इधर एक कविता पढने को मिली. उसके बीच का अंश मुझे याद है कि ‘…करना प्रेम/ करती रहना प्रेम/ प्रेम बचा तो बची रहेगी दुनिया…’. लेकिन हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के स्टार ऋतिक रोशन प्रेम को लेकर जिस दुनिया में जी रहे हैं और जिस तरह उन्होंने उस प्रसंग को सड़क-छाप बना दिया है, क्या इससे इस पवित्र सम्बन्ध पर आंच नहीं आयी है? यह सवाल इसलिए पूछना जरूरी है कि जो सम्बन्ध मर्यादा की मांग करता है, उसे ऋतिक भूल कैसे गए? एक वह समय भी था जब भारतीय दर्शकों ने ऋतिक को भरपूर प्यार इसीलिये दिया था कि वह शांत और सुशिक्षित दिखाई दिए थे. तीनों खानों के स्वर्णकाल को अकेले चुनौती देने में सक्षम नज़र आये थे. लोगों ने यह मान लिया था कि ऋतिक का दौर खानों से भी लंबा चलेगा और वे जिस तरह की फ़िल्में कर रहे थे, वे बाकियों की तरह मर्यादाहीन नहीं थी. लेकिन लगता है कि उस समय भी ऋतिक को खुद पर गुमान ज्यादा हो गया था. या उनके अन्दर ऐसी कोई ग्रंथि पहले से ही मौजूद थी जो लोग समझ नहीं पाए थे. लेकिन आज वही ग्रंथि उभरकर अपना रंग दिखा रही है. शायद उन्हें तब अहसास नहीं था कि उनका सम्बन्ध नामचीन संगीतकार रोशन और जे ओमप्रकाश परिवार से है जिनकी क़द्र दुनिया करती है. कभी-कभी लगता है कि अपनी जड़ों को भूल जाने वाला आदमी कितना संवेदनहीन हो जाता है, उसका साक्षात उदाहरण ऋतिक हैं. वे अपनी वंश-परम्परा को भी भूल गए कि स्त्रियों का किस तरह सम्मान किया जाना चाहिए.
ऋतिक-कंगना में प्रेम था भी या नहीं, या था भी तो कितना था, अब यह सवाल नहीं है. ताज़ा सवाल यह है कि क्या ऋतिक को आदर्श की परवाह करनी चाहिए या नहीं? जब पूरी दुनिया इस समय स्त्री को लेकर चिंतित है, तब ऋतिक एक स्त्री (कंगना) के पीछे हाथ धोकर क्यों पड गए हैं? शायद वे इतिहास को झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब भी स्त्री के खिलाफ कोई षड्यंत्र रचा गया है, साज़िश करने वालों के बुरे दिन आ गए हैं. या फिर ऋतिक का ईगो इतना बिफर गया है कि वह अच्छी-बुरे को पहचान नहीं पा रहा है. ऋतिक रोशन को यह याद रखना चाहिए कि आदमी को सबसे ज्यादा पराजित आज तक अहंकार ही कराता रहा है. आदमी का क्षय जब शुरू होता है तब अपने लोग पहले साथ छोड़ जाते हैं, कुछ वैसा ही जब जहाज के डूबने की बारी आती है तब किल्लोल करने वाली चिड़िया फुर्र से उड़ जाती है. पत्नी सुजेन को नहीं भूलें, जो हद तक जाकर प्यार करती थी, लेकिन आपकी मानसिकता ने उन्हें आपका घर ही नहीं, आपको छोड़ने के लिए विवश कर दिया. मैंने पहले भी एक पोस्ट में लिखा था कि हिन्दी सिनेमा ने ‘प्रेम’ को लेकर जितनी कहानियां बुनी है, दुनिया के किसी सिनेमा के लिए सपने की तरह है. अगर परदे को टटोलें तो सहज ही मालूम हो जाएगा कि प्रेम कैसे मानवीय स्वभाव का एक अटूट हिस्सा है. भारत में प्रेम को पवित्रता से जोडकर देखने की परम्परा रही है. इसमें समर्पण का सुख तो होता ही है, संवेदना के हर रंग के दर्शन भी होते हैं. लेकिन अभी-अभी कंगना-ऋतिक के जिस LOVE STORY का घृणित विस्फोट हुआ है, उसने प्रेम के रंग को ही धूसर कर दिया है. आज दोनों की कहानी साईबर सेल और अदालत तक पहुँच गयी है. हद तो यह है कि ऋतिक के वकील कंगना के वकील से पूछते हैं कि लड़ाई का मकसद क्या है? वे इसके आगे भी कहते हैं कि हमारे मुवक्किल तो प्रतिष्ठा बचाने के लिए लड़ रहे हैं लेकिन कंगना का मकसद क्या है?…क्या वकील की आवाज़ में भी दंभ नहीं आ गया है? उनके कहने का मतलब तो यही है न कि कंगना की कोई प्रतिष्ठा नहीं है. यह भी साबित होता जा रहा है कि ऋतिक मीडिया का सहारा लेकर कंगना को लगातार बदनाम कर रहे हैं. क्या इसमें ‘नायक’ का प्रेम या लगाव कहीं दिखाई दे रहा है? इसमें तो सीधे-सीधे खलनायकी की दुर्गन्ध समा गयी है. किसी तरह का सम्बन्ध न भी हो तो ‘मर्यादा’ का सम्बन्ध तो रह ही सकता है.
ऐसे मामलों में है हमेशा स्त्रियों को दोषी माना जाता है, ऋतिक ने भी साबित कर दिया कि उनका नज़रिया और कार्यकलाप भी स्त्री-विरोधी है. ऋतिक एक बड़े फ़िल्मी परिवार से हैं और इंडस्ट्री में उनका बोलबाला है जबकि कंगना एक आम लडकी है जिसने अपने दम पर फिल्म इंडस्ट्री में कामयाब होकर दिखाया है. दुनिया जानती है कि उसने कितने दुःख झेले हैं. लेकिन इस समय वह कामयाबी का एक मुहाबरा बन गयी है. उसके टैलेंट का अब हर कोई इस्तेमाल करना चाह रहा है. ऋतिक इसलिए भी ईर्ष्या से भर गए हैं. इस वक्त हर किसी की जुबान पर कंगना का ही नाम है, ऋतिक पीछे छूटते जा रहे हैं. ऋतिक का सच सामने आ रहा है कि उनका असली रूप क्या है. अभी भी गुंजाईश बची हुई है कि ऋतिक अपनी भूल सुधार लें और कंगना से माफी मांग लें या दोस्ती का हाथ बढ़ा लें. जो लोग तमाशा के रूप में इसे देख रहे हैं, उनके मुंह पर यह तमाचा जैसा होगा. मेरी राय में इस मामले को और ज्यादा तूल नहीं दिया जाना चाहिए. जो भी कुछ गलतफहमी बनी है उसे समाप्त कर देना चाहिए. कानूनी दांव-पेंच से आज तक किसी लड़ाई का फैसला नहीं हुआ है, उलटे बर्बाद होने के ही सिर्फ उदहारण मिले हैं. एक आख़िरी अपील है कि ऋतिक स्त्रियों का सम्मान करनी सीख लें. इसी में उनकी भलाई है और हारी हुई लड़ाई को जीतने का सुख भी है.
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