मध्यप्रदेश में एक दशक तक लगातार राज करने वाले दूसरे मुख्यमंत्री बने श्री शिवराज सिंह चौहान के हिस्से में उपलब्धियां और विफलताएं एक समान हैं.चौहान से पहले ये स्थायित्व कांग्रेस शासन में दिग्विजय सिंह के हिस्से में आया था .शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के तीसवें मुख्यमंत्री हैं इसलिए आप उन्हें राजनीति का तीस मार खां भी कह सकते हैं मध्यप्रदेश में कांग्रेस के एक छत्र राज को ध्वस्त करने वाली सुश्री उमा भारती इस सुख से वंचित रहीं और बाबूलाल गौर के हिस्से में मुख्यमंत्रित्व ठीक वैसे ही आया था जैसे किसी बिल्ली के भाग से छींका टूटता है.
एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान कितने असरकारी रहे इसका मूल्यांकन करने का कोई पैमाना नहीं है. यदि उन्हें अपनी पार्टी का समर्थन न मिला होता तो शायद वे लगातार एक दशक तक कुर्सी पर बने नहीं रह सकते थे.बीजेपी ने शिवराज के हर पाप पर पर्दा डाला और उन्हें अक्षुण्ण बनाये रखने में अपनी पूरी ताकत झौंक दी. डम्पर काण्ड से लेकर व्यापमं घोटाले तक कितने ही ऐसे अवसर आये जब शिवराज सिंह को चलता किया जा सकता था किन्तु भाजपा ने उन्हें उनके पद पर बनाये रखा क्योंकि असंतोष से जूझ रही भाजपा के पास शिवराज सिंह से बेहतर कोई दूसरा आज्ञाकारी नेता था ही नहीं .
शिवराज सिंह को अपदस्थ करने की ताकत भी इन दस सालों में भाजपा ने किसी दूसरे विधायक को अर्जित नहीं करने दी. लक्ष्मीनारायण शर्मा को जेल भिजवा दिया,नरेंद्र सिंह तोमर ,कैलाश विजयवर्गीय और अनूप मिश्रा को दिल्ली बुला लिया.थावरचंद गहलोत और प्रभात झा जैसों को मुख्यमंत्री का सपना देखने ही नहीं दिया .ये सब शिवराज सिंह को लगातार अवसर देने के लिए ही किया गया. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से लेकर प्रदेश का प्रभार देखने वाले दूसरे भाजपा नेता भी निरंतर शिवराज सिंह के लिए दिल्ली में वकालत करते रहे .एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है की वे भले ही जनता की आँखों का तारा न बन पाये हों किन्तु पार्टी नेतृत्व की आँखों के तारे हमेशा बने रहे .संगठन से तालमेल बनाये रखने में शिवराज सिंह चौहान की कोई सानी नहीं है.
बीते एक दशक में मध्यप्रदेश ने शिवराज सिंह के नेतृत्व में जितना पाया है उतना खोया भी है.सामाजिक सरोकारों की सरकार के रूप में प्रदेश सरकार को नई पहचान देने वाले मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान चूंकि अकेले ही प्रदेश के ब्रांड एम्बेस्डर रहे हैं इसलिए सारी सफलताओं और विफलताओं के लिए वे ही जिम्मेदार हैं. सुखद ये है की शिवराज इसे उदार मन से स्वीकारते भी हैं. यदि प्रदेश की नौकरशाही ने आंकड़ेबाजी के सहारे उनकी झोली में पुरस्कारों का अम्बार लगाया है तो इसीनौकरशाही की वजह से उनके प्रदेश में किसानों के निर्जीव देहों के अम्बार भी लगे हैं. यहीं पेटलावद भी हुआ है और यहीं सार्वजनिक परिवहन व्यवस्थाएं भी जनता से छीनी गयीं है .मध्यप्रदेश शायद पहला ऐसा राज्य है जिसके पास अपना कोई परिवहन निगम नहीं है. सब कुछ निजी हाथों में हैं.
प्रदेश में भ्र्ष्टाचार और अवैध उत्खनन के कारण जनता का जितना नुक्सान बीते दस सालों में हुआ है उतना दिग्विजय सिंह की कांग्रेस के दस सालों में भी नहीं हुआ.दिग्विजय सिंह प्रदेश से एक खलनायक के रूप में विदा हुए थे लेकिन शिवराज सिंह तमाम विफलताओं के बावजूद अभी भी जनता के बीच में नायक बने हुए हैं यही सबसे बड़े संतोष की बात है .आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसी बात का लाभ मिले तो मिल जाये अन्यथा प्रदेश को ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मिली है जिसका की गुणगान किया जा सके.
पिछले छह दशक में तीन बार राष्ट्रपति शासन झेल चुके मध्यप्रदेश को शिवराज सिंह जैसा विनम्र और सहिष्णु मुख्यमंत्री शायद ही अब मिले,क्योंकि शिवराज ने सफलता के साथ ही असफलता और बदनामी का सारा विष अकेले ही पीकर खुद को आशुतोष प्रमाणित किया है.बीते दस साल में मेरा मुख्यमंत्री से एक बार भी सीधा संवाद नहीं हुआ फिर भी मै एक सरल और सहज व्यक्ति के रूप में अकंटक राज के दस साल पूरे होने पर अपनी शुभकामनाएं देता हूँ और उम्मीद करता हूँ की आने वाले दिनों में वे अपने आपको उन बुराइयों से मुक्त करने का प्रयास करेंगे जो बीते दस साल में उनके इर्दगिर्द पनपी हैं.
राकेश अचल