दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लाल-पीले होने पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। पहली बात तो यह कि केंद्रीय जांच ब्यूरो ने जो छापा मारा, उसका मुख्यमंत्री से कोई लेना-देना नहीं है। न तो मुख्यमंत्री पर कोई आरोप हैं और न ही उनकी कोई जांच हो रही है। छापा पड़ा है, सिर्फ उनके प्रधान सचिव राजेंद्रकुमार के दफ्तर पर। उसका दफ्तर और मुख्यमंत्री का दफ्तर एक ही मंजिल पर है, इसलिए यह गलतफहमी हो जाना आसान है कि छापा केजरीवाल के दफ्तर पर पड़ा है। गेहूं के साथ-साथ कभी-कभी घुन भी पिस जाता है।
अगर केजरीवाल के दफ्तर में ही छापा पड़ा होता तो उनके घर पर भी क्यों न पड़ा, जैसे कि राजेंद्र के घर पर पड़ा। राजेंद्र के खिलाफ पिछले पांच माह से जांच चल रही है और जांच ब्यूरो का कहना है कि वे उसके साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं। अदालत के निर्देश के मुताबिक ही ब्यूरो ने छापे मारे हैं। राजेंद्र और उनके साथियों के यहां से 16 लाख रु. नकद मिले हैं, जिनमें से राजेंद्र के दफ्तर से ढाई लाख और घर से तीन लाख रु. की विदेशी मुद्रा भी मिली है।
राजेंद्र पर आरोप है कि पिछले कुछ वर्षों में कुछ कंपनियों को गैर-कानूनी तौर पर फायदे पहुंचाकर उसने मोटी रिश्वतें खाई हैं। क्या केजरीवाल से ये सभी तथ्य छिपे रहे हैं? यदि हां तो मैं उनसे पूछता हूं कि वे कैसे मुख्यमंत्री हैं? उन्हें उनकी नाक के नीचे बैठा हुआ हाथी नहीं दीख रहा है? केजरीवाल को तो खुश होना चाहिए था कि उनके जैसे एक ईमानदार मुख्यमंत्री का एक विवादित अफसर से पिंड छूट रहा है। लेकिन हमारे नौटंकीप्रिय मित्र ने तुरंत शीर्षासन कर दिया। चिल्लाना शुरु कर दिया कि मुख्यमंत्री पर केंद्र सरकार ने छापा मार दिया। मोदी ‘कायर और विक्षिप्त’ है।
अरविंद की अंग्रेजी भी माशाअल्लाह है। मोदी के लिए उन्होंने ‘कावर्ड’ और ‘साइकोपेथ’ शब्दों का इस्तेमाल किया है। इसी तरह सोनियाजी के दरबारियों ने इसे ‘संघवाद’ की हत्या बताया है। उनका आरोप है कि केंद्र सरकार जैसे ‘नेशनल हेरल्ड’ के मामले में मां-बेटे को फंसा रही है, वैसे ही वह केजरीवाल से भी निपट रही है। इससे बढ़कर कमजोर तर्क क्या हो सकता है? यदि यह छापा केजरीवाल या मनीष सिसोदिया के घर पर भी पड़ता तो और अच्छा होता। ये दोनों युवा-नेता बेदाग निकलते और इनकी छवि दिन दूनी, रात चैगुनी चमक जाती। अफसोस है कि इधर सेंत-मेंत में मिली देश और दिल्ली की सत्ता को अनुभवहीन नेता सेंत-मेंत में ही गंवाते जा रहे हैं।
डाक्टर साहब लगता है आप यहाँ थोड़ा गलत हैं अगर .मान लिया जाये कि छापा उनके मुख्य सचिव के दफ्तर में ही पड़ा,तो क्या इसके लिए मुख्य मंत्री को सूचना नहीं देनी चाहिए थी?अगर केश पुराना था,तो नए दफ्तर में छापा मारने का मतलब? फिर बात आती है १६ लाख के सम्पति की,तो क्या एक आई.ए,एस. अफसर के पास छब्बीस वर्ष की नौकरी के बाद उतनी सम्पति भी जायज तरीके से नहीं हो सकती? शायद नगद दो लाख और विदेशी मुद्रा में तीन लाख मिले हैं.अगर कुमार का कोई लड़का या लड़की अमेरिका में रहता है,तो इतनी विदेशी मुद्रा($४५००) का उनके घर में पाया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.हो सकता है कि उनके पास इसका प्रमाण भी हो.घर में दो लाख नगद को पता नहीं आपलोग किस रूप में लेंगे?
पर निम्न दो लिंकों से तो यह पता लगता है कि, मामला उतना सरल नहीं है:
1.https://www.sanjeevnitoday.com/…/AK-broke-the-sil…/18-12-2015
2.https://m.khabar.ibnlive.com/news/politics/bjp-requested-to-kirti-azad-for-any-comments-in-ddca-matter-435684.html