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काल चक्र घूमता है - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
काल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो;भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो! कितने आए कितने गए, राज कितने कर गए;इस धरा की धूल में हैं, बह के धधके दह गए ! सत्यनिष्ठ जो नहीं हैं, स्वार्थ लिप्त जो मही;ताण्डवों की चाप सहके, ध्वस्त होते शीघ्र ही !…