काटजू की देशद्रोही मानसिकता


उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री मार्कंडेय काटजू जिनका समाज में एक विशिष्ट स्थान है। आजकल वे जिस प्रकार के वक्तव्य दे रहे है उनसे तो ऐसा लगता है कि श्री काटजू का प्रेम देश व समाज से न होकर, देश व समाज पर आए दिन आक्रमण करने वाले लश्कर-ए-तैयबा, हरकतुलजिहाद-ए-इस्लामी जैसे मुस्लिम आतंकी संगठनों के लोगों के प्रति अधिक है। ऐसे व्यक्ति का भारतीय प्रैस परिषद् के अध्यक्ष जैसे प्रतिष्ठित पद पर होना देश के लिए घातक है। काटजू जिस प्रकार से इस्लामी आतंकियों का पक्ष ले रहे उससे तो ऐसा लगता है कि वे सम्मानीय व वरिष्ठ नागरिक होने पर कलंक लगा रहे है।
मुम्बई में हुए नरसंहार के लिए संजय दत्त भी उतना ही जिम्मेदार है जितना कि अडरवल्र्ड डाॅन दाउद इब्राहिम। दाउद द्वारा भेजे गए हथियार जिनसे मुम्बई में इतना भयानक नरसंहार हुआ वह संजय दत्त के घर पर ही रखे गये थे। वहां से ही आतंकवादियों को गए। मुम्बई बम विस्फोटों के उपरांत भी संजय दत्त लगातार टेलीफोन द्वारा इन आतंकवादियों के सम्पर्क में था। फिर काटजू तथा उनके जैसे अन्य लोगों द्वारा संजय दत्त के लिए सजा माफी की अपील करना देशद्रोह नहीं तो और क्या है? हैदराबाद में 8 दिसम्बर 1990 का हुए साम्प्रदायिक दंगों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एसीपी श्री एन. सत्या की गोली मारकर हत्या करने वाले एक धर्मान्ध मुस्लिम पुलिस कांस्टेबल अब्दुल कादिर को छुडा़ने के लिए भी काटजू साहब प्रयत्नशील है और उन्होनें इसके लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री एन. कुमार रेड्डी को भी पत्र लिखा है। विभिन्न आतंकी कार्यों व दूसरे अपराधों में जेल में बंद मुस्लिम अपराधियों को छुडाने के लिए बनाई जा रही संस्था ‘‘दि कोर्ट आॅफ लास्ट रिसार्ट’’ के मुख्य संरक्षक पद के लिए काटजू साहब का नाम लिया जा रहा है।
श्री काटजू द्वारा बताए गए इंडियन मुजाहिद्दीन, जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), हरकतुलजिहाद-ए-इस्लामी या लश्कर-ए-तैयबा आदि संगठन मुस्लिम आतंकी संगठन ही तो है। इन संगठनों के तो नाम से ही इस्लाम की झलक मिलती है। मुजाहिद्दीन, मोहम्मद, इस्लामी, लश्कर जैसे अंलकार अपने आप ही इनके इस्लामी अर्थात् मुस्लिम होने की बात कहते है।
कश्मीर, दिल्ली, मुम्बई, जयपुर, बैंगलूर, हैदराबाद हो या देश के अन्य स्थान, चाहे मुम्बई के ताज होटल पर आतंकी हमला, संसद पर हमला, गुजरात के अक्षरधाम मंदिर, जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर हमला जिनमें हजारों सुरक्षाकर्मी तथा नागरिक मारे गए सभी हमले लश्कर-ए-तैयबा, इंडियन मुजाहिद्दीन, जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), हरकतुलजिहाद-ए-इस्माली जैसे किसी न किसी मुस्लिम संगठन ने ही किये है। फिर भी काटजू अपने मुस्लिम प्रेम के कारण पकड़े गये इन आतंकवादियों को छोडने की बात करते है।
यदि काटजू के कहे अनुसार सरकार काम करेगी तो उससे देश के सुरक्षा कर्मियों, गुप्तचर संस्थाओं का मनोबल तो टूटेगा ही साथ ही इन आतंकवादियों को पकड़ना भी असंभव हो जायेगा या ये कभी पकड़े ही नहीं जायेगे तथा इनके हमले दिनों दिन बढते चले जाएंगे। फिर देश को पाकिस्तान के Proxy war (छद्म युद्ध) से बचाना असंभव हो जायेगा। काटजू द्वारा किए जा रहे कार्यों तथा उनके वक्तव्यों से समाज उससे होने वालें भयानक परिणामों की कल्पना कर सकता है।

यति नरसिंहानन्द सरस्वती

3 COMMENTS

  1. काटजू साहेब ! यदि अभी भी आप जस्टिस के पद पर अपने को समझ रहें हो तो राजनीती के अखरे में आ जाओ न किसने रोक है पर आप देश की इतनी महत्वपूर्ण जगह पर बैंठ कर आएं है आप से इस तरह की उम्मीद नहीं थीं ! आज देश को उस विचार धरा की आवश्यकता थी जो बचपन की अठखेलियाँ करता आज नव्युआ जोप आशा लगाए बैठें है उसका क्या होगा ? आप सीधे तौर पर प्रेस का कार्य संभालें और कमेन्ट बाजी में न पड़ें ! आज जो देश की दशा है वह आप जैसे विद्वानों की ही वजह से है !क्या आप संजी का वाद अपने यहाँ से निरस्त कर देते यदि पद पर होते ? नहीं मई जनता हू न करते आप तो वाह वाही लूटना चाहते हैं !! देश रसातल में जाए , आप को इससे अधिक सरो कार नहीं है !!

  2. Markandey Katju is in his dream world and he is not fit for the any responsible work or post considering his present attitude and irresponsible outbursts against India if you care to analyse.
    I demand that his judgements as a supreme court judge must be investigated.

  3. काटजू साहब की आयु के साथ अपनी मति भी क्षरित हो गयी है.उन्हें अब यह कयास हो गया है की वे इससे सेक्युलर नेता के रूप में उभर कर अपनी अन्य उच्च महत्वांकंशाओ को पूरा कर लेंगे. कांग्रेस का हाथ उनके सर पर है ही, कोई अचरज नहीं कि वे कुछ समय बाद इस्तीफा देकर ,चुनाव में ताल ठोंकने के लिए आ खड़े हों.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here