जिहादी जनून से जलता कश्मीर

क्या यह उचित है कि दुश्मन के छदम युद्धों का सिलसिला बना रहें और हम उसे कायराना हमला कहकर निंदा करके अपने दायित्वों से भागते रहें ? यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि शनिवार 10 फरवरी को सुबह जम्मू में सेना की सुंजवां ब्रिगेड पर हुए जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों के हमले को अभी नियंत्रित भी नही कर पाये थे कि सोमवार 12 फरवरी सुबह ही श्रीनगर में सीआरपीएफ की 23 वी वाहिनी के मुख्यालय पर लश्करे-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने भी ऐसा ही असफल प्रयास किया। यह दोनों आतंकी घटनायें हमारी सेना व सुरक्षाबलों की जान-माल को भारी क्षति पहुचानें के लिए की गई और ये आतंकवादी  शनिवार से मंगलवार दोपहर तक हमारी सुरक्षा व्यवस्था की चूकों का लाभ उठाते रहें ।
आज देश का प्रत्येक नागरिक पाकिस्तानियों व उनके रहस्यमय दूतों के आक्रमणों से अत्यधिक दुखी हैं। पिछले कुछ वर्षों से तो ये जिहादी हमारे सैन्य व पुलिस ठिकानों को लक्ष्य बना कर निसंकोच हानि पहुचा रहें है। जैसा कि पिछले 2-3 वर्षो में मुख्य रुप से  दीनानगर थाना, गुरदासपुर (27 जुलाई 2015 ), बीएसएफ  के  काफिले,  उधमपुर (5 अगस्त 2015) ,पठानकोट एयरबेस (3 जनवरी 2016) , उरी सेना ब्रिगेड मुख्यालय ( 18 सितंबर 2016 ) , जम्मू के नगरोटा सैन्य कैम्प व रामगढ़ में बीएसएफ (29 नवम्बर 2016) में हुए आक्रमणों के अतिरिक्त  लगभग दिनप्रतिदिन इन क्षेत्रों में होने वाली अन्य आतंकी गतिविधियां आदि इसके प्रमाण हैं। इसके अतिरिक्त सीमाओं पर प्रति वर्ष सैकड़ो बार होने वाला युद्धविराम उल्लंघन एवं आतंकवादियों की घुसपैठ भी हमको शर्मसार करती आ रही हैं।भारत जैसे शक्तिशाली राष्ट्र का मुकुट  जम्मू – कश्मीर कब तक जिहादी जनून से जलता रहेगा ?
विचार करना होगा कि 29 सितंबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक द्वारा शत्रुओं के लांचिंग पैडो पर अपनी अद्भूत साहसिक रणनीति का परिचय देने वाले हमारे शूरवीर सैनिक अब कब तक धैर्य रखेंगे ? आज सर्जिकल स्ट्राइक के 16 माह पश्चात भी पाकिस्तानी सेना व उसके आतंकियों में भारतीय सेना की इस आक्रामक नीति का कोई भय नही , तभी तो वे बार बार हमारे क्षेत्रों में अकारण आक्रमण करते रहने की अपनी जिहादी नीतियों में कोई परिवर्तन नही कर रहें हैं । ‎ऐसी स्थिति में जब हमारे सैनिक व आम नागरिक शत्रुओं की कुटिल चालों से बलिदान हुए जा रहें हैं तो इन दुश्मनों से प्रतिशोध लेने के लिए कोई आक्रामक नीति तो हमें पुनः अपनानी ही चाहिये ? हम पाकिस्तानी सेना व आईएसआई के षड्यंत्रों और हाफिज सईद व अजहर मसूद आदि आतंक़ियों के मुखियाओं के जिहादी संकल्प को क्यों नही समझना चाहते ?  क्या जिहादियों के जनून को नष्ट करें बिना राष्ट्र रक्षा हो पायेगी ?
वह अपनी कुटिल रणनीति में सफल हो कर बार बार हमें क्षतिग्रस्त कर रहें है फिर भी हम अपनी सुरक्षा में हो रही कमियों व अन्य संदेहात्मक तत्वों की सच्चाई को समझना ही नहीं चाहते।सेना के शिविरों और सीमाओं पर बार बार होने वाले आतंकी हमलों के पीछे छुपे देशद्रोही भेदियों व उनके साथियों को भी को ढूंढना होगा, क्योंकि बिना किसी गुप्त सूचनाओं के कोई बाहरी शत्रु व घुसपैठिये इतना दुःसाहस नहीं कर सकता कि वह सेनाओं के सतर्क व अतिसुरक्षित क्षेत्रों को ही निशाना बनाने में सफल हो जायें।हमें यह नहीं भुलना चाहिये कि अनेक अवसरों पर पाकिस्तान व आतंकी संगठनों के स्थानीय सम्पर्को को पकड़ा जाता आया है ।
हमें हमारी सेनाओं व सुरक्षाबलों की सजगता, सतर्कता व कर्तव्यपरायणता के प्रति कोई संदेह नही फिर भी क्या कारण हैं कि हमको बार बार जिहादियों का शिकार बनना पड़ता हैं ? क्या हम ऐसी आत्मघाती परिस्थितियों को अपनी सीमाओं व सीमांत क्षेत्रों में योंही झेलते रहें ? ऐसी संकटकालीन स्थिति में हमारी सुरक्षा व्यवस्था की त्रुटियों का विश्लेषण अवश्य होता होगा और उसके उपाय भी विशेषज्ञों द्वारा सुझाये जाते होंगे फिर भी हम आहत होते रहें तो क्या इस पर राष्ट्रीय चिंतन नही होना चाहिये ? अब और अधिक धैर्य व संयम युद्धकालीन रणनीतिक कौशल के अभाव का नकारात्मक संकेत देगा ? आज
श्री नरेंद्र मोदी जी जैसे प्रखर राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री के होने से देश की वैश्विक स्थिति अत्यधिक सकारात्मक व सहयोगात्मक हो रही हैं तो क्यों न हमें कम से कम अपने जन्मजात शत्रु पाकिस्तान से सभी राजनैतिक , व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धो को तोड़ने का विकल्प तो अपनाना ही चाहिये ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here