कलमाड़ी हैं ही राष्ट्रीय शर्म

सिद्धार्थ शंकर गौतम

यह अच्छा ही हुआ कि राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में आरोपी आयोजन समिति के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी लंदन ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में भाग नहीं ले पाएंगे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि कलमाड़ी को उद्घाटन समारोह में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा हुआ तो लोग उन्हें वहां भारत का प्रतिनिधि समझेंगे और उनके वहां जाने से देश शर्मसार हो सकता है| कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश एके सिकरी व न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ की खंडपीठ ने अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कलमाड़ी को लंदन जाने से रोक दिया है| खंडपीठ का कहना है कि चूँकि कलमाड़ी का आइएएएफ [इटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एथलीट फेडरेशन] की काउंसिल बैठक में भाग लेना पूरी तरह से व्यक्तिगत काम नहीं है क्योंकि आइएएएफ खुद भी आइओसी [इटरनेशनल ओलंपिक कमेटी] का एक हिस्सा है। खंडपीठ ने कहा कि कलमाड़ी कुछ समय के लिए आइओसी के साथ जुड़े रहे हैं। जहां तक कलमाड़ी को आइएएएफ की बैठक में भाग लेने की अनुमति देने का सवाल है तो न्यायालय के आदेश की कॉपी आइओसी व आइएएएफ को दिखा दी जाए। इसके बाद वह फैसला करें कि कलमाड़ी को बैठक में भाग लेने की अनुमति देनी है या नहीं। न्यायालय ने कहा है कि 27 जुलाई से पहले कलमाड़ी भारत छोड़कर लंदन के लिए रवाना नहीं होंगे। गौरतलब है कि वकील राहुल मेहरा ने एक याचिका दायर कर कहा था कि लंदन में ही राष्ट्रमंडल खेल आयोजन से संबंधित घोटाले का मामला उजागर हुआ था, ऐसे में कलमाड़ी के लंदन जाने से फिर से यह मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में छाएगा जो भारत की छवि को खराब करेगा। वकील राहुल मेहरा की आशंका को यूँही नहीं नकारा जा सकता|

 

पुणे से कांग्रेस सांसद कलमाड़ी के दामन पर राष्ट्रमंडल खेल आयोजन में भ्रष्टाचार के छींटें अभी साफ़ नहीं हुए हैं| वैसे भी राष्ट्रमंडल खेल घोटाला यूपीए २ के शासनकाल में हुए बड़े घोटालों में से एक है जिसमें करीब ८० हजार करोड़ रुपए का घपला होने के सबूत जांच एजेंसियों को मिले हैं| कलमाड़ी पर इस आयोजन में खर्च की गई राशि को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का आरोप लगा था जिसकी वजह से उन्हें लगभग एक वर्ष तक बड़े घर की हवा खानी पड़ी थी| पर जनता की आवाज बुलंद करने का दंभ भरने वाले कलमाड़ी के चेहरे पर न तो शर्म का भाव है न ही अपने किए का पछतावा| इतना ही नहीं वे स्वयं को लंदन जाने से रोके जाने की ख़बरों पर सवाल उठाते हुए यह कहे सुने जाते हैं कि एक उनके लंदन जाने से कौन सा आसमान टूट पड़ेगा? निर्लज्जता की पराकाष्ठा है यह बर्ताव| आखिर आम जनता की खून-पसीने की कमाई को राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में यूँ बर्बाद करने के बाद शान-ओ-शौकत का आवरण ओढ़ कलमाड़ी क्या साबित करना चाहते हैं? जब जांच एजेंसियों के पास सभी सबूत कलमाड़ी के विरुद्ध हैं तो उन्हें सरकार द्वारा इतना आश्रय क्यों दिया जा रहा है? क्या कलमाड़ी को कांग्रेस नेतृत्व का मौन समर्थन प्राप्त है? अंदरखाने तो यही प्रतीत होता है| इसके मायने तो यही हुए कि कलमाड़ी समेत अन्य भ्रष्टाचारी मंत्रियों को जेल में डालना और एक तय समय सीमा के बाद उनका बाहर आना कहीं सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को साबित करने की झूठी मशक्कत तो नहीं थी| जहां तक मेरा मानना है, कलमाड़ी में इतनी ताकत नहीं कि वे खुलेआम अपने लंदन दौरे और उससे उपजे विवाद का महिमामंडन करते फिरें| निश्चित रूप से उनको १० जनपथ या ७ रेसकोर्स रोड का समर्थन प्राप्त है| यह भी हो सकता है कि कलमाड़ी किसी तय स्क्रिप्ट के तहत विवादों को हवा दे रहे हों ताकि सरकार की नाकामियों की फेहरिस्त को संसद के मानसून सत्र में बिसराया जा सके| अभी अन्ना अपनी टीम के साथ अनशन पर बैठे हैं, ९ अगस्त से बाबा रामदेव भी सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद करेंगे| सुब्रमण्यम स्वामी से लेकर पीए संगमा तक सरकार की पेशानी पर बल ला रहे हैं| इन हालातों में कलमाड़ी विवाद से निश्चित रूप से सरकार डैमेज कंट्रोल कर पाएगी|

 

फिर कलमाड़ी के लंदन जाने से उपजे विवाद में जितनी तत्परता विभिन्न क्षेत्रों द्वारा दिखाई जा रही है, काश उतनी ही प्रतिबद्धता ओलम्पिक में भोपाल गैस त्रासदी की आरोपी डाऊ केमिकल के प्रायोजक बनने के पुरजोर विरोध में दिखाई जाती तो शायद गैस पीड़ितों के दिल को सुकून मिलता| वहां तो किसी कलमाड़ी ने विरोध नहीं किया और जब विदेश में मौज-मस्ती करने की बारी आई तो आम आदमी की जेब के पैसे से ऐश करने को बेकरार होने लगे| किसे दोष दें, हमारी राजनीतिक व्यवस्था को, हमारे बीच के राजनेताओं को या जनता को? बात कड़वी है पर स्वीकारना होगा कि जनता के अविवेकपूर्ण निर्णय ही कलमाड़ीयों को जन्म देते हैं जो हमारी ही छाती पर मूंग दलकर भी डकार नहीं मारते| कलमाड़ी को लंदन जाने से रोकना राष्ट्रीय शर्म की आशंका को समाप्त करना नहीं है| जब तक हम कलमाड़ी जैसी राष्ट्रीय शर्म से छुटकारा नहीं पा लेते, देश की छवि पर से राष्ट्रीय शर्मिंदगी का साया नहीं हटेगा| अपनी इतनी भद पिटवा चुके कलमाड़ी भी कुछ तो शर्म करें|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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  1. कल्मारी को सही समय में माननीय न्यायलय द्वारा रोका गया , न ही तो देश की विधिक प्रणाली का मजाक बनता .!

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