खान अब्दुल गफ्फार खान: सीमान्त गाँधी

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khan abdul gaffar khanमैं जब भी नई दिल्ली स्थित खान मार्केट जाता था, मुझमें जानने की इच्छा होती थी, यह खान कौन थे और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी उनके भाई को भारत में इतना आदर और सम्मान की नजरों से क्यों देखा जाता है और पाकिस्तानी को खान चाचा क्यों पसंद नहीं है? खान अब्दुल गफ्फार खान अथवा सीमान्त गाँधी! स्वतंत्रता के समय आन्दोलन के कुछ प्रमुख नेताओं में से है। जिन्होंने लड़ाई लड़ी और भारत में प्रजातंत्र को देखा था। बाचा खान सीमान्त और भारत के मध्य पाकिस्तानियों की उपेक्षाओं और घृणाओं के कारण इतिहास में गुम से हो गए हैं।

बाचा खान की बदनसीबी कहिए अथवा समय का सही साथ नहीं मिलना मानिए की, उनके द्वारा स्वतंत्राता संग्राम में किए गए योगदान को इतिहास ने भूला दिया। बादशाह खान को इतिहास ने नौ बार जोन में रखा है। पाकिस्तान और पाकिस्तानी इतिहासकार महान आधुनिक भारत के निर्माता से इस आधार पर घृणा करता है कि वह अलग पाकिस्तान के पक्ष में नहीं थे और भारतीय इतिहासकारों ने उन्हें इस आधार पर अलग रखा क्योंकि वह एन डब्लू पीए का एक पठान थे।

बाचा खान और उनके परिवार का आंदोलनकारी इतिहास बहुत प्राचीन और गौरवमय रहा है। खान अब्दुल गफ्फार खान के परदादा ओबेदुल्लाह खान ने अफगान शासक दुर्रानियो के विरोध् में लड़ाई की थी और उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया था। दादा युसुफ उल्लाह खान को अंग्रेजी सरकार ने परास्त करने का भरसक प्रयास किया था। मगर वह अंग्रेजी सरकार की गिरफ्रत से दूर ही रहे। सीमान्त गाँधी के पिता एक आधुनिक और प्रोग्रेसिव विचारधारा के व्यक्ति थे, उन्होंने अपने जनजाति विचारधराओं और परम्पराओं की परिधि से बाहर निकल कर बहराम खान से अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा दी बल्कि, बड़े बेटे अब्दुल जब्बार खान ;डाॅ. खापद्ध को लंदन से डाक्टरी करवाई और छोटे बेटे खान अब्दुल गफ्फार खान को अलीगढ़ में पढ़ाया। नई दिल्ली स्थित खान मार्केट उनके बड़े भाई अब्दुल जब्बार खान अर्थात् खान के नाम पर है। बाचा खान ने अंग्रेजी सरकार के विरोध् में आन्दोलन किया था। वह अपने आन्दोलन से पखतुन बहुल्य क्षेत्रों में परिवर्तन और आधुनिकता के साथ-साथ शिक्षा का विस्तार चाहते थे। वह शिक्षा के माध्यम से समाज में जागृति पैदा करने की इच्छा रखते थे। उन्होंने परिवर्तन के लिए अपने संघर्ष को इन्कलाब का रंग देना चाहते थे। अंग्रेजी सरकार ने न केवल उनके प्रयास का विरोध् किया बल्कि उन्हें सामाजिक स्तर पर काम करने की अनुमति भी नहीं दी! उन्होंने अपने एक सहयोगी और मित्रों के माध्यम से एक स्कूल खोला, यह प्रथम प्रयास था और यह प्रयास इतना सफल रहा कि नवाब ने घबराकर स्कूल बन्द करवा दिया और स्कूल के भवन को भी गिरा दिया गया।

