करवा चौथ

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 परमजीत कलेर

भारत मेलों और त्यौहारों की धरती है …नए साल की शुरूआत क्या होती है…..शुरू हो जाता है त्यौहार मनाने का सिलसिला …साल में कोई भी ऐसा दिन नहीं आता जिस में कोई त्यौहार न आता…ये त्यौहार ही है जो आपसी गिले शिकवे दूर कर…आपसी भाईचारे…को बढ़ाता है…पति – पत्नी का रिश्ता जो जुड़ा है… आपसी स्नेह और विश्वास पर …आप सोच रहें होंगे कि हम पति पत्नी की बातें क्यों कर रहें है तो भई बात ही कुछ ऐसी है …जी हां आज है भावनाओं का पर्व यानि कि करवाचौथ…जिसका इंतजार सुहागिन औरतें बड़ी बेसब्री से करती है…भारत का समाज जो बंधा है परम्परा और मान्यताओं के धागे से …एक ऐसा समाज जिसमें अहमीयत रखते हैं संबंध … संबंधों के बिना तो हमारे जीवन की गाड़ी ही नहीं चल पाती …कुछ ऐसे त्यौहार है जो आपसी सम्बंधों और भावनाओं को और मजबूत करते हैं…जी हां पति पत्नी का रिश्ता ही ले लीजिए जो है एक गाड़ी के दो पहिओं के समान हैं जिनका एक दूसरे के बिना रह पाना बड़ा ही मुश्किल है…ये रिश्ता चलता है जीवन भर …वहीं इन रिश्तों को मजबूत करने में त्यौहार अहम भूमिका अदा करते है… ऐसे ही प्यार और सद्भावना का पर्व है करवाचौथ …जिसका इंतजार औरतें बड़ी ही बेसब्री से करती हैं…अपने पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थय की कामना करती हुई औरतें निर्जल व्रत रखती हैं।रात को चांद के दीदार होने के बाद ही… अपने पति के हाथ से व्रत खुलवाती हैं।

करवा चौथ जो हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है…जिसे पूरे भारत की महिलाएं बड़ी ही शिद्दत से मनाती हैं…ये त्यौहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है…इस व्रत को हर सुहागिन महिलाएं रखती है…वो चाहे ग्रामीण महिला हो या शहर की औरतें…हर औरत अपने पति की लम्बी आयु और खुशहाली की कामना करती हुई…इस व्रत को बड़ी ही श्रद्धा और उत्साह के साथ रखती हैं…हर त्यौहार मनाने के पीछे जुड़ी होती है प्राचीन कथा …करवा चौथ के पीछे भी जुड़ी है कई कथाएं..कहा जाता है कि एक राजा की एक बेटी और सात बेटे थे …जब उसने अपना पहला व्रत रखा तो वो मायके आ गई कहते हैं …उसने पहला व्रत मायके में रखा…अपनी बहन को सातों भाई बहुत ही प्यार करते थे…वो अपनी बहन को खाना खिला कर ही खुद खाना खाते थे…जब व्रत के दौरान अपनी बहन को भूख से व्याकुल होते देखा तो उनसे रहा नहीं गया और अपनी बहन को झूठा चांद दिखा कर बहन को भोजन खिला दिया…इसी दौरान वो कशीदाकारी करती रही…मगर जब वो ससुराल में गई तो वो अपने पति के शरीर पर सुईयां चुभी देखकर हैरान हो गई…उसने इसका कारण पूछा तो उसके पति ने कहा कि तुमने व्रत के दौरान कशीदाकारी करती रही ये उसी का ही नतीजा है …ये सारी सुईयां मुझे चुभती रही हैं …उसे अपने पति के शरीर में धसी सुईयों को निकालने में पूरा एक साल बीत जाता है इस दौरान दूसरा करवा चौथ आ जाता है …जब वो अपने पति के शरीर से सुईयां निकाल रही होती है तो इसी मौके पर करवा बेचने वाला आता है वो अपने पति के पास नौकरानी को छोड़कर खुद करवा लेने चली जाती है…राजा के शरीर पर जो चार पांच सुईयां रहती है वो नौकरानी निकाल देती है ..इस तरह राजा नौकरानी को अपनी पत्नी और अपनी पत्नी को नौकरानी समझने लगता है…एक दिन राजा घर से बाहर सामान लेने जाता है वो अपनी पत्नी जो नौकरानी होती और जो नौकरानी से रानी बनी होती है उससे कहता है कि आपने कुछ मंगवाना है तो जो नौकरानी से रानी बनी होती है वो राजा से अपने श्रृंगार का सामान मंगवाती है मगर जो रानी से नौकरानी बनी होती है वो राजा से मंगवाती है काठ गुड़िया …वो हमेशा उस गुड़िया से खेलती रहती है और गुड़िया से खेलती हुई कहती है ….

