केदारनाथ फिल्मः विरोध जारी है जारी रहेगा

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प्रदीप रावत
आगामी 7 दिसम्बर को रिलीज होने वाली केदारनाथ फिल्म का पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। स्थानीय केदारघाटी के निवासियों के अलावा कई लोग इस फिल्म को बैन करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन यह पहली बार नहीं है, जब किसी विवाद के कारण फिल्म को बैन करने की बात की गई हो। बॉलीवुड की फिल्मों को अक्सर विवादों में रहने की आदत हो गई है, वह इसलिए क्योंकि इन विवादों से ही उनकी फ़िल्म को अच्छी खासी पहचान मिल जाती है। फ़िल्म निर्माता अच्छी तरह जानते हैं कि फ़िल्म के विवादित हो जाने से लोगों में फ़िल्म देखने का उत्सुकुता और अधिक बढ़ जाती है। इसलिए इन निर्माताओं ने फिल्मों में धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर कमाई बटोरने का नया जरिया ढूंढ लिया है। बॉलीवुड को तो हिंदुओं की भावनाओं से खिलवाड़ करने में महारथ हासिल है ही, लेकिन अब यही बॉलीवुड देवभूमि उत्तराखंड के देवस्थलों की पवित्रता को भी भंग करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। बॉलीवुड के इन फ़िल्म निर्माताओं को न तो यहां की खूबसूरती नजर आती है और न ही उन्हें यह ज्ञात है कि इसे देवभूमि क्यों कहा जाता है। इतना ही नहीं इन्हें यह भी पता नहीं है कि हिंदुओ के लिए यहाँ के धार्मिक स्थलों की अहमियत क्या  है? लेकिन यह भी एक विडंबना ही है कि सुदूरवर्ती सात समंदर पार हॉलीवुड फ़िल्म उद्योग के लोगों ने इस देवभूमि की पवित्रता यहां की संस्कृति, परम्पराएं रीति रिवाजों की अहमियत जानकर इनसे जुडे विषयों पर ‘‘देवभूमि‘‘ नामक एक फिल्म बनाई है। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता एवं यहां के पवित्र स्थलों पर केंद्रित यह फ़िल्म अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार जीत चुकी है। स्रोत (दैनिक जागरण) वहीं दूसरी तरफ हमारे देश का फ़िल्म उद्योग बॉलीवुड देवभूमि की अहमियत को किनारे रखकर अपनी फ़िल्म की लोकप्रियता एवं पैसे बटोरने का जरिया ढूंढ रहा है। केदारनाथ फ़िल्म का जिस तरह से टीज़र आया वह चौंकाने वाला है। आखिर कब तक हिंदू धर्म के आस्था एवं धार्मिक केंद्रों को निशाना बनाकर उनका अपमान किया जाता रहेगा घ् क्या फ़िल्म निर्माता या निर्देशक की यह नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह इस प्रकार फिल्मों का निर्माण लोगों की भावनाओं एवं धार्मिक आस्थाओं को ध्यान में रखकर करें। आखिर ऐसी फिल्मों को सेंसर बोर्ड मंजूरी ही क्यों प्रदान करता है जिससे पूरे देश में दंगे एवं विरोध प्रदर्शन होते हैं। विवादित फिल्मों के क्रम में हद तो तब हो गई जब केदारनाथ मूवी का टीज़र रिलीज हुआ। जो उत्साह  केदारनाथ मूवी को लेकर था वह उत्साह टीज़र देखने के बाद अब विरोध प्रदर्शन में बदल चुका है। वर्ष 2013 की भीषण आपदा के जो लोग चश्मदीद गवाह थे, जिन्होंने उस भीषण आपदा का मंजर अपनी आखों के सामने देखा था, जिस आपदा के वे भुक्तभोगी थे, वे लोग इस सोच एवं आशा के साथ फिल्म का काफी लम्बे समय से इंतजार कर रहे थे, कि “केदारनाथ“ फ़िल्म 2013 में केदारनाथ में आई उस त्रासदी को परदे पर उकेरेगी, जिसने हजारों श्रद्धालुओं को काल का ग्रास बनाया था। लेकिन फ़िल्म का पहला लुक और टीजर चौंकाने वाला है। लोगों का मानना है कि फ़िल्म के टीज़र को देखकर फ़िल्म बनाने का उद्देश्य केदारनाथ त्रासदी को दिखाना था, या लव मिस्ट्री समझ से परे है। आस्था एवं केदारनाथ त्रासदी को आड़ में रखकर हिन्दुओं की भावनाओं से केवल खिलवाड़ किया गया है।  केदारनाथ फिल्म में मनगढ़ंत हिन्दू मुस्लिम की प्रेम कहानी व लब जिहाद को बढ़ावा देने जैसे दृश्यों को फिल्माने से साफ जाहिर होता है कि आज का सिनेमा समाज में चल रही घटनाओं का वास्तविक आईना कभी प्रस्तुत नहीं करना चाहता है। इस फ़िल्म के टीज़र को देखकर साफ पता चल रहा है की फ़िल्म निर्माता ने वर्ष 2013 की उस भीषण आपदा का अच्छा मजाक उड़ाया है। यदि केदारनाथ आपदा की पृष्ठभूमि पर फ़िल्म बनानी ही थी तो बेहतर होता स्थानीय नागरिकों से पूछकर उनकी सच्ची घटनाओं एवं उनके द्वारा आपदा के दौरान किये गए संघर्षो को फिल्माया जा सकता था। वैसे भी केदारनाथ हमारी संस्कृति की मूल अवधारणा को प्रदर्शित करने वाला और करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का विषय है, न कि मनोरंजन का, जो केदारनाथ के नाम से प्रेम कहानी को फिल्माया जाय। हिमालय में अवस्थित उस पवित्र धाम की पवित्रता से खिलवाड़ जहाँ लोग मोक्ष की प्राप्ति के लिए जाते हों। उस पवित्र धाम की पवित्रता से खिलवाड़ कोई भी हिन्दू बर्दाश्त नहीं करेगा। एक ओर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी केदारनाथ की पौराणिकता एवं पवित्रता को बनाए रखते हुए भव्य केदारपुरी बनाने के लिए प्रयासरत हैं, वही दूसरी तरफ मुंबई में बैठे कुछ लोग इसकी पवित्रता को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक बार फिर केदारनाथ इस फिल्म को लेकर पूरे देश में चर्चाओं में है। अगर यह फिल्म उत्तराखण्ड में रीलीज होती है तो यह सभी हिन्दुओं की आस्था पर आघात लगाने जैसा होगा, इसलिए सेंसर बोर्ड को हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुये इस फिल्म पर बैन लगाना चाहिए तथा आगे से भी फिल्म निर्माताओं को सख्त हिदायत देनी चाहिये कि वो इस प्रकार की फिल्मों का निर्माण न करें।

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