बाचा खान को अपने सहयोगियों और समर्थकों के साथ स्थान बदलना पड़ा। और पिफर उन्होंने इस्लामिया मदरसों के नाम से आधुनिक स्कूल खोले जो जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली के अधीन प्रमाणपत्र देता था। दोनों भाइयों ने अपने अपने बच्चों को इसी स्कूल में पढ़ाया था, जो स्थानीय और पिछड़ों में उत्साह भरने के लिए काफी था। खान ने स्थानीय समस्याओं, जनजातिय, शत्रुता और परम्पराओं के विरोध् में सफल आन्दोलन चलाऐ थे। अंग्रेजी सरकार के विरोध् में खान के खड़ा होने का प्रमुख कारण फर्निटियर क्राइम रेगुलेशन ऐक्ट था! यह कानून अंग्रेजी सरकार के अधीन पुलिस को एक विशेष अधिकार दे रही थी, जिस के अधीन पुलिस किसी भी व्यक्ति को 14 वर्ष के लिए जेल में डाल सकती थी। बाचा खान के अनुयायीयों ने अंग्रेजी सरकार के इस फैसलों को खुले रूप से चुनौती दी और अंग्रेजी सरकार के द्वारा बहुत अत्याचार सहन किये।

सर्वप्रथम बाचा खान ने अंग्रेजी सरकार के विरोध् में लड़ाई लड़ने के लिए मुस्लिम लीग के पास समर्थन के लिए गए और जब मुस्लिम लीग ने उन्हें समर्थन देने से मना कर दिया तो खान को कांग्रेस का भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ और काँग्रेस की अगुवाई में खान और उनके समर्थकों ने बड़ी लम्बी लड़ाई लड़ी! खान अखण्ड भारत के समर्थक और विभाजन के विरोधी थे! उन्होंने भारतीये स्वतंत्राता संग्राम में काँग्रेस के साथ मिलकर लड़ाई की और 15 वर्षों तक अंग्रेजी सरकार के जेल में बंद रहे। खान के समर्थक और उनके अनुयायी इतिहास में खुदाई खिदमतगार के नाम से जाने जाते हैं। स्वतंत्राता के उपरान्त और बटबारा के पश्चात खान ने कहा था कि-‘‘जबकि बटवारा हो चुका है और विभाजन को कांग्रेस और लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया है। तो मैं और हमारे समर्थक त्रास्त रहकर पकिस्तानी नागरिक की भांति समाज और देश के नवनिर्माण में सहायक बनना चाहते हैं।’’ मगर विडम्बना तो देखिये इस महान देशभक्त और स्वतंत्राता सेनानी की इच्छाओं को पाकिस्तान की सरकार ने अनसुना कर दिया और खान एवं उनके समर्थकों को पाकिस्तान की विकास और प्रगति में बाधा मानते रहे। पाकिस्तान की स्थापना और स्वतंत्रता के पश्चात खान गाँधी जी के सच्चे अनुयायी बनकर रहे और गाँधी मार्ग को अपना आदर्श बनाए रखा!

फखरे आलम

 

 

 

1 COMMENT

  1. आलम भाई इस खोजपरख लेख के लिए धन्यवाद। ऐसे सच्चे मुसलमानो को इतिहास से विस्मृत कर दिया गया है. ऐसे हिन्दू व् अन्य जाती के लोग भी हुए हैं जिन्हे हम जानते नहीं। ऐसे विस्मृत महापुरुषों की जानकारी के लिए एक पुस्तक छपनी चाहिए, जैसे हमारे यहाँ भारत रत्न देने की और भारत रत्न देने के लिए जी तोड़ कोशिशों जी होड़ लगती हैक़िन्तु हॉकी के जादूगर की किसी को परवाह नही. अल्लामा इक़बाल जो उदारमना शायर हुए हैं उन्हें हमने याद करना चाहिए. आलम जी आप यदि इतिहासकार है ,तो ऐसे सक्लन कर सभी को अवगत कराये.

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