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कबहू उझकि कबहू उलटि ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कबहू उझकि कबहू उलटि ! कबहू उझकि कबहू उलटि, ग्रीवा घुमा जग कूँ निरखि; रोकर विहँसि तुतला कभी, जिह्वा कछुक बोलन चही ! पहचानना आया अभी, है द्रष्टि अब जमने लगी; हर चित्र वह देखा किया, ग्रह घूम कर जाना किया ! लोरी सुने बतियाँ सुने, गुनगुनाने उर में लगे;…