कबीर की भाषा का अनुवाद नहीं

—विनय कुमार विनायक
कबीर की नहीं है कोई प्रतिलिपि
कबीर की भाषा का अनुवाद नहीं
कबीर को पढ़ना है तो सीखनी होगी
कबीर की अक्खड़ भाषा की प्रकृति
जाननी होगी उसकी नागरी लिपि वर्तनी!

कबीर की भाषा साधुकड़ी डिक्टेटर जैसी
स्त्रैण नहीं, दैन्य नहीं, पलायन नहीं
‘अर्जुनस्य प्रतिज्ञैद्वै न दैनयं न पलायनम्’
कबीर की भाषा सीधे-सीधे प्रहार करती
कबीर की भाषा तीर सा दिल में उतरती!

कबीर की भक्ति में उपनयन संस्कार नहीं
अजान का हुंकार नहीं,खुदा का दरकार नहीं
ईश्वर का अवतार नहीं, कोई हथियार नहीं
कबीर के राम में कोई भी चित विकार नहीं!

कबीर की भक्ति ऐकांतिक एकला चलो नहीं
कबीर की भक्ति जन समूह की मुक्ति
कबीर की दावेदारी स्वर्ग दिलाने की नहीं
कबीर ने वकालत नहीं की कावा काशी
मक्का मदीना सी पुण्य भूमि में जाने की!

कबीर की शिक्षा अपने नर्क भूमि मगहर में
जीकर,रहकर,मरकर मुक्ति पा लेने की!
कबीर सब्जबाग दिखाते नहीं स्वर्ग हूर परी पाने का
कबीर ख्वाब दिखाते नहीं सोनार बांगला बनाने की!

कबीर का राम राजनीतिक नहीं, साम्प्रदायिक नहीं,
कबीर का राम श्री राम नहीं,वे सबकी श्री वृद्धि करते!
कबीर का राम जय राम नहीं,वे जग को जय दिलाते,
कबीर का राम हे राम नहीं, जिसे मृत्यु घड़ी में पुकारते!

कबीर का राम घट-घट वासी, कावा काशी रोम
मरघट मगहर श्मशान कब्रिस्तान में भी विराजते,
कबीर के राम वेद पुराण कुरान से आयातित नहीं!

कुछ बातें ऐसी होती जिसकी अनुवाद नहीं होती,
कुछ बातें घुसकर दिल में फिर निकल नहीं पाती!
चिपकी बातें दिल में नए विचार उग आने नहीं देती,
कुछ बातें ऐसी जो गुलामी बनाए रखने के लिए होती!

गुलामी से मुक्ति के लिए जरूरी, अलग तरह की बातें,
नई अलग तरह की बातें तबतक समझ में नहीं आती
जबतक हु-ब-हू उसे सुनी, सुनाई, समझाई नहीं जाती
हर भाषा में हर भाषा के लिए शब्द संपदा होती नहीं!
होती नहीं स्थिति को अभिव्यक्ति देने की शक्ति
एक भाषा का दूसरी भाषा में शब्दांतरण प्रभावहीन
अति प्रभावशाली विस्फोटक स्वभाव का हो सकता!

ऐसे में सही मनोवृत्ति की सही अभिव्यक्ति हेतु
सीखनी पड़ती उस भाषा की सही सही शब्दावली
कबीर की भाषा ऐसी जिसकी अनुवाद नहीं होती!

कुछ भाषा देशी स्त्रैण, कुछ अक्खड़ होती,
कुछ विदेशी भाषा लाल बुझक्कड़ जैसी होती!

स्त्रैण बोली स्त्री की तरह आकर्षक होती,
स्त्रैण बोली मोहपाश में बांधती भ्रमजाल से,
स्त्रैण बोली हमेशा पुरुषार्थ के खिलाफ होती!

स्त्रैण भाषा सब्जबाग दिखाती, ख्वाब दिखाती,
दिलासा देती मगर यथास्थिति बनाए रखती
भाषा बहुत हद तक व्यक्तित्व निर्माण करती!

भाषा अगर वीर रस का हो रण में जय दिलाती
कुछ भाषा हमें पुरुषार्थहीन असैन्य जाति बनाती!
देशी भाषा घर के लिए घर में रख छोड़नी चाहिए,
विदेशी अनुमान की भाषा उससे तो मुक्ति चाहिए,
ग्रहण करो परिष्कृत, सांस्कृतिक, जीवंत भाषा!

कि कोई भाषा अपनी पराई नहीं होती
भाषा हमेशा से समय परिस्थिति की उपज होती
कलतक संस्कृत भारोपीय विश्व भाषा थी
अपभ्रंश हो टूटते गई, स्थानीय बोली से जुटते गई
फिर एक खड़ी बोली बड़ी होकर हिन्दी हो गई!

अब हिन्दी खुशरो अमीर की, कबीर की बोली
रहीम रसखान की, हरिश्चंद्र, मैथिली शरण गुप्त
प्रसाद पंत निराला की बोली, दिनकर की हुंकार
समय की पुकार हिन्दी में सबका हित समाहित!

अमार बांगला बंगला देश की भाषा हो गई,
तमिल ईलम लंका की भाषा देगी नहीं दिलासा,
देश भर में रोजी-रोटी, राजनीति की गारंटी!

अंग्रेजी गुलामी की भाषा जिसकी दिन लद गई,
छोड़ो जिद उगते सूर्य को पूजो हिन्दी बोलो, लिखो
हिन्दी में देश राज्य समाज जनता का हित!

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