केरल तेजी से पाकिस्तान बनता जा रहा है

0
353

तुफैल अहमद

दो अक्टूबर को केरल में इस्लामिक स्टेट यानी आइएस से संबद्ध छह मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया। वे भारत में हमला करने की योजना बना रहे थे। वे युवा आइएसआइएस के वृहत नेटवर्क का हिस्सा थे। सुरक्षा अधिकारी केरल के कन्नूर, कोझिकोड और मल्लपुरम सहित तमिलनाडु के चेन्नई और कोयंबटूर में कुछ और संदिग्ध आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए जांच पड़ताल कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गिरफ्तार किए गए युवा इस्लामिक स्टेट से जुड़ने के लिए जून में ही भारत छोड़ अफगानिस्तान और सीरिया जा चुके केरल के करीब दो दर्जन मुस्लिमों के संपर्क में थे। सुरक्षा एजेंसियों ने राज्य सरकार को आगाह किया है कि आइएस से जुड़े आतंकि उच्च न्यायालय के दो जजों और कुछ राजनेताओं को निशाना बना सकते हैं।
ऐसा तर्क दिया जाता है कि केरल का इस्लाम अमनपसंद है, क्योंकि यह खुद पैगंबर मुहम्मद के समय में मुस्लिम कारोबारियों द्वारा समुद्र के रास्ते लाया गया था, जबकि उत्तर भारत में इस्लाम मुस्लिम हमलावरों द्वारा लाया गया था। यह तर्क उन लोगों द्वारा दिया जाता है जो कहते हैं कि केरल के युवाओं का धर्म और कट्टरता से कोई संबंध नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि अरब से केरल सबसे पहले मुस्लिम नहीं आए थे। इस्लाम के जन्म के बहुत पहले वहां समुद्र के रास्ते व्यापार के उद्देश्य से यहूदी और ईसाई आए थे। दिलचस्प है कि यहूदियों की आबादी नहीं बढ़ी, लेकिन बाद में केरल में ईसाइयों और मुस्लिमों की आबादी काफी हद तक बढ़ी और वे प्रभावशाली हो गए।
कुरान में दो तरह की आयतें हैं। आयतों का पहला सेट तब प्रकट हुआ जब पैगंबर मुहम्मद मक्का में थे। इसे मक्का काल कहा जाता है। इस दौरान मुस्लिमों की संख्या बहुत कम थी। वे अल्पसंख्यक थे। इन मुस्लिमों ने इस्लाम का शांतिपूर्वक प्रचार किया। मक्का काल में प्रकट हुई आयतें शांति, प्रेम और भाईचारे का पाठ पढ़ाती हैं। बाद में पैगंबर मदीना चले गए जहां उन्होंने मुस्लिमों के लिए पहला इस्लामिक स्टेट स्थापित किया। ऐसा दूसरा इस्लामिक स्टेट 1947 में पाकिस्तान में स्थापित हुआ था। मदीना काल के दौरान पैगंबर मुहम्मद ने कई युद्धों का नेतृत्व किया और मुस्लिमों ने सीरिया जा रहे गैर मुस्लिमों पर धावा बोला। मक्का काल के विपरीत मदीना काल शांतिमय नहीं है। मदीना में प्रकट हुईं कुरान की आयतें हमें बताती हैं कि कैसे युद्ध की तैयारी करें तथा लड़ें और कैसे इस्लाम के दुश्मनों को अपने वश में करें। इस्लाम में स्वर्ग के लिए दो तरह की आध्यात्मिक प्रार्थनाएं हैं। पहली मृत्यु के बाद जीवन के लिए मुस्लिमों को जीने के लिए प्रेरित करती है, जबकि दूसरी मुस्लिमों को गैर मुस्लिम धरती से इस्लामिक नेताओं के शासन वाले राज्यों यानी दार-उल-इस्लाम (इस्लाम का घर) में जाकर बसने के लिए प्रेरित करती है।
केरल में हाल के वर्षों में मुस्लिमों में दो तरह के पलायन देखे गए हैं। इसमें से एक पलायन दो दर्जन मुस्लिम युवकों के अफगानिस्तान और सीरिया जाकर आइएसआइएस में शामिल होने के बाद जुलाई में सामने आया। इन लोगों में दो इंजीनियर, एक डेंटिस्ट, एक डॉक्टर, दो गर्भवती महिलाएं, एक शिक्षक, एक बीटेक स्नातक, एक कॉमर्स स्नातक आदि थे। उन्होंने भारत इसलिए छोड़ा, क्योंकि वे इस्लामिक स्टेट से जुड़ना चाहते थे। लेकिन इसके पहले भी केरल से मुस्लिमों का पलायन