सुरक्षा व्यवस्था का औचित्य एवं सार्थकता

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क्या आपने कभी कोई ऐसा वाकया सुना है जब आपने किसी एक व्यक्ति को जरूरतमंद समझकर कोई वस्तु भेंट की हो और लगातार एक ही वस्तु भेंट करते आ रहे हैं और बाद में वही जरूरतमंद व्यक्ति भेंट से प्राप्त उसी वस्तु का व्यापार प्रारंभ कर दे । ईमानदारी से बताइये उस परिस्थिति में आप कैसा महसूस करेंगे । मुझे पता है, आप अपने आपको ठगा हुआ महसूस करेंगे ।
ठीक इससे मिलता-जुलता किस्सा जानकारी में आया है । समाचारों से प्राप्त जानकारी के अनुसार योग गुरू बाबा रामदेव जी, जो कि भारत सरकार की ओर से जेड श्रेणी की अति महत्वपूर्ण सुरक्षा प्राप्त आदरणीय हैं, ने स्वयं चालीस हजार करोड रूपए की लागत से पराक्रम सुरक्षा प्राईवेट लिमिटेड के नाम से प्राईवेट सुरक्षा फर्म की स्थापना की है । इस कंपनी में आर्मी और पुलिस के रिटायर्ड कर्मियों को रखा गया है ।
हम सब भली-भाॅंति जानते हैं कि हमारे भारत में नैतिक रूप से कोई भी नागरिक किसी भी प्रकार के मनचाहे व्यवसाय के लिये स्वतंत्र है । योग गुरू बाबा रामदेव जी भी योग के साथ-साथ व्यापार कर रहे हैं । इसमें कोई बुराई नहीं है । लेकिन सवाल यह है कि जब वे स्वयं भारत सरकार से जेड श्रेणी की सुरक्षा का लाभ उठा रहे हैं, इसका अभिप्राय यह है कि वे स्वयं को असुरक्षित मानते हैं अथवा भारत सरकार उनको असुरक्षित समझती है । तभी तो सरकार आम जनता के गाढे पसीने की कमाई को टैक्स के रूप में वसूल कर इन अति महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा एवं सेवा के लिये इतनी बडी रकम खर्च करती है ।
मई, 2016 की स्थिति में 454 ऐसे महत्वपूर्ण एवं अति महत्वपूर्ण गणमान्य लोग हैं जिनको विभिन्न श्रेणियों की सरकारी सुरक्षा मुहैया कराई गई है । इन गणमान्यों की सुरक्षा में लगभग 40 सुरक्षाकर्मी प्रति गणमान्य व्यक्ति के हिसाब से तैनात होते हैं । एक्स, वाय, जेड एवं जेड प्लस सुरक्षा की विभिन्न श्रेणियों के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे व्यय के आॅंकडे पृथक-पृथक हैं ।
मेरी निजी राय के मुताबिक भारत के जो गणमान्य सरकारी सहायता से अपनी जरूरत के अनुसार जिन विभिन्न श्रेणियों की सुरक्षा चाहें, उनको सुरक्षा व्यवस्था जरूर मुहैया की जानी चाहिए, लेकिन गणमान्यों के स्वयं के व्यय पर । क्योंकि जनता ने क्या गुनाह किया है, जिनके गाढे पसीने की कमाई का उपयोग किसी व्यक्ति की सरकारी सुरक्षा के लिये किया जा रहा है ।
विगत कुछ माह पूर्व एक मुद्दा चर्चा में आया था इन्टाॅलरेंस का, जिस पर काफी बवाल हुआ था । एक पल के लिये इस इन्टाॅलरेंस के मुद्दे को गणमान्यों की विभिन्न श्रेणियों की सुरक्षा व्यवस्था से जोडकर देखें तो हम सोच सकते हैं कि अति महत्वपूर्ण सुरक्षा की चाह रखने वाले क्या इन्टाॅलरेंस नहीं हैं । यदि नहीं हैं तो उनको अपने ही मुल्क में इतनी बडी सुरक्षा की जरूरत क्या है । उन दिनों यह चर्चा जोरों पर थी कि जिन भारतीयों को अपने ही मुल्क में भय लगता हो, उनको भारत में रहने का अधिकार नहीं है तथा सर्व-सम्मति से यही तय भी हुआ था ।
जनमानस के मन में यह सवाल जरूर उठना चाहिए कि जनता द्वारा सरकार को टैक्स रूपी जो बहुत बडी रकम अदा की जाती है, उस रकम का उपयोग औचित्यपूर्ण हो । जेड सुरक्षा प्राप्त योग गुरू बाबा रामदेव जी जब स्वयं असुरक्षित हैं, तब उस स्थिति में वे और उनके द्वारा आरंभ की गई निजी सुरक्षा कम्पनी अपनी विश्वसनीयता किस प्रकार कायम रख पायेगी और वे निजी सुरक्षा एजेंसी के माध्यम से किस स्तर की सेवाएॅं दे पायेंगे यह विचारणीय है । साथ ही साथ वे लोग भी धन्य होंगे जो उनकी सुरक्षा एजेंसी के माध्यम से सुरक्षा की अनमोल सेवा प्राप्त करेंगे ।

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