ही. अब तो खेद व्यक्त कर दो.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here