शुद्ध रूप से आध्यात्मिक कारणों से हुआ था। हाल के दशकों में केरल के कई मुस्लिम धर्म की खातिर यमन चले गए, क्योंकि उनके लिए भारत एक दार-उल-इस्लाम नहीं था। उनमें से कई यमन से श्रीलंका चले गए और उन्होंने वहां कैंप स्थापित किए। फलस्वरूप केरल के मुस्लिम श्रीलंका भी गए। यमन और श्रीलंका जाने वाले केरल के मुस्लिम कट्टर धार्मिक लोग हैं, लेकिन वे आतंकवादी नहीं हैं। इन युवकों का पलायन इसलिए हुआ, क्योंकि 1900 के दशक के आसपास केरल के इस्लामिक धर्मगुरु अब्दुल खादर मौलवी मिस्न गए और वहां से इस्लाम पर आधारित किताबें और पत्रिकाएं लाकर उनका मलयालम भाषा में अनुवाद करना आरंभ किया। इसने शुद्धतावादी इस्लामी आंदोलन को जन्म दिया। आज इसका नेतृत्व केरल नदवातुल मुजाहिदीन समूह द्वारा किया जा रहा है, जो कि एक सलाफी-वहाबी संगठन है और स्वयं को इस्लामी सुधारवादी समूह की संज्ञा देता है। गैर मुस्लिम यह नहीं जानते हैं कि सभी इस्लामिक समूह जैसे कि तबलीगी, बरेलवी, तालिबान और अलकायदा भी स्वयं को सुधारवादी मानते हैं।
जब मुस्लिम व्यापारी पहली बार केरल आए तब हिंदुओं ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। वास्तव में हिंदू राजा ने मुस्लिम व्यापारियों की जमकर मेहमाननवाजी की और शुक्रवार को जन्मे कथित निम्न जाति के हिंदू मछुआरों के बच्चों को इस्लाम अपनाने का आदेश दिया। राजा को भी मुस्लिम व्यापारियों की जरूरत पड़ी, क्योंकि उन्होंने उनसे नाव चलाना सीखा। वह केरल में हिंदू-मुस्लिम संबंधों में अमन का दौर था। इसे केरल में इस्लाम का मक्का काल कहा जा सकता है। बहरहाल केरल में इस्लाम से जुड़ा पहला संघर्ष 1498 में उस समय सामने आया जब वास्को डि गामा के नेतृत्व में पुर्तगालियों का आगमन हुआ। वास्को डि गामा की टीम यूरोप से इस्लाम बनाम ईसाई का विचार लाए। हिंदुओं ने ईसाइयों के खिलाफ मुस्लिमों का साथ दिया। बाद में हैदर अली द्वारा 1771 में और उनके बेटे टीपू सुल्तान द्वारा 1789 में मालाबार पर हमले किए गए। हैदर अली और टीपू सुल्तान ने केरल में शांतिमय मक्का काल का अंत कर दिया। इस प्रकार केरल में इस्लाम का मदीना काल आरंभ हुआ। इसके बाद केरल में हिंदू-मुस्लिम संघर्ष रोजाना की बात हो गई।
आज केरल का समाज किस तरह बंट गया है, इसका एक उदाहरण देखें। पूर्व में ईद पर केरल सरकार की बसें नियमित रूप से चलती थीं, लेकिन मुस्लिम ड्राइवर ईद मनाने के लिए हिंदू ड्राइवर से अपनी ड्यूटी बदल लेते थे। इसी प्रकार ओनम पर हिंदू ड्राइवर मुस्लिम ड्राइवरों से अपनी ड्यूटी बदल लेते थे, लेकिन अब ईद के दिन मुस्लिम क्षेत्रों में सरकारी बसें नहीं चलती हैं। इसी प्रकार मुस्लिम बहुल क्षेत्रों जैसे मल्लपुरम में मुस्लिम रमजान के दौरान हिंदुओं और ईसाइयों को अपने रेस्टोरेंट खोलने की इजाजत नहीं देते हैं। आज केरल के मुस्लिम नई दिल्ली के बजाय अरब की ओर देखते हैं। आजकल केरल में सऊदी बुर्का और अरबी खाना सामान्य बात हो गई है। कुछ मुस्लिम तो ऊंट भी रखने लगे हैं। केरल तेजी से पाकिस्तान बनता जा रहा है। आलम यह है कि अब्दुल नासिर मदनी (जिसे कोयंबटूर और बेंगलुरू बम विस्फोट मामले में जेल हुई) द्वारा कट्टरता का पाठ पढ़े केरल से कुछ मुस्लिम युवा आइएस से जुड़ने हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।
[ लेखक तुफैल अहमद, नई दिल्ली स्थित द ओपन सोर्स इंस्टीट्यूट के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं ]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here