महारानी थी वो गोली हुई

गोली थी वो महारानी हुई

राजा जब महारानी से नौकरानी बनी अपनी पत्नी से ये गीत सुनता है…तो इसका मतलब पूछता है तो महारानी राजा को सारी बात बताती हुई कहती है कि वो कैसे महारानी से नौकरानी बनी…फिर राजा उसे कहता है…

गोली थी वो गोली हुई

महारानी थी वो महारानी हुई

इस तरह राजा को सारी असलीयत पता चलती है इसलिए पंजाब , हरियाणा , हिमाचल , उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को मनाती हुई ये गीत गाती है…

लै करवड़ा वटाइया

जीवन्दा झोली पाइया

कत्ती न अटेरी न घुम चरखड़ा फेरी न

वाण पैर पाई न

सुतड़ा जगाई न

सुई च धागा पाई न

रूठड़ा मनाई न

करवा चौथ का व्रत जो कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ऱखा जाता है…ये व्रत उत्तरप्रदेश, पंजाब हरियाणा, राजस्थान , मध्यप्रदेश में महिलाएं बड़े ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाती है…सुबह प्रात काल उठकर ही महिलाएं शिव पार्वती की पूजा करती है और कोरे करवे में पानी भर कर…पूजा की जाती है… वैसे भी हमारे पुराणों के अनुसार भगवान शिव और पार्वती की पूजा करने से परिवार में सुख शान्ति बनी ही रहती है … इस दिन महिलाएं कोई भी काम नहीं करती जैसे सिलने पिरोने का कोई काम नहीं करती … इस दिन तो महिलाएं सुई तक को भी नहीं छूती ,लोहे की किसी चीज़ को हाथ भी नहीं लगाया जाता और न ही चाकू से किसी सब्जी वगैरहा को भी नहीं काटा जाता…इस दिन ऐसा कोई भी काम करना अशुभ माना जाता है…इसलिए तो औरतें गाती हुई कहती हैं….

कत्ती न अटेरी न

घुम्म चरखड़ा फेरी न

वाण पैर पाई न सुतड़ा जगाई न

रूठड़ा मनाई न

करवा चौथ का व्रत हो और महिलाएं सजे संवरे न ये तो हो ही नहीं सकता…इस दिन हर औरत नई नवेली दुल्हन की तरह तैयार होती है वो नए कपड़े तो पहनती ही है वहीं वो अपने आपको सजाने के लिए कोई भी कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहती वो चाहती हैं कि सिर्फ हर कोई उनकी और ही देखे अपने आपको सजाने के लिए वो बयूटी पार्लर का भी सहारा लेती हैं… यही नहीं वो अपने हाथों और पैरों को सजाने के लिए मेहंदी रचाती हैं पिया के नाम की…महिलाएं पूरा दिन निर्जल व्रत रखती हैं और सुबह चार बजे उठकर सरगी खाती है इसमें होती हैं मीठी सेवियां, ड्राई फ्रूट , पनीर के परांठे होते हैं वो इसे सुबह चार बजे खा लेती है इसके बाद सारा दिन कुछ नहीं खाती । जिन लड़कियों का पहला करवा होता है …उन्हें सरगी सास ही देती है ।करवाचौथ का व्रत सुहागिनें अपने पति की लम्बी आयु के लिए रखती है वहीं कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को रखने में पीछे नहीं रहना चाहती मन चाहा वर पाने के लिए वो भी व्रत रखती हैं…आखिर हर लड़की की ख्वाहिश होती है कि उसे बेहद प्यार करने वाला पति मिले…शास्त्रों में इस व्रत को अहम महत्व दिया गया है…इस व्रत के बारे में तो यहां तक लिखा है कि इस व्रत के समान तो कोई सौभाग्यदायक व्रत है ही नहीं है… इस व्रत का विधान भी बड़ा ही प्रचीन है…कहा तो ये भी जाता है कि इस व्रत को पांडवों की पत्नी द्रोपदी ने भी रखा था…इस व्रत के देवता चन्द्रमा माने गए हैं….इसके पीछे भी एक प्रचीन कथा है कहते है जब अर्जुन तप करने के नीलगिरी पर्वत पर चले गए थे तो द्रौपदी बड़ी परेशान हो गई तब कृष्ण महाराज ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने और चांद की पूजा करने की सलाह दी थी…कृष्ण जी ने गीता में इस ऋतु को सबसे श्रेष्ठ ऋतु बताया है …वहीं जाता है कि इस ऋतु में किसी भी तरह का संकल्प पूरा हो जाता है ।

करवा चौथ का व्रत वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है …इससे पति पत्नी का जीवन सफल और खुशहाल बनता ही वहीं इससे जुड़ी होती हैं भावनाएं…पति की लम्बी आयु की कामना करती हुई औरतें ये व्रत रखती है भगवान से यही गुजारिश करती है कि उनका पति हमेशा खुशहाल जीवन जिए और अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूजा अर्चना करती हैं …पूरा दिन व्रत रखने के बाद शाम को बारी आती है पूजा करने की यानि कि थाली बटाने की रस्म की और कथा सुनने की …सभी सौभाग्यवती स्त्रियां एक गोल दायरे में बैठ जाती है और एक दूसरे से थाली बंटाती है और गाती हुई कहती हैं ….

