ताले में बैठा” की “होल

बहुत आजकल गुस्सा रहता,
ताले में बैठा “की” होल।
चाबी डाली और घुमाया।
ताला खोला और लगाया।
खुलना लगना रोज मशक्कत,
सबने हाथ जोर आजमाया।
धकम पेल में कोई न समझा,
कितने दुःख में है” की” होल.

जब जब ताला खुला न भाई।
सबने जहमत खूब उठाई।
घर के भीतर जाएँ कैसे,
सबको आई खूब रुलाई।
ताला नहीं खुला चाची का,
बजा गली कूचे में ढोल।
जब भी उसको गुस्सा आता।
बदला लेने पर तुल जाता।
चोरों को आमंत्रित करके,
चाबी डुप्लीकेट मंगाता।
ताला खोल भाग जाते वे,
घर का मॉल सभी कर गोल।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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