कलयुग के देवता

कहने को आजाद हो गये हम
पर मिली आजादी किस बात की
जब बिना रिश्वतखोरी के
आती नहीं है साँसभी।

घर से निकलते होती है मुलाकात
रिश्वतखोर दलालों से
येहैं कलयुग के देवता
पाला न पड़े गद्दारों से।।

कैसे छुपायें, पचती नहीं
गैस बनती है बात भी
बिना रिशवतखोरी के
आती नहीं है साँसभी।।

करप्सन,करप्शन, करप्शन
हर तरफ करप्शन का फैला
महाजाल से भी बड़ा
कोई जाल है।
सभी लगे झोली भरने
और देश होता कंगाल है।

वो कहते सब लूट रहे हैं
तुम भी लूटो
शर्म हया किस बात की
सच कहते हैं
क्या बतलायें
यही रीति है आजकी।।

पहले लोग
खून खराबा करते थे
बागी कहलाते थे
आज राजनीति में छाये हैं
माननीय कहलाते हैं।
पर आदत वही पुरानी भइया
ये मत समझो कि
सुधर गये,
कभी इधर गये
कभी उधर गये
पता नहीं कब किधर चले।।

सबसोची समझी चाल है इनकी
लग जाय तीर निशाने पर
बरकरार है कुर्सी रखनी
पार्टीवार्टी किस बात की।
पढ़े लिखे इनकी मुट्ठी में,
आइयस पीसीयस बेकार हैं
पीछें पीछे सब दौड़ लगावें
जब जहाँ इनकी सरकार है।

झूठहि लोग काली दुर्गा के पूजै
आजके नेताओं मे चमत्कार है
मत उलझना कभी मालचन्द
ऐसी तीर हवाओं से
येहैं कलयुग के देवता
पाला न पड़े गद्दारों से।…

—— मालचन्द कन्नौजिया ‘बेपनाह’

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