लै सर्व सुहागिन कर्वड़ा

लै करवड़ा वटाईया

जीवन्दा झोली पाईया

कत्ती न अटेरी न

घुम चरखड़ा फेरी न

वाण पैर पाई न

सुई च धागा पाई न

सुतड़ा जगाई न

रूठड़ा मनाई न

वो छ बार इस करवे को बटाती हुई यही दोहराती है मगर जब वे सांतवी बार थाली बटाती है तो वे कहती हैं

करवड़ा वटाईया

जीवन्दा झोली पाईया

कत्त लेआ अटेर लेआ

घुम चरखड़ा फेर लिया

वाण पैर पा लिया

रूठड़ा मना लिया

लै लै वीरो कुड़ियों करवड़ा

करवे के ऊपर 13 बिंदी रखी जाती हैं और साथ ही गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनी जाती है…कथा सुनने के बाद करवा हाथ में घुमाकर अपनी सासू मां के पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लें…सास बहु के बीच प्रेम को बढ़ाने में बायने का अहम महत्व है सास को हमेशा ही बहू से मिलने वाले बायने का इंतजार रहता है…बायना मिलने पर सास बहु के गिले शिकवे दूर होते हैं…बायना में सासू मां के कपड़े और मिठाईयां होती हैं अगर घर में सास न हो तो ये बायना किसी बजुर्ग महिला को दे देकर सुहागिने आशीर्वाद लेती हैं… बायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लेकर करवे में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का भूरा भर दें और इसके ऊपर दक्षिणा भी रखें…रोली से करवे पर स्वस्तिक बना कर गौरी गणेश की पूजा करते हुए अपने पति की लम्बी आयु की कामना करें…चांद दिखने पर छलनी की ओट चांद को देखकर चन्द्रमा को अर्घ्य देती हुई गाती हैं …

सिर धड़ी पैर कड़ी

अर्घ्य देंदी सर्व सुहागन

चौबारे चढ़ी

…इसके बाद पति परमेश्वर का आशीर्वाद लेती हैं …पति देव को भोजन करा कर वो खुद भोजन करती हैं ..करवा पूजन के बाद आस पड़ोस की औरतों को करवे की बधाई देती हैं ।

त्यौहारों पर भी बाजारी रंग चढ़ता जा रहा है करवा चौथ भी इससे अछूता नहीं है…करवा चौथ मनाने के तरीके में तो बदलाव आ ही रहा हैं…ये व्रत अब केवल लोक परम्परा न रहकर बन गया है …भावनाओं के आदान प्रदान का पर्व…।शादीशुदा जीवन को सफल बनाने के लिए करवा चौथ अहम भूमिका अदा करता है …पति की लम्बी आयु और सुखी जीवन की कामना करती हुई महिलाएं व्रत रखती हैं…पहले क्या होता था औरतें सारा दिन कुछ भी खाती नहीं थी उनका ध्यान भूख की और न जाए इसके लिए सारा दिन नाचती गाती रहती थी और सारा दिन हसते खेलती बताती थी…अब वो गाने बजाने की बजाए टी वी देखकर अपना समय बताती है पहले औरतें अपना श्रृंगार गहनों के साथ करती थी और अब वे खुद को सजाने के लिए ब्यूटी पार्लर का सहारा लेती हैं यहीं नहीं वो अपने हाथों पैरों को सजाने संवारने के लिए बाजार का रूख करती हैं और कलाईयों को सजाने के लिए वो रंग बिरंगी चूड़िया तो पहनती ही हैं वहीं अपने हाथों पैरों पर महंदी रचाती हैं…बाजारों में तो औरतें की लाईनें लग जाती हैं वो पति के प्रति सपर्पण का प्रतीक रहा करवा चौथ..अब ये पर्व प्यार के इजहार का दिन भर कर रह गया है… वैवाहिक जीवन को खुशहाल और सफल बनाने के लिए व्रत अहम भूमिका अदा करता है…करवा चौथ का व्रत केवल व्रत न रहकर बन गया है भावनाओं को आदान प्रदान करने का पर्व… तारों की छांव में चांद देखने के बाद पत्नियां अपने पति के साथ घर में खाना खाने की बजाए …बाहर रेस्टोरेंट में खाने को तरजीह देती हैं…वही पति पत्नी इस दिन एक दूसरे को गिफट भी देते हैं…इन त्यौहारों में आ गया है बनावटीपन ,मगर जो भी हो व्रत में आधुनिकता रंग चढ़ता नज़र आ रहा है …भई इसे समय का बदलाव न कहे तो और क्या कहें। बेशक करवा चौथ त्यौहार मनाने में परिवर्तन आ गया है … मगर फिर भी महिलाएं इसे बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं ।

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