कान्हा का धाम

प्रीति सुराना
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ मां का नाम न होता,..
अमृत मंथन से निकली गौ माते,
धर्मशास्त्र हैं यह बात बताते।
पूजी जाती है गाय युगों से,
संस्कृति यही भारत की सदियों से।
धर्म में भी ऐसा काम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ मां का नाम न होता,..
दूध दही घी माखन खाते हैं,
गोबर से आंगन लिपवाते हैं।
गौमूत्रजनित बनती औषधियां,
गोधन से सजती कृषि की दुनियां।
गोलोचन का भी काम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ मां का नाम न होता,..
मूक हमारी गौ मां रहती है,
जाने पीड़ा कैसे सहती है
पैसे की खातिर काटी जाती,
कितने टुकड़ों में बांटी जाती।
पशुधन का कोई दाम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ मां का नाम न होता,..
आओ हम सब प्रण यह अब धारें,
गौवध रोकेंगे  मिलकर सारे ।
मजहब में दुनिया को क्यूं बांटे,
दोषी वो जो गौ मां को काटें।
बदनाम खुदा या राम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ मां का नाम न होता,….

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