दिल्ली में छोला-भटूरा उतना ही लोकप्रिय है, जितना मुंबई में ‘बड़ा-पाव’ या फिर दक्षिण भारत में ‘इड्ली-सांभर’। दिल्ली के जिस किसी स्थान पर जाएंगे, वहां छोला-भटूरा बड़े सहज रूप में मिल जाएगा। पर, राजधानी में छोला-भटूरा की इक ऐसी भी दुकान है, जहां यदि विलंभ से गए तो इस लजीज व्यंजन का लुत्फ नहीं उठा पाएंगे। जी हां, ऐसी ही जगह है कमला नगर मार्केट की ‘चाचे-दी-हट्टी’ ।
छोला-भटूरा की ये दुकान जमाने से खूब लोकप्रिय है। सुबह नौ बजे के करीब खुलती है और दोपहर दो बजे तक तुफानी अंदाज में चलती है। इस दुकान का पूरा नाम है, रावल पिण्डी वाले चाचे दी हट्टी। लेकिन यह चाचे दी हट्टी के नाम से इलाके में प्रसिद्ध है। इन दिनों दुकान की कमान संभाल रहे कंवल किशोर को इस बात की ठीक-ठीक जानकारी नहीं है कि इस दुकान की स्थापना कब की गई थी। लेकिन वे बताते हैं, “पाकिस्तान के रावल पिण्डी से यहां आने के मेरे पिता प्राणनाथ ने इस दुकान की नींव रखी थी। हालांकि, वह समय क्या था इसकी ठीक-ठीक जानकारी मुझे नहीं है।”
फिलहाल वे अपने भाई के सहयोग से इस दुकान को चला रहे हैं। दुकान में उनके चार सहयोगी भी हैं। यदि आप वहां जाएंगे तो आलू के भटूरे समेत चार-पांच प्रकार के भटूरे का लुत्फ उठा सकते हैं। और यहां तैयार होने वाले रावल पिण्डी छोले के क्या कहने हैं ! जो यहां एक बार आया, वह अपने संगी को लेकर दोबारा जरूर आता है। यह दुकान बंग्लो रोड से कमला नगर मार्केट में स्थित बड़ी गोल चक्कर जाने के रास्ते में स्थित है। हालांकि, इस दुकान का आकार छोटा है। राह चलते इसपर आपकी नजर बामुश्किल से पड़ेगी। पर वहां लगी भीड़ से आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि यह रावल पिण्डी वाले की चाचे दी हट्टी है।
तमाम कोशिशों के बावजूद कंवल किशोर अपनी लोकप्रियता के बारे में कुछ कहने से बचना चाहते हैं। हां वे इतना जरूर कहते हैं, मैं पूरी कोशिश करता हूं कि ग्राहक को ऐसी चीज खिलाऊं ताकि वह दूसरी बार अपने साथियों को भी लेकर आए। छोला बनाने की विधि के बारे में पूछने पर उन्होंने इतना ही कहा, भाई साहब, हमारा अपना अलग तरीका है। रोजाना सबसे पहले सुखा छोला तैयार करके रख लिया जाता हैं। फिर आगे कि विधि अपनाई जाती है।
चाचे दी हट्टी की पहचान केवल कमला नगर मार्केट तक सीमित नहीं है। इसकी ख्याति दिल्ली के दूसरे इलाकों में भी है। साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय में दूसरे राज्यों से पढ़ाई के लिए आने वाले छात्रों के बीच भी यह खूब लोकप्रिय था। और आज भी है। यह बात तब और साफ हो जाती है जब दिल्ली विश्वविद्यालय से 12 वर्ष पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका एक व्यक्ति अपने संस्मरण में इस दुकान का खास तौर पर जिक्र करता है। वह बताता है, “ किसी पर इंप्रेसन जमाना होता था तो उसे हमलोग चाचे दी हट्टी लेकर आते थे और छोला-भटूरा खिलाते थे।”